धौति क्रिया के प्रकार

धौति का अर्थ है धोना या साफ करना । हठयोग में षट् क्रियाओं में धौति का महत्वपूर्ण स्थान है। धौति क्रिया से शरीर की आंतरिक सफाई होती है । 

धौति क्रिया के प्रकार

मुख गुहा, आमाशय, छाटी आंत, बड़ी आंत की सफाई हेतु स्वामी घेरण्डनाथ जी ने विभिन्न धौतियां बताई हैं :-

1. अंतः धौति
  1. वातसार
  2. वरसार
  3. वाहिनीसार
  4. बहिष्कृति
2. दन्त धौति
  1. दन्त मूल
  2. जिव्हा मूल 
  3. कर्ण रन्ध्र
  4. कपाल रन्ध्र
3. हृदय धौति
  1. दण्ड धौति
  2. वमन धौति
  3. वस्त्र धौति
  4. मूल शौधन धौति

1. अंतः धौति

1. वातसार धौति - 
वात अर्थात वायु। कौए की चौंच की तरह जीभ की आकृति बनाकर वायु को धीरे-धीरे उदर में भर लेते हैं। वायु से पूरा पेट भर जाने के बाद नालि चालन करते हैं। 

2. वस्त्र धौति - वस्त्र धौति क्रिया करने के लिए 22 फुट लम्बा तथा 3 इंच चौड़ा मलमल का कपड़ा लेते हैं जिसे वस्त्र धौति के नाम से जाना जाता है । उस वस्त्र धौति को पानी में उबालकर सुखा देते हैं । सुखाने के बाद गोलाकार रूप में उसकी तह बनाके रखते हैं जिससे खाते समय कपड़े में किसी प्रकार की उलझन न हो।

इस वस्त्र धौति को करने के लिए कोई भी एक बर्तन ले लेते है जिसमें पानी में वस्त्र धौति को डुबाके रखते हैं ।

वस्त्र धौति करने के लिए धौति का एक तरफ का सिरा हल्का सा मोड़ देते हैं, उसके बाद दाहिने हाथ की दोनों उंगलियों में कसकर गले के अन्दर रखते हैं फिर मुंह बन्द कर देते हैं, उसके बाद जिस प्रकार खाने को निगलते हैं उसी प्रकार वस्त्र धौति को निगलते हैं।

बीच-बीच में पानी पीने का अहसास होता है। एक घूंट पानी पीते हैं फिर से निगलना शुरू कर देते हैं। पहले दिन जितना कपड़ा अन्दर चला जाता है उसे धीरे-धीरे बाहर निकाल देते हैं ।

सावधानियाँ -  वस्त्र धौति को बहुत ही स्वच्छ रखना चाहिए अन्यथा गले या ग्रास नली में रोग संक्रमण होने की सम्भावना रहती है । वस्त्र धौति का अभ्यास करने के पहले हाथों को अच्छी तरह साफ कर देना चाहिए जिससे वस्त्र धौति के अन्दर किसी प्रकार के धब्बे नहीं आने चाहिए।

गला बहुत ही संवेदनशील होता है। जब वस्त्र गले तक पहुंचता है तब उल्टी का अहसास उत्पन्न होता है । तब हमें ध्यान रखना है कि रूक जायें। एक घूंट पानी पीए और फिर खाना शुरू कर दें ।

जैसे-जैसे अभ्यास करते हैं वैसे-वैसे उल्टी का अहसास कम होता है और वस्त्र आसानी से चला जाता है ।

जब वस्त्र धौति को बाहर निकालते है तब जबरदस्ती नहीं करना है। बहुत बार ऐसा होता है कि वस्त्र धौति कभी-कभी आपस में उलझ जाती है जिसे खींचने में दिक्कत आती है। उस समय उस वस्त्र को जबरदस्ती खींचना नहीं। ऐसी स्थिति में एक घूंट पानी पीते हैं फिर वस्त्र को बाहर निकालते हैं । तब कई बार ऐसा होता है कि फिर भी वस्त्र बाहर नहीं निकलता । फिर एक घूंट पानी पीते हैं और कपड़े को अंदर निगलते हैं और फिर बाहर निकालना शुरू करते हैं। तब वस्त्र बाहर निकलता है। यदि ऐसा करने से भी नहीं निकलता है, उसके बाद सीधा बैठ जाते है और उज्जायी प्राणायाम करते हैं । यदि तब भी नहीं निकलता हैं तब गरम गुन गुना पानी पीते हैं और वमन धौति की क्रिया करते हैं, उसके बाद निकल जाता है। यदि तब भी नहीं निकलता है तो शंख प्रक्षालन क्रिया करते है तो गुदा मार्ग से बाहर निकलता है। वस्त्र धौति करते समय यह विशेष ध्यान रखना है कि 15 मिनट के अन्दर जितना वस्त्र को खा लें, उसके बाद बाहर निकलना चाहिए । 

लाभ :-

1. वस्त्र धौति के अभ्यास द्वारा कपड़ा अमाशय की दीवारों को अच्छी तरह पोछ देता हैं जिससे पाचन रस तेजी से स्त्रावित होता है और वह संपूर्ण शरीर को प्रभावित करता है ।
2. इस क्रिया के अभ्यास से अम्लता, अपचन, खांसी, दमा, कफ, पित्त और अन्य रोगों में लाभकारी है।
3. वस्त्र धौति की क्रिया के नियमित अभ्यास से चर्म रोग दूर हो जाते हैं।

3. मूलशोधन धौति - इस धौति से मल यानि गुदा मार्ग का शोधन यानि शुद्धि की जाती है। इसलिये इसे मूलशोधन धौति कहते है ।

1. इस क्रिया में सबसे पहले गणेश क्रिया की जाती है मध्यमा का नाखून अच्छे से काटकर सफाई करके तेल लगाकर गुदा मार्ग में प्रविष्ट करा देते हैं।

2. गुदा मार्ग के मुंह पर मौजूद मल को अंगुली से बाहर निकाल देते हैं जब तक निकलता चला जावें निकाल देते है। कब्ज की स्थिति में स्वयं निकालना पड़ता है । अन्यथा थोड़ें प्रयासों स स्वयं की मल निकलने लगता हैं। यानि शौच हो जाती है।

3. गणेश क्रिया पूरी हो जाने पर कमर तक के पानी में खड़े होकर पानी को गुदा मार्ग से अंदर संकुचित करते हुए खीचते है। जब पानी अंदर प्रविष्ट हो जाता है तब नौलि क्रिया करते हुए आतों की सफाई कर देते है।

सावधानियाँ - गणेश क्रिया का अभ्यास ठीक तरह से करना चाहिये। नौलि के पूर्व गुदा मार्ग के संकुचन का अभ्यास भी अच्छी तरह से कर लेना चाहिये। इस क्रिया को साफ बहते पानी में ही करना चाहिये ।

लाभ -  रूका हुआ मल बाहर निकल जाता हैं जिससे गैस इत्यादि की शिकायत दूर करने में मदद मिलती है। पुरानी कब्ज टूटती है। बवासीर की शिकायत में आराम मिलता है। आंतों की सफाई हो जाती है ।

4. बस्ति क्रिया - गुदा मार्ग व आंतों की सफाई को बस्ती क्रिया कहा जाता है। यह दा प्रकार से की जाती है

पुरातन विधि - बहते पानी में कमर तक के पानी में खड़े होकर गुदा मार्ग के संकुचन से पानी को आंतों में प्रविष्ट करा लेते हैं। अंदर प्रविष्ट होने पर नौलि चालन करते हैं बाद में पानी को बाहर निकाल देते हैं जिसमें साथ में आंतों के अंदर रूका हुआ मल भी बाहर निकल जाता है।

आधुनिक विधि - रबड़ कैथेटर करीब 20 इंच की लेते है । उसे गुदा मार्ग में प्रविष्ट करा देते है और पानी को अंदर खींचते हैं। नदी और साफ पानी के अभाव में आधुनिक वैज्ञानिक युग में एनोमा पाट व सेट के द्वारा यह बस्ती क्रिया को जाती है। आंतों में पूरा पानी भर लेने के पश्चात नौलि क्रिया को जाती है बाद में शौच द्वारा पानी को बाहर निकाल दिया जाता है। साथ में आंतों में रूका हुआ मल भी बाहर निकल जाता है और आंतों की सफाई हो जाती है ।

लाभ - 

1. बस्ती क्रिया के अभ्यास से आंतों को सफाई होती है। पुराने कब्ज, गैस ट्रबल दूर होता है। कब्ज अनेक रोगों का कारण होता है। कब्ज के दूर से सभी रोग अपने आप दूर हो जाते है । 
2. आंतों की सफाई हो जाने से ये अपने कार्य में सक्रिय हो जाते है।
3. गर्मी की शिकायत बस्ति क्रिया से दूर होती है।

सावधानियाँ - 

1. कौए कि चौंच की आकृति बनाकर ही वायु को मुख से अन्दर खींचना चाहिये व पेट में भरना चाहिये ।
2. नौलि क्रिया का अभ्यास पूर्व में ठीक तरह से कर लेना चाहिये ताकि नौलि चालन द्वारा वायु उदर में स्थित मल व दूषित गैसों को बाहर निकलने के कार्य को आसानी से कर सके ।
3. अल्सर व कोलाइटिस के रोगियों को वातसार धौति का अभ्यास नहीं करना चाहिये, इससे उनके अन्दर मौजूद अल्सर के वायु के दबाव से फटने का अन्देशा रहता है।

लाभ

1. इस क्रिया से शरीर की दूषित गैस बाहर निकलती है वायु के दबाव से अन्दर संग्रहित मल को भी दबाव पड़ता है और वहीं शरीर से बाहर निकलने हेतु आंतों में उग्र गति करता है और नौलि चालन से बाहर निकलने में मदद मिलती है।
2. गैस, एसीडिटी की समस्या वाले रोगियों को यह वातसार धौति अत्यंत लाभकारी रहती है ।
3. इस धौति में नौलि क्रिया से नौलि चालन के सभी लाभ हमारे शरोर को प्राप्त होते हैं। पाचन तंत्र के सभी अंग सुव्यवस्थित कार्यों का सम्पादन करने योग्य बन पाते हैं ।
4. पेनक्रियाज ग्रन्थि पर पड़ने वाले दबाव के कारण उसमें शुद्ध रक्त प्रवाह होता है और वह अपने ऊपर जमें विजातिय द्रव्यों जैसे चर्बी, अशुद्ध रक्त इत्यादि को निकाल फेंककर शुद्ध रक्त द्वारा अपने कार्य का सम्पादन सफलतापूर्वक कर सकने की स्थिति को प्राप्त करती हैं फलतः डायबिटीज रोगियों को यह अत्यंत फायदेमंद रहती है।

5. वरिसार धौति - हमारे शरीर के पाचन तन्त्र की बनावट शंख की भांति है। ऊपर से हम जो भोजन या पेय पदार्थ लेत हैं, वह हमारे शरीर के अन्दर की पाचन नलिकाओं से होता हुआ हमारे पाचन अंगों के द्वारा उसका उचित रूप से पोषक तत्वों का शोषण कर लेने के बाद मूलरूप में अवशेष गुदा या मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाता है। वारिसार धौति में इस पूरे मार्ग की सफाई की जाती हैं जिससे शरीर में मल जो रूककर सड़ता हैं और अनेक रोगों का कारण बनता है उसे बाहर निकालने में मदद मिलती है।
1. पानी को मुँह के द्वारा कण्ठ तक पी लेना चाहिए।
2. उसके बाद नौलि चालन करना चाहिये और इससे पानी गुदा मार्ग की ओर अग्रसर होता हैं वह बाहर निकलता है साथ में आंतों के अन्दर रूके और सड़े हुए मल को बाहर निकाल देता है।

सावधानियाँ

1. इस क्रिया में ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिये। पानी थोड़ा गर्म लिया जा सकता है और थोडा नमकीन बनाने के लिये नमक का प्रयोग भी किया जा सकता है।
2. नौलि चालन की प्रक्रिया का दोहराते रहना चाहिये और पानी को पीते रहना चाहिये। जब तक पानी जैसा पी रहे हैं, वैसा का वैसा गुदा मार्ग से ही नही निकले अर्थात् रास्ते मे रूका हुआ पूरा मल साफ न हो जावे, आतों को धोरहते हैं, लेकिन आधुनिक वैज्ञानिको ने नौलि क्रिया के साथ - साथ कुछ विशेष प्रकार के आसनों को भी इस क्रिया में शामिल किया है।
इस क्रिया को करने के बाद शरीर में आतों से समस्त मल बाहर निकल जाता है लेकिन इससे शरीर के अन्दर आतों के महत्वपूर्ण उत्तकों को भी कुछ नुकसान पहुंचता है जिसे कुछ समय विश्राम करके पूरा किया जाना चाहिये।
4. विश्राम के साथ-साथ भोजन बिलकुल हल्का यानि खिचड़ी या दलिया वह भी घी थोड़ा अधिक मात्रा में डाल कर क्योंकि नमक डालने से भीतरी नलिकाओं मे क्षरण होता हैं उन पर घाव होने की संभावना हो जाती है। घी उसकी रिपेयरिंग में सहायक होता है ।
5. यह हल्का भोजन 6–7 दिनों तक लेते हुए धीरे-धीरे भोजन सुधार किया जा सकता हैं।

लाभ - आंतों में स्थित समस्त मल को बाहर फेंकने के कारण आंते निर्मल हो जाती है। गैस ट्रबल की समस्या दूर होती हैं कब्ज दूर होती हैं। आंतो को निर्मल बनने से उनमें नई ताकत का संचार होता हैं। भोजन के पोषक तत्वों को वे बखूबी शरीर के लिये शोषित करके मल को आगे की ओर धक्का लगाने में सक्षम बनती हैं।

पाचन प्रक्रिया के समस्त अंग लीवर, यकृत, स्पलीन, डिओडेनम, पेनक्रियाज छोटी आंत इन सभी की सफाई अच्छी तरह से हो जाने से य पाचक रसों को उत्सर्जन और पोषक तत्वों का अवशोषण सुचारू रूप से कर सकते है ।

सभी रोगों के मूल में मलाशय रहता हैं और पेट साफ तो सभी रोग साफ हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है अधिकतर रोगों के मूल कारण में आता में सडता हुआ मल रहता है। जब यह साफ हो जाता है तो रोगों का कारण समाप्त हो जाने से ये रोग भी समाप्त हो जाते है ।

6. वाहिनी सार धौति (अग्नि सार) -  नाभि को मेरूदण्ड के पास बार-बार ले जाना चाहिये। यह प्रक्रिया वाहिनी सार या अग्निसार क्रिया कहलाती हैं।

यह क्रिया खड होकर की जाती है। दोनों पैरों में कन्धे की चौड़ाई के बराबर अन्तर रखते हैं। दोनों हाथों को घुटने पर रखते हैं। पूरी श्वास को बाहर निकाल कर रोककर रखते हैं । उदर की मांसपेशियों को कड़ा कर देते हैं और बिना श्वास लिये ही पेट को अन्दर मेरूदण्ड से टकराने का प्रयास करते हैं। ऐसी प्रक्रिया एक बार श्वास रोककर बार-बार दोहराई जाती है।

सावधानियाँ - श्वास को बाहर निकाल कर बाहर ही रोककर रखते हैं। उदर की मांसपेशियों को कड़ा कर लेना चाहिये और अन्दर बाहर करना चाहिये । इस प्रक्रिया का खाली पेट ही करना चाहिये ।

लाभ - जठराग्नि प्रदीप्त होती है। पाचन क्रिया सुचारू रूप से कार्य करती है। भोजन को वज्र के समान नष्ट करती है और रूके हुए मल को बाहर निकलने के लिये प्रेरित करती है ।

7. "बहिष्कृति धौति”

1. काकी मुद्रा बनाते हुए उदर को हवा से भर लेते हैं ।
2. आधा घंटा उसी तरह से रखकर हवा को गुदा मार्ग से निकाल देते हैं।
3. नाभि तक जल में खडे हो जाते हैं और गुदा मार्ग से बड़ी आंत को बाहर निकाल देते हैं।
4.आंतों की अच्छी तरह से सफाई करते हैं।
5. अच्छी तरह से धो लेने के बाद पुनः आतों को अन्दर खींच लेते हैं ।

सावधानियाँ

1.यह प्रक्षालन देवताओं के लिये भी कठिन होता था। जब तक धारणा शक्ति को साथ नहीं लिया जावे बहिष्कृति धौति नहीं हो सकती है।
2. ऐसा गुरू जिसने स्वयं इस क्रिया को कर लिया होवे उसकी देख रेख में ही इस धौति का सम्पादन किया जाना श्रेयस्कर होगा, अन्यथा अनुभवी के अभाव में आंतों को उलझना मौत के समान घातक परिणाम भी हो सकते हैं।

लाभ 

1. आंतों की पूर्ण सफाई होकर आंते निर्मल बनती हैं।
2. गुदामार्ग से मल पूरा बाहर निकल जाता है।
3. गरम तासीर वाले व्यक्तियों के लिये यह क्रिया लाभदायक है
4. मल के बाहर निकल जाने से उदर रोग व वायु विकार दूर होते हैं ।

2. दन्त धौति

1. दन्त मूल -  दन्त अर्थात् दांत और मूल अर्थात जड़ । दन्त क्रिया में दातों की सफाई की जाती है।

प्राचीन काल में हल्दी, बबूल, नीम के पत्ते, पतले ढंठल लेकर उसे एक तरफ से दातों से चबा-चबा कर मुलायम बना देते थे और उसे दांतों के ऊपर रगड़-रगड़ कर दातों की सफाई करते थे । इसे ही दन्त मूल धोती कहते है

लाभ

1. वैज्ञानिक युग में दांतों की सफाई के लिए टूथ ब्रश तथा मंजन उपयोग मे लाते हैं। ज्यादातर ब्रश तथा पस्ट का उपयोग होता है।
भोजन करने के पश्चात् चिपके हुए अन्न कण बाहर निकल जाते है। जिससे दातों में सड़न का खतरा नहीं रहता है ।
2. दांतो के साथ मसूढ़ों की भी मालिश होती है एवं पायरिया रोग से मुक्ति दिलाता है।
3. मुख की बदबू दूर होकर मुख गहा की अच्छे से सफाई हो जाती है।
4. दांतो की चमक से चेहरे की चमक बढती है। चेहरे पर आकर्षण उत्पन्न होता है।

2. जिव्हामूल - जिव्हामूल धौति से आशय जीभ की सफाई से है। जिस दातौन से दांत व मसूढ़े की सफाई की जाती है उसी दातौन को लम्बाई में फाड़कर उसे मोड़ लिया जाता है और U शेप की बनवाकर U शेप वाला हिस्से से जीभ की सफाई की जाती है आजकल प्लास्टीक व स्टील की तैयार जीभनी भी बाजार में उपलब्ध है।

लाभ - जीभ की सफाई से कफ सम्बन्धी रोगों को दूर करने में सहायता मिलती है। जीभ पर जमा मल साफ हो जाने से मुँह की गदंगी व बदबू दूर हो जाती है। गदंगी रहने से कीटाणु उत्पन्न होने का खतरा जिव्हामूल की सफाई से खत्म हो जाता है।

3. कर्णरन्ध्र - कर्ण रन्ध्र का अर्थ होता है कान साफ करना । दोनों हाथों की तर्जनों के नाखून काटकर हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोकर दोनों कानों में सीधी जमाकर डालते है और दोनों तरफ गोल गोल घुमाते हैं जिससे कान की सभी नसों की मालिश अच्छे से हो जाती है, रक्त प्रवाह तेज होता हैं। शुद्ध रक्त प्रवाह के बढ़ने से कर्ण रोगों से छुटकारा पाने में मदद मिलती है। सुनने की शक्ति बढ़ती है। बहुत से वाक्यों में कम सुनने या बहरों को भी इस क्रिया से कुछ प्रतिशत फायदा होता देखा गया हैं।

4. कपाल रन्ध्र -  कपाल रन्ध्र का अर्थ होता है कपाल साफ करना । दायें हाथ के अंगूठे को मुख के अन्दर डालकर कपाल रन्ध्र की सफाई की जाती है । अंगुठे से धीरे-धीरे मालिश की जाती है। इस तरह से सफाई और मालिश करने से वहां की त्वचा मजबूत होती है। जमा कफ को बाहर निकाल फेंकती है। गन्दगी साफ होने से मुख की दुर्गन्ध दूर होती हैं चेहरे पर चमक आ जाती है।

3. हृदय धौति

1. दण्ड धौति -  प्राचीन काल में कले, हल्दी या बड़ के द्वारा धौती क्रिया की जाती थी। एक तरह से उस दण्ड को कूट-कूट कर मुलायम बना लेते थे । पानी पीने के बाद गले मे रखकर अन्दर की ओर निगल जाते थे और उसके बाद उसे आगे पीछे खींचते थे जिससे उल्टी आती थी और पानी बाहर निकलता था लेकिन यह क्रिया करना सभी के लिए सम्भव नहीं है क्योंकि दण्ड को बारीक बनाना और प्रत्येक दिन एक नया दण्ड बनाना सम्भव नहीं है। दूसरी बात यह है कि इसे करने में मुख गुहां से अमाशय तक के भाग में कहीं पर भी घाव होने का डर रहता है।

सावधानियाँ

1. रबड़ को अच्छी तरह उबालना चाहिए।
2. दण्ड का एक सिरा रेजमाल से रगड़ कर चिकना / मुलायम करना चाहिए।
3. शुरू में दण्ड को अन्दर बहुत ही धीरे-धीरे ले जाना चाहिए जैसे ही अन्दर डालना शुरू करते हैं वैसे ही उल्टी आना शुरू होती है किन्तु धीरे-धीरे अभ्यास द्वारा दण्ड अन्दर जाने लगता है ।
4. जिन्हें गले में टांसिल हो, सूजन हो और हृदय रोग हो, उन्हें नहीं करना चाहिए।

लाभ

1. दण्ड धौति के अभ्यास से बलगम, कफ, वायु विकार, पुरानी खांसी आदि रोगों में लाभ मिलता है ।
2. अमाशय में स्थित अपच्य पदार्थ बाहर आ जाते हैं ।
3. अमाशय की सफाई पूरी तरह हो जाती है। जिससे उदर वायु विकार, कब्ज रोग होने की सम्भावना नहीं रहती है ।

2. वमन धौति" कुन्जर क्रिया या गजकरणी क्रिया -  वमन का अर्थ हैं उल्टी करना । इस क्रिया का नाम कुन्जर क्रिया या गजकरणी क्रिया भी कहा हैं। कुन्जर और गज संस्कृत का शब्द हैं जिस तरह से कुन्जर और गज यानि हाथी सूंड में पानी भर कर पुनः उसे बाहर निकालता है, ठीक वैसे ही इस क्रिया में पानी पीकर वमन द्वारा पानी को वापस मुख से ही बाहर निकाला जाता है। इसीलिये इसे उपरोक्त नामों से जाना जाता है ।

सावधानियाँ

1. रबड़ को अच्छी तरह उबालना चाहिए ।
2. दण्ड का एक सिरा रेजमाल से रगड़ कर चिकना / मुलायम करना चाहिए।
3. शुरू में दण्ड को अन्दर बहुत ही धीरे-धीरे ले जाना चाहिए जैसे ही अन्दर डालना शुरू करते हैं वैसे ही उल्टी आना शुरू होती है किन्तु धीरे-धीरे अभ्यास द्वारा दण्ड अन्दर जाने लगता है ।
4. जिन्हें गले में टांसिल हो, सूजन हो और हृदय रोग हो, उन्हें नहीं करना चाहिए।

लाभ

1. दण्ड धौति के अभ्यास से बलगम, कफ, वायु विकार, पुरानी खांसी आदि रोगों में लाभ मिलता है ।
2. अमाशय में स्थित अपच्य पदार्थ बाहर आ जाते हैं ।
3. अमाशय की सफाई पूरी तरह हो जाती है। जिससे उदर वायु विकार, कब्ज रोग होने की सम्भावना नहीं रहती है

3. वमन धौति" कुन्जर : क्रिया या गजकरणी क्रिया -  वमन का अर्थ हैं उल्टी करना । इस क्रिया का नाम कुन्जर क्रिया या गजकरणी क्रिया भी कहा हैं । कुन्जर और गज संस्कृत का शब्द हैं जिस तरह से कुन्जर और गज यानि हाथी सूंड में पानी भर कर पुनः उसे बाहर निकालता है, ठीक वैसे ही इस क्रिया में पानी पीकर वमन द्वारा पानी को वापस मुख से ही बाहर निकाला जाता है। इसीलिये इसे उपरोक्त नामों से जाना जाता है ।

विधि - सुबह उठकर शौचादि से निवृत्त होकर एक से डेढ़ लिटर कुनकुना पानी लेकर एक से डेढ़ चम्मच नमक मिलाकर उकडू बैठकर पानी को जल्दी जल्दी पी लेते है। उसके बाद खड़े होकर एक से डेढ़ फुट के अंतर से बायें हाथ को पीछे कमर पर रखते हैं तथा दायें हाथ की तर्जनी और मध्यमा उंगली को अंदर डालकर जिव्हा को दबाते हैं, जैसे ही जिव्हा को दबाते हैं, पानी बाहर आ जाता है।

सावधानियाँ

1. पानी उतना ही कुनकुना होना चाहिये जितना आसानी से पिया जा सके ।
2. दायें हाथ की उंगलियों के नाखून अच्छी तरह काटना चाहिए वरना गले में घाव होने की संभावना रहती है। 
3. उंगलियों से जिव्हा को तब तक रगड़ते रहना चाहिए जब तक पानी बाहर न  आ जाए।
4. हृदय रोगी, उच्च रक्त चाप तथा गले संबंधी रोग जैसे गले में सूझन तथा ट्रासिल हो, उसे नहीं करना चाहिए ।
5. अल्सर में भी नहीं करना चाहिए ।

लाभ

1. वमन धौति दमा रोग में बहुत उपयोगी मानी गई है क्योंकि इसके द्वारा कफ आदि बाहर निकल जाते हैं और अमाशय की पूरी सफाई हो जाती है
2. वमन धौती के अभ्यास से मुख गुहा से लेकर अन्न नलिका तथा अमाशय की सफाई पूर्ण रूप से हो जाने के कारण व्यक्ति अपने कार्य में हमेशा सक्रिय रहता है जिससे कब्ज रोग, उदर वायु विकार, दमा आदि रोगों के निर्वाण में वमन धौति उपयोगी मानी गई है।

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