नाड़ी शोधन प्राणायाम की विधि और लाभ

इस प्राणायाम को नाड़ी शोधन प्राणायाम के नाम से इसलिये जाना जाता है, क्योंकि इसके निरंतर अभ्यास से हमारे शरीर की सभी नाड़ियों का शुद्धिकरण भलि प्रकार से हो जाता है। यानि हमारे शरीर के अंदर जो 72.864 नाड़ियाँ है वे सभी नाड़ी शोधन के अभ्यास से शुद्ध हो जाती है इसलिये इसे नाड़ी शोधन प्राणायाम कहते हैं।

नाड़ी शोधन प्राणायाम की विधि

1. किसी भी सुखासन कि स्थिति जैसे बज्रासन, पद्मासन, सिद्धासन या इनमें से कोई नहीं लगता तो पालती लगाकर बैठ जाते है यानि जिसमें सुखपूर्वक बिना हिले-डुले बैठ सके तथा मरूदण्ड (Spinal Cord) सीधी रहें।

2. दाये हाथ से प्रणव मुद्रा बनाते है, दाँयी नासिका को बंद कर बाँयी नासिका से पूरक करते हैं। दाँयो नासिका से रेचक करते है फिर दाँयी नासिका से पूरक बायी से रेचक करते है तब इस प्राणायाम का एक चक्र पूरा होता है।

सावधानी

1. पूरक करते समय विशेष ध्यान रखना है कि नियंत्रित गति से श्वास को अंदर ले तथा नियंत्रित गति से श्वास को छोड़े अर्थात पूरक रेचक करते समय नियंत्रित गति से ही श्वास को अंदर ले तथा बाहर छोड़े। पूरक-रेचक करते समय किसी प्रकार की आवाज नहीं आना चाहिये ।

2. जब भी हम पूरक करते हैं तब नाभि से कंठ तक वायु अंदर लेते है इसके बाद रेचक की क्रिया करते है । पूरक - रेचक करते समय बीच में किसी प्रकार की रूकावट नहीं आना चाहिये ।

3. पूरक से रेचक हमेशा दुगना होना चाहिये । प्राणायाम का अभ्यास ऐसी जगह करना चाहिये जिसमें या जहां खुली हवा का आवागमन हो यदि बंद कमरे में करते है तो सभी खिड़कियाँ खोलकर स्वच्छ जगह में बैठकर प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिये ।

4. प्राणायाम का अभ्यास जब ब्रह्म मुहूर्त में करते है तब उससे छह गुना लाभ मिलता है क्योंकि ब्रह्म मुहूर्त ही में ताजी ऑक्सीजन (Fresh O2) की प्राप्ति होती है।

5. जब हम पूरक की क्रिया करते है तब सीना ज्यादा से ज्यादा फैलता है और जब रेचक करते है तब उदर के ऊपर अधिक से अधिक दबाव पड़ता है।

नाड़ी शोधन प्राणायाम के लाभ

पूरक करते समय चेस्ट Expand होने के कारण (Artery) धमनी के ऊपर खिचाव आता है, जब रेचक करते है तब सीना (Chest ) संकुचित होता है, उस समय धमनियों के ऊपर दबाव पड़ता है जिससे धमनियाँ बार - बार फैलती और संकुचित होती है जिस कारण धमनियाँ लचीली हो जाती है, जिससे उनके अंदर रक्त प्रवाह सुचारू रूप से होता है, साथ ही धमनी के अंदर जो कोलस्ट्रोल इकट्ठा जो जाता है, वह भी हट जाता है। बार-बार इसके अभ्यास से वह हट जाता है तथा बार-बार इसके अभ्यास से संकुचित होने के कारण हृदय पम्पिंग (Heart Pumping ) करने लगता है। रक्त सुचारू रूप से प्रवाहित होने लगता है अतः हृदय रोग होने की संभावना नहीं होती साथ ही ब्लड प्रेशर Blood Pressure नहीं बढता सामान्य (Normal) रहता है यदि बढ़ा हुआ है तो स्वाभाविक हो जाता है। जब हम रेचक की क्रिया करते है उस समय उदर के ऊपर पर्याप्त दबाव पड़ता है जिससे Internal orgon's प्रभावित होते है, उनकी मसाज भलिभाति हो जाती है जिससे उनके Function's Proper होते है, इस कारण किसी प्रकार का रोग उत्पन्न नहीं होता। साथ ही फेफड़े (Lung's) पर अतिरिक्त दबाव पड़ने के कारण पूरी दुषित वायु बाहर निकल जाती है, जिससे फेफड़ों के निचले भाग में रूद्राणु पनप नहीं पाते क्योंकि ये रूद्राणु वायु के साथ में पूरी तरह बाहर निकल जाते है जिससे शरीर के अंदर रोगों की उत्पत्ति नहीं होती ।

वैज्ञानिकों ने शोध में तथा उस दौरान यह पाया कि सामान्य स्थिति में जो दमा के मरीज होते है, उनके फेफड़ों में न तो अधिक आक्सीजन अन्दर जाती है और न ही कार्बनडाई आक्साइड बाहर आतो है, क्योंकि दमा के मरीज का श्वांस उथला हुआ रहता है, इस कारण उनके फेफड़े Stiff (संकुचित) हो जाते है लेकिन दमा का मरीज यदि नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास करता है, तो उसके शरीर को अधिक से अधिक आक्सीजन मिलती है तथा कार्बन डाई आक्साइड बाहर निकलती है, जिससे उसे काफी लाभ प्राप्त होता है

जिस आसन में बैठकर हम प्राणायाम का अभ्यास करते है उसके भी लाभ शरीर को प्राप्त होते है। जैसे कि यदि नाड़ी शोधन पद्मासन में करते है तो पद्मासन के और सिध्दासन में करते है तो सिध्दासन के लाभ प्राप्त हो जाते है अतः नाड़ी शोधन प्राणायाम को पद्मासन, सिध्दासन या वज्रासन में करते है तो अधिक से अधिक लाभ प्राप्त होते है ।

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