एक निश्चित आयु से कम आयु के बच्चों का अपराधपूर्ण कार्य बाल अपराध
समझा जाता है। किन्तु प्रश्न उठता है कि बालक किसे कहा जाए? इसके लिए
कम या अधिकतम आयु सीमा क्या है? इस संबंध में यह लिखना अनुचित नहीं
प्रतीत होता है कि विभिन्न राज्यों या राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न आयु के बच्चे को बाल
अपराध माना गया है।
उदाहरण स्वरूप भारतवर्ष में किसी बच्चे को बाल अपराधी
घोषित करने की निम्नतम उम्र 14 वर्ष तथा अधिकतम आयु 18 वर्ष है। इसी तरह
मिश्र में यह आयु क्रमशः 7 वर्ष से 15 वर्ष, ब्रिटेन में 11 से 16 वर्ष तथा ईरान में
11 से 18 वर्ष है। बाल अपराधियों के निम्नतम तथा अधिकतम आयु के संबंध
में कोई सार्वभौमिक धारणा प्रचालित नहीं हैं। इस वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि
एक निश्चित आयु तक के बालकों के अपराध को बाल अपराध कहा जाता है।
बाल अपराध की परिभाषा
बाल अपराध की परिभाषा इस प्रकार है -1. सिरिल बर्ट के अनुसार - ‘‘तकनीकी दृष्टि से एक बालक को उस समय
अपराधी माना जाता है जब उसकी समाज विरोधी प्रवृत्तियाँ इतनी गम्भीर हो जाएं
कि उसके विरूद्ध शासन वैधानिक कार्यवाही करें या कार्यवाही कराना आवश्यक हो
जाए।’’
2. मार्टिन न्यूमेयर के अनसुार- ‘‘एक बालक अपराधी निर्धारित आयु से कम
आयु का वह व्यक्ति है जो समाज विरोधी कार्य करने का दोषी है और जिसका
दुराचार कानून का उल्लघंन है।’’
3. एच. एच. लाऊ के अनुसार- ‘‘बाल अपराध किसी ऐसे बालक द्वारा किया
गया विधि विरोधी कार्य है जिसकी अवस्था कानून में बाल अवस्था की सीमा में
रखी गयी है और जिसके लिए कानूनी कार्यवाही तथा दंड व्यवस्था से भिन्न है।’’
4. सोल रूविन ने बाल अपराध के कानूनी अर्थ को एक पंक्ति में व्यक्त करते
हुए लिखा है कि:-
‘‘कानून जिस कार्य को बाल अपराध मानता है वही बाल अपराध है।’’
4. मावरर ने बाल अपराध की परिभाषा इस प्रकार दी है- ‘‘वह व्यक्ति जो
जान बूझकर इरादे के साथ तथा समझते हुए उस समाज की रूढ़ियों की उपेक्षा
करता है जिससे उसका संबंध है।’’
बाल अपराधी के लक्षण
बाल अपराधियों के कुछ सामान्य लक्षण -- बाल अपराधी की शारीरिक संरचना सामान्य गठीला शरीर शक्तिशाली तथा निडर होते है।
- वे स्वभाव से बेचैन उग्र बहिर्मुखी तथा विघटनकारी होते है।
- इनका व्यक्तित्व अनैतिक अत्यधिक संवेगशील, स्वार्थी तथा आत्मकेन्द्रित होते है।
- अदूरदश्री तथा अपराध के परिणाम से अनभिज्ञ रहते हैं।
- बाल अपराधी प्राय: सामान्य बालकों की अपेक्षा मनोस्नायु विकृति से पीड़ित होते है।
- बाल अपराधियों में इदम् (id) अहम् (ego) तथा पराहम् (super ego) में समुचित संतुलन का अभाव होता है।
- ये प्राय: विषादग्रस्त निराश हताश और गुमसुम दिखाई देते हैं।
- ये शासन सत्ता के विरोधी नियम कानून का उल्लंघन करने वाले तथा अविश्वासी प्रवृत्ति के होते है।
- ये अपनी किसी समस्या को सुलझाने के लिए सुनियोजित रूप से किसी कार्ययोजना का पूर्व निर्धारण नहीं करते हैं।
बाल अपराध की विशेषताएं
संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयार्क शहर के बाल न्यायालय अधिनियम में बाल अपराध की व्यावहारिक विशेषताओं का उल्लेख इस प्रकार किया गया है -- बाल अपराधी आदतन उद्दण्ड तथा आज्ञाओं का उल्लंघन करने वाले होते है
- यह प्राय: राजकीय नियमों एवं कानूनों का उल्लंघन करते है।
- इनकी संगीत आवारा, अनैतिक एवं चरित्रहीन व्यक्तियों के साथ होती है।
- इनका व्यवहार अनैतिक एवं अशोभनीय है।
- यह बिना आज्ञा के निरुद्देश्य देर रात तक घर से बाहर घूमते रहते हैं।
- कानूनी रूप से निषिद्ध स्थानों पर धूमने अवश्य जाते हैं।
- ऐसे बालक स्टेशनों मेलों एवं तीर्थ स्थानों पर भीख मांगते हुए प्राय: दिखाई पडते है।
- ये तस्करी आदि गैर कानूनी धंधो में लिप्त रहते है।
- इनमें स्कूल एवं घर से भागने की आदत होती है।
- ऐसे बालक समाज में सम्मानित पाने के बड़े उत्सुक रहते है। समाज में अपना स्थान पाने के लिए नीच से नीच कार्यकरने से नहीं चूकते।
बाल अपराध के प्रकार
अपराध के प्रकार कितने होते हैं? हावर्ड बेकर (1966: 226-38) ने बाल अपराध के चार प्रकार का उल्लेख किया है -
1. व्यक्तिगत बाल अपराध - यह उस अपराध की ओर संकेत करता है जिसमें अपराध कार्य करने में
केवल एक बालक ही लिप्त होता है और उसका कारण उस बाल अपराधी के
अन्तर होता है। इस आपराधिक व्यवहार की मनोचिकित्सकों ने अधिकांश व्याख्याएं
दी है।
2. समूह द्वारा समर्थित बाल अपराध - इस प्रकार के अपराध दूसरों की संगति में किये जाते है और इसका कारण
व्यक्ति के व्यक्तित्व में स्थित नहीं होता और न ही अपराधी के परिवार में, अपितु
व्यक्ति और पड़ोस की संस्कृति में होता है।
3. संगठित बाल के अपराध - यह बाल अपराध उन बाल अपराधों का उल्लेख करता है जो औपचारिक
रूप से संगठित गुटों को विकसित करके किये जाते है। इन बाल अपराधों का
विश्लेषण अमरीका में 1950 के दशक में किया गया और अपराधी उप संस्कृति की
अवधारणा को विकसित किया गया।
4. परिस्थितिवश बाल अपराध - परिस्थितिवश अपराध एक भिन्न परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करता है यहां यह मान्यता
है कि अपराध की जडें गहरी नहीं होती और अपराध के लिए प्रेरणाएं और उसे
नियंत्रित करने के साधन बहुधा अपेक्षाकृत सरल होते है। एक युवा व्यक्ति
आपराधिक कार्य अपराध के प्रति गहरी वचनबद्धता के बिना करता है क्योंकि उसमें
मनोवेग नियंत्रण कम विकसित होता है और या पारिवारिक नियंत्रण कम सुदृढ़
होते है और क्योंकि पकडें जाने पर भी उसके पास खाने के लिए अपेक्षाकृत बहुत
कम होता है।
बाल अपराध के कारण
यहां पर बाल अपराध के कारणों को तीन वर्गों में विभाजित कर उनका
अध्ययन किया गया है-
1. बाल अपराध के सामाजिक कारण
1. परिवार:- परिवार के संबंध में मुख्य परिस्थितियां है- (क) मग्न परिवार (ख) माता-पिता का रूख (ग) अपराधी भाई बहनों का प्रभाव (घ) माता पिता का चरित्र व आचार।2. विद्यालय- परिवार के बाद बालक के व्यक्तित्व पर उसके स्कुल का प्रभाव
पडता है। स्कूल से भाग जाना एक मुख्य बाल अपराध है। विलियमसन ने 1947
में अपने अध्ययन में यह देखा कि बाल अपराध में स्कूल से भागना, चोरियां तथा
यौन अपराध सबसे मुख्य थे और इसमें भी स्कूल छोड कर भाग जाना और स्कूल
के बाहर शहर में घूमना फिरना सबसे अधिक पाये गये। विलियमसन ने स्कूल से
भागने के मुख्य कारण माता-पिता द्वारा उपेक्षा अपराधियों के गिरोह में शामिल
होना अध्यापक द्वारा दण्ड विषय में कमजोरी तथा शिक्षा स्तर योग्यता से अधिक
होना जाये है।
3. अपराधी क्षेत्र- क्लिफोर्ड शॉ और मैक्के के अध्ययन के अनुसार कुछ क्षेत्र
बालकों के स्वस्थ विकास के लिए उपयुक्त नही होते। यह एक सामान्य बात है
कि पड़ोस और मुहल्लों का बालकों पर बड़ा उसर पडता है। सांख्यिकीय विधि का
प्रयोग करके मालर ने यह निष्कर्ष निकाला है न्यूयार्क शहर में बाल अपराध उस
क्षेत्र में अधिक होते थे। मनोरंजन का कोई साधन नहीं था बस्ती अस्थिर थी।
4. बुरी संगति- प्रमुख अपराधशास्त्री ए. एच. सदरलैण्ड के अनुसार अपराधी
व्यवहार दूसरे व्यक्ति से अन्त: क्रिया के द्वारा सीखे जाते है। सदरलैण्ड के शब्दों
में ‘कानून के उल्लंघन करने में सहायक परिभाषाओं की उपेक्षा अधिकता हो जाने
के कारण एक व्यक्ति अपराधी हो जाता है।’ बालकों में किसी को बुरी और किसी
को अच्छी संगती मिलती है। मनुष्य के व्यहवार पर उसके साथियों का काफी
असर पडता है।
5. स्थानान्तरण- स्थानान्तरण का भी बाल अपराध पर बुरा प्रभाव पडता है।
स्टुअर्ट ने बर्कले नगर के अध्ययन देखा है कि बाल अपराध ऐसे स्थान में अधिक
रहते थे जहां स्थानातरण अधिक था किंतु अपने परिवार की अपेक्षा वे स्वंय बहुत
कम गतिशील होते थें।
6. सामाजिक विघटन- सामाजिक विघटन में व्यक्ति का विघटन होता है।
समाज के विघटित होने पर अपराधियों की संख्या बढ जाती है। अत: सामाजिक
विघटन भी बाल अपराध का एक कारण है। आधुनिक औद्योगिक समाज में
समन्वय और समानता का बडा अभाव होता है इससे तनाव बढता है और युवक
युवतियों अपराध की ओर बढाते है।
2. बाल अपराध के मनोवैज्ञानिक कारण
1. मानसिक रोग- कुछ अपराधशास्त्रियों ने मानसिक रोग और अपराध में घनिष्ठ संबंध बताये है। बाल अपराधियों पर किये गये कुछ अध्ययनों में विभिन्न मानसिक रोग के रोगी पाये गये है और उनको दण्ड की नहीं बल्कि इलाज कार्य जरूरत है। कुछ मानसिक चिकित्सक साइकोपैथिक व्यक्तित्व को अपराध का कारण मानते है। साइकोपैथिक बालक ऐसे परिवार में पैदा होता है जहाँ प्रेम नियंत्रण व स्नेह का पूर्ण अभाव होता है।2. बौद्धिक दुर्बलता- बौद्धिक दुर्बलता को अपराध का कारण मानने वाले मत
के मुख्य प्रवर्तक गौडार्ड थे। डाक्टर गोरिंग ने लोम्ब्रोसों के मत का खण्डन करके
यह मत उपस्थित किया कि अपराध का कारण बुद्धि दोष है। गौडार्ड लिखते है
कि अपराध का सबसे बडा एकमात्र कारण बौद्धिक दुर्बलता है।
3. बाल अपराध के आर्थिक कारण
1. निर्धनता- गरीबी सभी बुराईयों की जननी है। बाल अपचार का एक प्रमुख कारण गरीबी होती है। गरीबी के कारण माता पिता अपने बच्चों की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं कर पाते परिणाम स्वरूप बच्चे चोरी, पॉकेटमारी राहजनी और हेराफेरी आदि असामाजिक कार्य करने लगते है।2. भुखमरी- निर्धनता के कारण लोग अपना भरण पोषण उचित ढंग से नही
कर पाते अत: भुखमरी का सामना करना पडता है भूखा व्यक्ति कोई भी पाप कर
सकता है।’’
3. बच्चों का नौकरी करना- निर्धनता के कारण परिवार के छोटे बालकों को
अपनी उदरपूर्ति के लिए छोटे-मोटे कामधंधे करने पडते है। निर्धन परिवारों के
बच्चे होटलों, सिनेमाघरो, दुकानों और धनी परिवारो में काम करते है फलस्वरूप
उनमें हीन भावनायें और मानसिक तनाव उत्पन्न होता है ऐसी स्थिति में रहने वाले
बालकों में नशाखोरी, धुम्रपान, जुआ, चोरी और वैश्यावृति की बुरी आदतें पड जाती
है।
3. मनोवैज्ञानिक दोषों का उपचार - मनोवैज्ञानिक दोष अपराध के महत्वपूर्ण
कारण है अत: बालकों को अपराधों से रोकने के लिए उनके मनोवैज्ञानिक दोषो का
उपचार अत्यंत आवश्यक है इसके लिए विद्यालयों में लगे हुए मनोवैज्ञानिक
क्लिनिक होना चाहिए जो बालकों के विषय में उचित देखभाल कर सकें तथा
परामर्श दे सकें।
बाल अपराध के रोकथाम के उपाय
1. समुचित पालन पोषण - मारपीट और अपमान बहुधा बालक को अपराध की राह पर ले जाता है। घर में वातावरण प्रेमपूर्ण होना चाहिए दूसरे बालक की जिज्ञासाओं के समाधान में बडी सावधानी की आवश्यकता है कोई बात पूछने पर बालक को झिझक दिया जाए या उससे झूठ बोल देने पर प्रभाव बडा बुरा पडता है। बहुधा बालको से यौन जिज्ञासाओं के विषय में झूठ बोल दिया जाता है बालक जब अपने साथियों या घर के नौकरों से सही बात का पा जाता है तब उन पर माता-पिता का झूठ खुला जाता है।बहुधा स्त्री पुरूष के परस्पर प्रेम व्यवहार के समय बालक
के आ जान पर वे अपराधी की सी मुद्रा बना लेते है या बालको को फटकार देते
है इससे बालक में अपराध ग्रंथी बन जाती है। आवश्यक यौन शिक्षा के अभाव में
अनेक बालक-बालिकाऐं बाल अपराध की राह पर अग्रसर हो जाते है। माता-पिता
बालक के सामने आदर्श होते है। उनके आपस में झगड़ों का और उनके चरित्र को
ठीक रखने के विषय में बालक के प्रति जिम्मेदारी महसूस करनी चाहिए वास्तव में
बालक को अपराध से बचाने का तरीका उसकी बुरी आदतों को रोकना नही बल्कि
उसमें अच्छी आदतें डालना है।
2. स्वस्थ मनोरंजन - मनोरंजन का व्यक्ति के जीवन में बडा महत्वपूर्ण स्थान
होता है स्वस्थ मनोरंजन के अभाव में बालक की अपराधी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन
मिलता है।
Gjb
ReplyDeleteWowwwwww
ReplyDeleteWow
ReplyDeleteSuper
ReplyDeleteMaja aagya padh kar
ReplyDeleteBal apradh ki rokhtham Ke liye Pahla kanun kab bana tha year
ReplyDelete1986 में बाल न्याय अधिनियम पारित किया गया जिसमें सारे देश में एक समान बाल अधिनियम लागू कर दिया गया। इस अधिनियम के अनुसार 16 वर्ष की आयु से कम के लड़के व 18 वर्ष की आयु से कम की लड़की द्वारा किए गए कानूनी विरोधी कार्यो को बाल अपराध का श्रेणी में रखा गया।
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