भारत में न्यायपालिका की उत्पत्ति औपनिवेशिक काल से मानी जाती है। 1773 में रेगूलेटिंग एक्ट (अधिनियम) पारित होने के पश्चात भारत में प्रथम सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई। यह कलकता में स्थापित किया गया जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश एवं तीन अन्य जज थे। इनकी नियुक्ति ब्रिटिश क्राउन के द्वारा की गयी थी। पहली बार सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना मद्रास में हुई तथा इसके बाद बंबई में।
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भारत में न्यायपालिका के कार्य
न्यायपालिका के कार्य का वर्णन, Functions of Judiciary in India न्यायपालिका निम्नलिखित कार्यों का सम्पादन करती है-
1. मुकदमे का निर्णय करना- व्यवस्थापिका द्वारा पारित कानूनों को कार्यपालिका लागू
करती है, न्यायपालिका उन व्यक्तियों को दण्डित करती है जो कानून का पालन नहीं
करते या कानूनों के विरूद्ध आचरण करते हैं। इसके अतिरिक्त न्यायपालिका दीवानी या
फौजदारी मामलों से सम्बन्धित विवादों पर निर्णय देती है।’’
2. संवैधानिक कानून की व्याख्या- भारत में व्यवस्थापिका द्वारा बनाये गये नियमों एवं
कानूनों की व्याख्या करने का अधिकार केवल सर्वोच्च न्यायालय को है।’’
3. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा- संविधान में उल्लेखित 6 प्रकार के मौलिक अधिकारों
की सुरक्षा का कार्य भी न्यायालय द्वारा किया जाता है।’’
4. परामर्श सम्बन्धी कार्य- न्यायपालिका परामर्श देने का भी कार्य करती है। हमारे देश
का उच्चतम न्यायालय आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रपति को कानूनी मामलों में परामर्श दे सकता
है लेकिन राष्ट्रपति उसके परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है।’’
5. संविधान की संरक्षिका- लिखित संविधान वाले देशों में न्यायपालिका संविधान की
संरक्षक होती है। व्यवस्थापिका द्वारा पारित ऐसा कानून जो संविधान के विरूद्ध हो
न्यायपालिका द्वारा अवैध घोषित किया जा सकता है।’’
6. लेख जारी करना- सामान्य नागरिकों या सरकारी अधिकारियों द्वारा जब अनुचित या
अनधिकृत कार्य किया जाता है तो न्यायालय उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए 5 प्रकार के
रिट जारी करता है।’’
7. उच्चतम न्यायालय का अभिलेखीय न्यायालय होना- भारत का उच्चतम न्यायालय
अभिलेख (रिकॉर्ड) न्यायालय के रूप में भी कार्य करता है। अभिलेख न्यायालय का यह तात्पर्य
है कि न्यायालय के समस्त निर्णयों को अभिलेख के रूप में सुरक्षित रखा जाता है।’’
इन निर्णयों को भविष्य में देश के किसी भी न्यायालय में पूर्व उदाहरणों के रूप में
प्रस्तुत किया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय को यह भी अधिकार प्राप्त होता है
कि वह अपनी मानहानि के लिए किसी भी व्यक्ति को जुर्माना अथवा कारावास का
दण्ड़ दे सकता है।’’