सस्वर वाचन का अर्थ, उद्देश्य, महत्व, गुण, भेद

सस्वर का अर्थ है जोर से अथवा स्वयं सहित वाचन करना। हम देखते है अनेक अनौपचारिक अवसरों पर व्याख्यान देते समय वाद-विचार एवं गोष्ठियों में अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से कहने के लिए यही वाचन का रूप प्रयुक्त होता है।

शुद्ध, प्रभावपूर्ण वाचन श्रोताओं पर विशिष्ट प्रभाव डालता है। यही नहीं बल्कि वक्ता का अपना व्यक्तित्व भी निखर उठता है। किसी भी अवसर पर बातचीत करते समय जिसका वाचन अच्छा है, अन्य की अपेक्षा दूसरों को शीघ्र प्रभावित कर लेता है। यदि कोई व्यक्ति किन्ही श्रोताओं के बीच शुद्ध व प्रभावशाली नहीं बोल पाये तो इस व्यक्ति का लोग मजाक बनाये बिना नहीं रहेंगे तथा अपनी हास्यास्पद स्थिति को देखकर वह अपने वाचन को मन ही मन अवश्य कोसेगा।

इसी प्रकार सेमीनार, गोष्ठी, सम्मेलन हो, चाहे सामाजिक या पारिवारिक उत्सव हो या अखण्ड रामायण पाठ हो। इनमें ऐसा व्यक्ति जिसका वाचन अच्छा, शुद्ध न हो, जाने का साहस ही नहीं करता अर्थात् यहां यह तात्पर्य है कि वाचन शब्द में ही सस्वर वाचन का अर्थ भाव निहित है। सस्वर वाचन में व्यक्ति में आत्मविश्वास जाग्रत होता है। भाषा प्रयोग की क्षमता विकसित होती है। संकोच समाप्त हो जाता है और नेतृत्व के गुणों का विकास होता है।

सस्वर वाचन का अर्थ

सस्वर वाचन का अर्थ - जब लिखित भाषा में व्यक्त भावों एवं विचारों को समझने के लिए ध्वन्यात्मक उच्चारण करके पढ़ते है तो वह सस्वर वाचन कहलाता है। 

सस्वर वाचन के उद्देश्य 

वाचन पर बाल्यावस्था में ही माता-पिता व शिक्षकों द्वारा उचित ध्यान दिया जाए तो वह प्रभावी एवं त्रुटि रहित हो सकता है-
  1. शुद्धोच्चारण करने योग्य बनाना।
  2. उचित स्वयं, यति, गति और लय से पठन की योग्यता प्रदान करना।
  3. ध्वनियों के उचित आरोह-अवरोह तथा विराम आदि चिन्हों को ध्यान में रखकर पठन में निपुण बनाना।
  4. विषयवस्तु को पढ़कर अर्थ एवं भाव ग्रहण करने की योग्यता प्रदान करना।
  5. मौखिक, पठन द्वारा आत्मविश्वास एवं आत्म-निर्भरता विकसित करना।
  6. वाचन करते या पढ़ते समय बार-बार बीच में न टोके। इससे वाचक में प्रवाह नहीं आ पाता तथा उसमें आत्मविश्वास नहीं पनप पाता।
सस्वर वाचन के निम्न उद्देश्य पर अध्यापक की दृष्टि रहनी चाहिये -
  1. शुद्ध व स्पष्ट उच्चारण के साथ पढ़ना, प्रायः छात्र श तथा स के, क्ष तथा छ के उच्चारण में भेंद नहीं कर पाते है। बहुत-से शिक्षक तक सकुन्तला, सवीकार, अच्छर आदि बोलते देखे गये है।
  2. विराम चिन्हों पर अवश्य ध्यान रखे कि छात्र उचित विराम चिन्हों अनुसार पढ़ रहा है या हनीं।
  3. उचित भावानुकूल उतार-चढाव के साथ पढ रहा है या नहीं।
  4. श्रोताओं की संख्या के अनुसार अपने स्वर को तीव्र एवं मन्द रूप से पढ़ रहा है या नहीं।
  5. बाल के उच्चारण पर स्थानीय प्रभाव व ग्रामीण प्रभाव न पड़ने देना।

सस्वर वाचन का महत्व

  1. सस्वर वाचन से झिझक, संकोच व हिचकिचाहट आदि का निराकरण होता है।
  2. शब्दोच्चारण शुद्ध होता है।
  3. अक्षर विन्यास भी शुद्ध होता है।
  4. शब्द भण्डार में वृद्धि होती है।
  5. दृश्येन्द्रियाॅं, ध्वनि यन्त्र एवं मस्तिष्क तीनों प्रशिक्षित होते है।
  6. सस्वर वाचन के अभ्यास से वाद-विवाद एवं भाषण कला में निपुण होते है।
  7. प्रारम्भिक स्तर पर सस्वर वाचन का विशेष महत्व पड़ता है।
  8. इससे नवीन शब्दों, सूक्तियों, लोकोक्तियों व मुहावरों से परिचय प्राप्त करते है।
  9. इससे को स्वराघात व बलाघात का भी समुचित ज्ञान हो जाता है।

उत्तम सस्वर वाचन के गुण

अच्छे वाचन के निम्नलिखित गुण होने चाहिये -

(1) ध्वनियों का ज्ञान - अ, आ, इ,ई, क, ख, ग इत्यादि ध्वनियों का ज्ञान होना चाहिए।

(2) उच्चारण की शुद्धता- शब्दों के उच्चारण की शुद्धता होनी चाहिये। क्षत्रिय-छत्रिय, स्त्री-इस्त्री, स्कूल-सकूल, विद्यालय-विधालय, मर्मल्कर्म, समाचार आदि का शुद्ध उच्चारण करना चाहिये।

(3) विराम चिन्ह -जैसे- 
       रोको, मत जाने दो।
       रोको मत, जाने दो।
       मारो, मत जाने दो।
       मारो मत, जाने दो।

विराम चिन्ह का ध्यान में रखकर ही वाचन करना चाहिये अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

(4) स्पष्टता- वाचन इस प्रकार हो कि सभी श्रोता स्पष्ट रूप से समझ सके। श्रोताओं के समूह में उतनी ही आवाज हो कि सभी श्रोता स्पष्ट रूप में समझ सकें।

(5) प्रवाह- न दु्रतगति से पढ़े तथा न ही रूक-रूककर पढ़े अर्थात् प्रवाह के साथ पढ़े।

(6) उपयुक्त बलाघात- अच्छा वाचक बलाघात पर पूर्ण ध्यान रखता है। किस अक्षर पर कितना बल लगाना है और किस पर कम बल, जैसे-कमल व कमल शब्द है, इसमें आगे का अक्षर अर्द्धअक्षर के रूप में उच्चारित होगा।

(7) अर्थ की प्रतीति- सुन्दर वाचन वह है जहाॅ शब्दों का अर्थ वाचन के समय ही समझ जाय। यदि गति, लय, ताल, विराम के हिसाब से अध्यापक वाचन करता है तो स्वाभाविक रूप में ही अर्थ की प्रतीति हो जायेगी।

(8) स्वर में रसात्मकता - दुख पूर्ण (करूण) रस सामग्री में वीर रस या ओज नहीं दिखाना चाहिये। श्रृंग्रार रस की विषय सामग्री वीभत्स रस की भाॅति न हो।

(9) वाचन की मुद्रा- वाचक की मुद्राएं निम्नांकित है-
  1. सिर नही हिलाता।
  2. हाथ नहीं पटकता।
  3. अंगुलियां को नहीं चलाता।
  4. न झुककर पढ़ता है न अकड़कर पढ़ता है।
  5. पैरों से तबला नहीं बजाता ।
  6. पुस्तक विकृत ढ़ंग से नहीं पढ़ता।
(10) रूचि- यदि अच्छा वाचन हो रहा है तो श्रोता सुनने में रुचि लेत े है अर्थात् ऊब जाते है।

सस्वर वाचन के भेद

सस्वर वाचन के दो भेद है- (1) आदर्श वाचन (2) अनुकरण वाचन।

ये दोनों वाचन शिक्षक द्वारा भी हो सकते है तथा छात्र द्वारा भी हो सकते है अर्थात् आदर्श वाचन व अनुकरण वाचन छात्र व शिक्षक भी कर सकते है। इनमें दोनों के द्वारा सस्वर वाचन ही होता है।

अब आदर्श वाचन भी दो प्रकार से होता है - (क) व्यक्तिगत वाचन/पाठन, (ख) सामूहिक या समवेत पाठन/वाचन। यहां व्यक्तिगत वाचन शिक्षक द्वारा भी हो सकता है जो आदर्श पाठ ही कहलायेगा तथा विद्यार्थी द्वारा होता तो अनुकरण पाठ कहलायेगा।

समवेत पाठन/वाचन वह है जिसमें दो या अधिक साथ जोर-जोर से पढ़ते है तथा इस पठन का एक लाभ है जिन में झिझक होती है, साहस की कमी होती है। अपने कण्ठ और उच्चारण पर जिन्हें विश्वास नहीं होता है और उचित गति से पठन/पाठन या वाचन नहीं कर सकते, वे भी पठन/वाचन की इस क्रिया में भाग ले सकते है।

समवेत वाचन की उपयोगिता तभी है जब शिक्षक निम्नांकित सावधानियां बरते -
  1. समवेत वाचन/पठन प्राथमिक कक्षाओं में ही कराना चाहिये।
  2. जहां तक सम्भव हो एक टोली का वाचक गति, गायन सम्बन्धी योग्यता समान हो।
  3. प्रत्येक टोली का एक नेता हो और वह पाठक कला में अपेक्षाकृत निपुण होना चाहिए।
  4. अध्यापक को प्रत्येक टोली के पास जाकर निरीक्षण करना चाहिये और आवश्यक निर्देश भी देने चाहिये।

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