स्वरों तथा वर्णों की वह अनुपम रचना, जिसे सुनकर आनन्द की प्राप्ति हो, राग कहलाती
है। विद्वानों ने राग की परिभाषा इस प्रकार दी है:-
अर्थात ‘‘ध्वनि की वह विशेष रचना जिसको स्वरों तथा वर्णाें द्वारा विभूषित किया गया हो और सुनने वालों के चित्त को मोह ले, राग कहलाती है।’’ राग से विभिन्न रसों की अनुभूति होती है। इसलिए राग की परिभाषा में कहा गया है ‘रसात्मक राग’। इस रसानुभुति से ही सुनने वालो को आनन्दानुभुति होती है।
प्राचीनकाल में राग के 10 लक्षण अथवा नियम माने जाते थे। इसलिए प्रत्येक राग को उन नियमों के अनुसार गाना पड़ता था तथा नियमों के विरूद्ध राग अशुद्ध माना जाता था। राग के प्राचीन 10 लक्षण अथवा नियम इस प्रकार हैं - ग्रह, अंश, न्यास, अपन्यास, औडव़ , षाडव़ , अल्पत्व, बहुत्व, मन्द्र और तार। इनमें से कुछ नियमों का जैसे - ग्रह, न्यास या अपन्यास का प्रचार आधुनिक समय में नहीं है। बाकी नियम आजकल भी प्रचलित हैं।
इस तरह कुल मिलाकर 9 जातियां होती हैं, जिनके अन्तर्गत प्रत्येक हिन्दुस्तानी राग रखा जा
सकता है। ये जातियां उसके स्वरों की संख्या के साथ इस प्रकार है:-
योऽसौ ध्वनि विशेषस्तु स्वरवर्ण विभूषितः।
रंजको जनचित्तानां स च रागः उदाहृतः। मतंग- बृहद्देशी, श्लोक 264।
अर्थात ‘‘ध्वनि की वह विशेष रचना जिसको स्वरों तथा वर्णाें द्वारा विभूषित किया गया हो और सुनने वालों के चित्त को मोह ले, राग कहलाती है।’’ राग से विभिन्न रसों की अनुभूति होती है। इसलिए राग की परिभाषा में कहा गया है ‘रसात्मक राग’। इस रसानुभुति से ही सुनने वालो को आनन्दानुभुति होती है।
प्राचीनकाल में राग के 10 लक्षण अथवा नियम माने जाते थे। इसलिए प्रत्येक राग को उन नियमों के अनुसार गाना पड़ता था तथा नियमों के विरूद्ध राग अशुद्ध माना जाता था। राग के प्राचीन 10 लक्षण अथवा नियम इस प्रकार हैं - ग्रह, अंश, न्यास, अपन्यास, औडव़ , षाडव़ , अल्पत्व, बहुत्व, मन्द्र और तार। इनमें से कुछ नियमों का जैसे - ग्रह, न्यास या अपन्यास का प्रचार आधुनिक समय में नहीं है। बाकी नियम आजकल भी प्रचलित हैं।
राग के नियम या लक्षण
आधुनिक समय में राग के निम्न नियम या लक्षण माने जाते हैं:-- राग को किसी थाट से उत्पन्न होना चाहिए।
- राग में कम से कम 5 स्वर होने आवश्यक है।
- राग में आरोह तथा अवरोह दोनों आवश्यक है।
- राग में वादी-संवादी स्वरों का होना आवश्यक है।
- राग में रंजकता का होना आवश्यक है। राग की परिभाषा में दिया गया ‘रंजको जन चितानां’ अर्थात रंजकता होने से ही सुनने वाले मुग्ध हो सकेंगे।
- राग में कभी षड़ज स्वर वर्जित नहीं हो सकता। षड़ज स्वर को आधार स्वर माना जाता है। 7. राग में किसी रस की अभिव्यक्ति होनी चाहिए।
राग की जातियां
राग नियमों के अनुसार किसी राग में कम से कम 5 और अधिक से अधिक 7
स्वर हो सकते हैं। रागों में लगने वाले स्वरों की भिन्न-भिन्न संख्याओं के कारण रागों को
अलग-अलग तीन विभागों में बाॅटा गया है। इन्ही को जातियां कहते हैं।
1. सम्पूर्ण - जिस राग में सातों स्वर लगे उसे सम्पूर्ण जाति का राग कहते हैं। जैसे - राग बिलावल
1. सम्पूर्ण - जिस राग में सातों स्वर लगे उसे सम्पूर्ण जाति का राग कहते हैं। जैसे - राग बिलावल
2. षाड़व़ - जिस राग में केवल 6 स्वर लगे उसे षाडव़ जाति का राग कहते हैं। जैसे - राग मारवा
3. औड़व़ - जिस राग में केवल 5 स्वर लगे उसे औडव़ जाति का राग कहते हैं। जैसे - राग भूपाली
परन्तु जैसा कि राग लक्षणों में आपने जाना कि राग में आरोह तथा अवरोह दोनों होने चाहिए,
आरोह तथा अवरोह दोनों स्वरों की संख्या एक न हो तथा कम या अधिक हो, जैसे राग खमाज है।
इसके आरोह में ‘रे’ वर्जित होने से 6 स्वर लगते हैं परन्तु अवरोह में 7 स्वर लगते हैं इसलिए
आरोह-अवरोह का ध्यान रखते हुए तीन जातियों में से प्रत्येक को तीन-तीन उपजातियों में बांटा गया
है जो इस प्रकार है:-
सम्पूर्ण | षाड़व | औड़व |
---|---|---|
सम्पूर्ण - सम्पूर्ण | षाडव - सम्पूर्ण | औड़व - सम्पूर्ण |
सम्पूर्ण - षाड़व | षाड़व - षाड़व | औड़व - षाड़व |
सम्पूर्ण - औडव़ | षाड़व - औडव़ | औडव़ - औड़व |
- सम्पूर्ण - सम्पूर्ण - आरोह में 7 स्वर अवरोह में भी 7 स्वर
- सम्पूर्ण - षाड़व - आरोह में 7 स्वर अवरोह में 6 स्वर
- सम्पूर्ण - औड़व - आरोह में 7 स्वर अवरोह में 5 स्वर
- षाड़व - सम्पूर्ण - आरोह में 6 स्वर अवरोह में 7 स्वर
- षाड़व - षाड़व - आरोह में 6 स्वर अवरोह में भी 6 स्वर
- षाड़व - औड़व - आरोह में 6 स्वर अवरोह में 5 स्वर
- औड़व - सम्पूर्ण - आरोह में 5 स्वर अवरोह में 7 स्वर
- औड़व - षाड़व - आरोह में 5 स्वर अवरोह में 6 स्वर
- औड़व - औड़व - आरोह में 5 स्वर अवरोह में भी 5 स्वर