उज्जायी प्राणायाम के लाभ, विधि एवं सावधानियां

उज्जायी प्राणायाम करने की विधि

इस प्राणायाम का उल्लेख योग के प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलता यह परम्परागत से प्रचलित प्राणायाम है। इस प्राणायाम को करने के लिये किसी भी सुखासन मे बैठ जाते है जैसे बज्रासन, पद्मासन, सिद्धासन या फिर कोई भी आराम दायक स्थिति में बैठकर इस प्राणायाम को करते है । 

उज्जायी प्राणायाम करने की विधि

आसन में बैठकर दोनों नासा पुटों से जार लगाकर श्वास को अंदर लेते है (पूरक की क्रिया) फिर दोनों नासा पुटों से रेचक की क्रिया करते है । पूरक और रेचक करते समय श्वासनली को हल्ला सा संकुचित करके रखते है जिससे पूरक तथा रेचक करते समय श्वासनली से टकराती हुई अंदर जाये तथा श्वास नली से टकराती हुई बाहर जाये जिससे घर्षण की आवाज उत्पन्न हो । जब इस प्राणायाम में पूरक से रेचक दुगना होने लगे फिर त्रिबंधो के साथ में उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास करते है।

दोनों नासा पुटों से पूरक करते है इसके बाद त्रिबंधों के साथ कुम्भक यथा शक्ति कुम्भक करने के बाद बंध हटाकर रेचक करते है, तब इस प्राणायाम का एक फेरा पूरा होता है।

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठकर इस आसन को करना चाहिए। इसके अंतर्गत गले को सिकाडे कर अंदर की तरफ सांस लेनी होती है। उज्जायी प्राणायाम से व्यक्ति अपनी सांसों पर विजय प्राप्त करता है। इसलिए इस प्राणायाम को अंग्रेजी में Victorious Breath कहा जाता है। उज्जायी प्राणायाम करते समय समुद्र की अवाज के समान ध्वनि उत्पन्न होती है। जिस कारण इसे Ocean Breath भी कहा जाता है। 
  1. इस प्राणायाम को करते समय मुंह बंद रखना होता है। 
  2. उज्जायी प्राणायाम करने के लिए आप किसी भी आसन में बैठ सकते हैं। 
  3. जीभ को मोड़कर खचरी मुद्रा लगा लें। जीभ को पीछे की ओर मोड़कर तालू से जीभ के अग्र को लगाना खचरी मुद्रा की राजयोग पद्धति है।
  4. गले, सिर तथा पीठ को सीधा कर लें।
  5. आंखों को बंद कर ले।
  6. संपूर्ण शरीर को शिथिल करें। 
  7. कंठ के स्नायु को tight करना होता है। 
  8. कंठ को संकुचित कर नाक से मंद तथा गहरी श्वास लें। 
  9. सरसराहट की ध्वनि गले से निकाले। यह ध्वनि छोटे बच्चे की नींद में आनेवाली आवाज के समान होगी। 
  10. उज्जायी प्राणायाम शुरुआत में 2 से 3 मिनट तक करें और धीरे-धीरे समय बढ़ाते हुए 10 मिनट तक कर सकते हैं। 
  11. सांस छोड़ने की अवधि सांस लेने की अवधि से दोगुनी रखें। 
  12. ध्यान रखें कि उज्जायी प्राणायाम करते समय आवाज आपके कंठ के ऊपरी हिस्से से निकलनी चाहिए न कि नाक के सामने वाले हिस्से से। 
  13. उज्जायी प्राणायाम हम कभी भी कर सकते हैं पर अधिक लाभ के लिए इसका अभ्यास सुबह की ताजी हवा में खाली पेट करना चाहिए। 

उज्जायी प्राणायाम के लाभ

जब भी उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास करते है, तो सबसे ज्यादा लाभ अस्थमा या दमा के मरीज को होता है, क्योंकि श्वासनली में Swelling या Infection हो गया हो, उज्यायी प्राणायाम से श्वासनली में घर्षण पैदा होता है, जिससे गले के ऊपर गर्मी पैदा होती है, उस जगह को सेंक मिलता है, इससे काफी लाभ होता है। श्वास जब फेफड़ो में जाती है, तो श्वासनली से घर्षण करती हुई जाती है, जिससे Heat उत्पन्न होती है, और सीधे फेफड़ों में प्रवेश करती है, जिससे गर्मी ज्यादा होती है। फेफड़ों में गर्मी पैदा होती है अतः दमा रोग निवारण में सहायता मिलती है। 

जब हम इस प्राणायाम का अभ्यास करते समय त्रिबंधो के साथ करते है, तो अलग अलग में बंधो के अलग-अलग जगह पर लाभ प्राप्त होता है, जैसे मूलबंध के कारण गुदाद्वार, जालंधर बंध के कारण गले पर और उड्डियान बंध के पट पर, इन जगहों पर जो बीमारी होती है बंधों के द्वारा दूर हो जाती है ।

सावधानियाँ

1. पूरक तथा रेचक करते समय श्वासनलिका को संकुचित करना अत्यंत आवश्यक है। पूरक तथा रेचक करते समय गले से जो ध्वनि निकलती है वे ऐसी होनी चाहिये जैसे रोने के बाद छोटा बच्चा सिसिकिया लेता है, ऐसी ध्वनि गले पर होना चाहिये ।

2. बहुत से लाग उज्जायी प्राणायाम करते समय गले से र्खराटे की आवाज या गाय जैसी आवाज निकालते है यह पूर्ण रूप से गलत है।

3. पूरक के बाद कुम्भक तथा रेचक के साथ त्रिबंधो का उपयोग करना चाहिये किंतु जिंहे पेष्टिक अल्सर, हृदय रोग हो उन्हें उड्डियान बंध नहीं लगाना चाहिये तथा जिन्हें सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस हो ऐसे लोगों को जालंधर बंध का उपयोग नहीं करना चाहिये क्योंकि जालंधर बंध में धमनियों (Arteries) में दबाव आता है, जिससे Blood का Flow रूक जाता है जिससे सर्वाईकल में दर्द होता है, किसी भी प्राणायाम को करते समय हमेशा मेरूदंण्ड सीधा रहना चाहिये।

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