बाल अपराध के कारण

बाल अपराध के निश्चित आयु (18 वर्ष से कम आयु) के नीचे व्यक्ति द्वारा किया गया किसी नियम या कानून का उल्लंघन है। यदि विधिक दृष्टि से कदाचार या बाल अपराध की व्याख्या की जाये तो यह उजागर होता है कि राज्य के बालकों के लिए जिन व्यवहारों का किया जाना कानून द्वारा निषिद्ध किया हो, बालकों द्वारा उन्हीं व्यवहारों को किया जाना बाल अपराध है। वैसे तो प्रत्येक बालक के व्यवहार में चंचलता, हठवादिता और शैतानी का पुट अवश्य होता है, परन्तु उसका यह व्यवहार जब निर्धारित मानदण्डों को लांघने लगता है तब उसे बाल - अपराधी की संज्ञा दी जाती है। 

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एस० चन्द्रा के अनुसार "यह शैतानी जब एक ऐसी आदत के रुप में विकसित हो जाती है जो कि समाज द्वारा प्रतिष्ठित व्यवहार - प्रतिमान की सीमाओं को पार कर जाती है और उससे जो व्यवहार उभर का आता है उसे बाल - अपराध कहा जाता है ।"

डॉ० सेठाना (1958) के अनुसार "बाल - अपराध से तात्पर्य किसी स्थान विशेष के नियमों के अनुसार एक निश्चित आयु से कम के बच्चे अथवा किशोर द्वारा किये जाने वाला अपराध है ।

लैण्डिस एण्ड लैण्डिस के अनुसार " अपराध वह कार्य है जिसे राज्य ने समूह के कल्याण के लिए हानिप्रद घोषित कर दिया है और जिसे करने पर राज्य दण्ड दे सकता है।

संयुक्त राज्य अमरीका (यू०एस०ए० ) के एक राज्य ओहियो के एक कानून के अनुसार बाल अपराध की व्याख्या इस प्रकार की गयी-

"वह बालक अपराधी है जो नियमों को तोड़ता है, आवारागर्दी करता है तथा जिसे आज्ञा का उल्लंघन करने की आदत पड़ गयी है। उसका आचरण इस प्रकार का होता है कि उससे उसके अलावा अन्य लोगों को स्वास्थ्य और नैतिकता को हानि पहुँचा सकती है, वह अपने माता पिता की आज्ञा प्राप्त किये बिना वैवाहिक संबंध स्थापित करता है ।" 

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिरिल बर्ट ने अपनी लोकप्रिय पुस्तक अपराधी बालक में बाल अपराध की व्याख्या इस प्रकार की है-

“तकनीकी दृष्टि से एक बालक को उस समय अपराधी माना जाता है जब उसकी समाज विरोधी प्रवृत्तियां इतनी गम्भीर हो जाए कि उसके विरुद्ध शासन वैधानिक कार्यवाही करे या कार्यवाही करना आवश्यक हो जाय ।"

स्किनर के अनुसार "किसी कानून को उस उल्लंघन के रुप में बाल अपराध परिभाषित किया जाता है जो किसी व्यस्क द्वारा किये जाने पर अपराध होता है "

हरबर्ट के अनुसार " बाल अपराधी वह व्यक्ति होगा जिसका दुर्व्यवहार अपेक्षाकृत रुप से गम्भीर कानूनी अपराध है, जो उसके विकास के स्तर के अनुकूल नहीं है एवं वह व्यवहार उस संस्कृति के अनुकूल नहीं है, जिसमें उसका पालन-पोषण हुआ है।" 

गिलिन और गिलिन के अनुसार "समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से एक बाल अपराधी वह व्यक्ति है जिसके व्यवहार को समाज अपने लिए हानिकारक समझता है और इसलिए यह उसके द्वारा निषिद्ध होता है। 

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बाल अपराध के कारण

मनोवैज्ञानिकों ने इन अध्ययनों के परिणामों के आधार पर बाल अपराध के अनेक किन्तु पृथक-पृथक कारण बताये हैं । समन्वित रुप से देखा जाए तो बालक के व्यक्तित्व तथा व्यवहार को प्रभावित तथा निर्देशित करने वाले सभी ऋणात्मक कारक उसकी अपराधी प्रवृत्ति के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं इनके निम्न कारण हो सकते हैं-

(क) आनुवांशिक कारण

अनेक वंशानुक्रमवादियों तथा अपराधशास्त्रियों ने वंशानुक्रम को बाल - अपराध का मूल कारण माना है। इनमें से लोम्ब्रासी, ट्रेडगोल्ड, डगडेल तथा हेनरी आदि के अनुसार बालक, बाल- अपराध की प्रवृत्ति तथा विशेषताएं माता-पिता से वंशानुक्रम के द्वारा प्राप्त करता है अर्थात यह एक जन्मजात प्रवृत्ति होती है किन्तु अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों के आधार पर इस विचारधारा को गलत सिद्ध कर दिया है। 

(ख) शारीरिक कारण

कुछ विद्वानों ने शारीरिक अक्षमता तथा अस्वस्थता व शारीरिक संरचना सम्बन्धी दोषों को अपराधी व्यवहार से सम्बन्धित माना है। इनमें क्रेशमर, शेल्डन, ग्ल्यूक्स, तथा उदय शंकर प्रमुख हैं। शेल्डन के अनुसार मांसल बालक अपराधी प्रवृत्ति की ओर जल्दी उन्मुख होते हैं । 

उदयशंकर बाल अपराधियों की शारीरिक संरचना के विषय में लिखते हैं- " शारीरिक अस्वस्थता अथवा कमजोरी बहुत छोटा या बहुत लम्बा कद व डीलडौल, शारीरिक अंग प्रत्यंगों में कोई गम्भीर दोष अथवा खराबी बालक में प्रायः हीन भावना को जन्म देती है । फलस्वरुप अपनी कमियों की क्षति पूर्ति के लिए वह अधिक आक्रामक हो उठते हैं और इस तरह धीरे-धीरे उनमें अपराध मनोवृत्ति घर करने लगती है । 

बाल अपराध के शारीरिक कारणों में से कुछ कारणों को निम्न बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

(i) यदि किसी बालक का शारीरिक विकास उसी आयु के बालकों से तीव्र या मन्द होता है, तो उसके समायोजन में कठिनाई उपस्थित हो सकती है। वे बालक अपने साथियों से बड़े या छोटे प्रतीत होते हैं । यह तथ्य उनमें असन्तोष उत्पन्न कर देता है और वे कभी-कभी असामाजिक व्यवहार करने लगते हैं ।

(ii) कभी-कभी शारीरिक परिवर्तन भी बालापराध का कारण बन जाता है । उदाहरणस्वरुप, लड़कियों में कभी-कभी ऋतुस्राव के समय अपराधीपन बढ़ जाता है।

(iii) कभी-कभी ग्रन्थियों का स्राव समुचित रूप से न होने पर बालकों का व्यक्तित्व ठीक प्रकार से विकसित नहीं होता। ऐसे बालक भी अपराधी मनोवृत्ति का शिकार जल्दी हो जाते हैं।

(iv) यदि बालक में कोई शारीरिक दोष है और साथी लोग उसका मजाक उड़ाते हैं तो भी प्रतिक्रियास्वरुप उसके व्यवहार में असामाजिकता आ सकती है। 19

(ग) मानसिक कारण

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बौद्धिक क्षमताओं को अपराधी प्रवृत्ति से सम्बन्धित माना है। इनमें से मुख्य गोडार्ड, हीली व ब्रोनर हैं। हीली तथा ब्रोनर ने बाल- अपराधियों पर किए अपने अध्ययन में पाया कि 37 प्रतिशत बाल - अपराधी अवसामान्य स्तर की बौद्धिक क्षमता रखते हैं । इसके आधार पर हीली ने मानसिक न्यूनता को अपराध का सबसे बड़ा कारण माना है । 

गोडार्ड के मत में भी मानसिक न्यूनता वाले व्यक्ति में अपराधी प्रवृत्ति पाये जाने की सम्भावनाएं अधिक होती हैं। इनके विपरीत बर्ट के अनुसार मानसिक न्यूनता आवश्यक रूप से अपराधी प्रवृत्ति से सम्बन्धित नहीं होती है। उन्होंने अपने अध्ययन में अपराधियों की औसत बुद्धि लब्धि 85 पायी थी, जिसमें कुछ उत्तम बुद्धि बालक भी शामिल थे। 

(घ) मनोवैज्ञानिक कारक

(i) बौद्धिक निर्बलता– मनोवैज्ञानिकों की मान्यता है कि सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा बाल अपराधियों में कुछ कम बुद्धि होती है । अनुसंधानों से यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि बाल–अपराधियों में बुद्धि - लब्धांक प्रायः 75 से कम पाया जाता है । गोडार्ड, ग्लूक, एवं ग्लूक, सिरिल बर्ट, हीली ब्रुनर तथा गोरिंग आदि विद्वानों ने अपने शोध अध्ययनों में उक्त मत का समर्थन किया है।

(ii) संवेगात्मक - संवेगात्मक अस्थिरता बाल अपचार का एक प्रमुख कारण है । हीली और ब्रुनर ने अपने अध्ययनों में पाया कि लगभग 91 प्रतिशत बाल - अपराधी ऐसे थे, जो अपने जीवन में अप्रसन्न, असन्तुष्ट या फिर मानसिक रूप से परेशान थे। इसी प्रकार बर्ट महोदय ने अपने अध्ययन में पाया कि 9 प्रतिशत बाल–अपराधियों में स्वाभावगत अस्थिरता थी । उनके अनुसार बाल - अपराधियों में स्वभावगत अस्थिरता अधिक होती है। संवेगात्मक अस्थिरता के कारण ही बालक में क्रोध, कायरता, असुरक्षा, भय एवं विद्रोही मनोवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है, जो उसे अपराधी वृत्ति की ओर ले जाती है ।

(iii) मानसिक रोग- सिरिल बर्ट के अनुसार अधिकांश बाल - अपराधी मानसिक रोगी होते हैं। विषम मानसिक, पारिवारिक या सामाजिक परिस्थितियों के कारण पहले किसी मानसिक रोग से ग्रसित होते हैं फिर उनमें पागलपन की स्थिति बनती है, परन्तु पागलपन के लक्षण इतने धूमिल होते हैं कि उन्हें पागल नहीं कहा जा सकता।
ऐसे बालकों का व्यवहार असामाजिक होता है, उनमें सामाजिक अभियोजन की क्षमता नहीं होती। 

डॉ० गोडार्ड ने ओहियो में एक शोध अध्ययन किया और देखा कि 30 प्रतिशत बाल - अपचारी मानसिक रोग से पीड़ित थे । अत्यधिक चिन्ता, मिर्गी, अश्लील विचार तथा अति संवेदनशीलता आदि मानसिक रोग हैं, जो बालक को अपचारी वृत्ति की ओर उन्मुख करते हैं। ऐसे बालक स्वार्थी, आत्मकेन्द्रित, कामुक, क्रोधी, विद्रोही तथा बदले की भावना जैसे मानसिक रोगों से ग्रस्त होते हैं । मनोचिकित्सक इन लक्षणों को मानसिक रोग मानते हैं और बाल - अपराधी प्रवृत्ति के लिये उत्तरदायी मानते हैं ।

(iv) मनोस्नायु विकृति- कुछ मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकाला है कि मनोस्नायुविकृति से ग्रसित बालक प्रायः अपचारी बन जाते हैं । लोवेल और मेटफेसल ने इस तथ्य को परखने के लिये अध्ययन किया और देखा कि मनोस्नायु विकृति से पीड़ित बालकों में अन्य बाल—अपराधियों की तुलना में अपराध की प्रवृत्ति अधिक होती है । यद्यपि कुछ मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि मनोस्नायु विकृति तथा अपराध में कोई सम्बन्ध नहीं होता है।

(v) तीव्र कामना– यह देखा जाता है कि बालक दूसरों से प्यार पाने की इच्छा रखता है, अपनी सुरक्षा चाहता है, आत्मसम्मान चाहता है और आत्मप्रदर्शन की भी इच्छा रखता है, यह सभी तीव्र कामनायें हैं । तीव्र कामनाओं के पूरा न होने पर अथवा उन पर नियंत्रण न रख पाने की स्थिति में उनमें अपराधी प्रवृत्तियाँ विकसित हो जाती हैं ।

(vi) हीन भावना- कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं, जिनके जीवन में आन्तरिक संघर्ष, निराशा और अवरुद्ध इच्छायें पायी जाती हैं। अवरुद्ध इच्छाओं का अवदमन करने से भावना ग्रन्थियाँ बनती हैं, भावना ग्रन्थियों के उत्पन्न होने से व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन बाधित होता है और वह अपराध की ओर उन्मुख होता है। 

(ड़) सामाजिक कारक

अपराध कार्य एक असामाजिक व्यवहार है जो जन्मजात न होकर अर्जित होता है । अतः सामाजिक पर्यावरण से सम्बन्धित अनेक कारक इस व्यवहार अथवा प्रवृत्ति के लिए उत्तरदायी होते हैं। ये अनेक कारक निम्न प्रकार हो सकते हैं-

(i) औद्योगिक बस्तियाँ, घनी बस्तियाँ, आस-पास का गन्दा तथा गरीबी का वातावरण, अपराधी क्षेत्र आदि अनेक ऐसे कारक हैं जो बालक को अपराधी कार्यों को करने के लिए प्रेरित करते हैं ।

(ii) जिस समाज में बालक बढ़ता है तथा विभिन्न सामूहिक व्यवहार और क्रियाकलाप सीखता है, उसका नैतिक स्तर, उसके लोगों के धार्मिक विचार, भेदभाव की भावना, अस्पर्शता आदि उसके पराहम् के विकास को प्रभावित करते हैं ।

(iii) विघटित समाज जहाँ तनाव तथा विभिन्नताओं का वातावरण होता है, बालक प्रायः अपराधी प्रवृत्ति की ओर झुक जाते हैं। समाज में व्याप्त धोखाधड़ी, घूसखोरी, व्यभिचार आदि बालकों में इस प्रवृत्ति को विकसित करने वाले सबसे प्रबल तथा प्रमुख कारक होते हैं । 

(च) आर्थिक कारण

(i) निर्धनता- बर्ट ने अपने एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला कि बाल- अपराधियों में लगभग आधे अपराधी निर्धन परिवारों के होते हैं । बहुधा देखा गया है कि पैसे के अभाव में बच्चे चोरी करना बड़ी जल्दी सीख जाते हैं ।बाल–अपराधों को बढ़ावा देने में निर्धनता भी एक महत्वपूर्ण कारक है। 

(ii) भुखमरी - जब बच्चों को अपनी भूख शान्त करने के लिए निम्नतम स्तर का भी भोजन प्राप्त नहीं होता है तो वह अपनी भूख मिटाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। लड़कियाँ बहुधा सेक्स अपराध करने को तैयार हो जाती हैं। 

(iii) नौकरी- बालक-बालिकाओं को अनेक प्रकार की नौकरियों में काम करते देखा जा सकता है । यह परिवार, होटल, फैक्टरी आदि जगहों पर अधिक संख्या में नौकरी करते हैं। इस तरह के बालकों में चोरी और सेक्स सम्बन्धी अपराधी बालक अधिक होते हैं । 

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