अपराध और बाल अपराध में अंतर

बाल अपराध (Child crime) कम आयु बालकों द्वारा किए समाज विरोधी कार्यों या अपराधों को बाल अपराध कहते हैं। यह अपराध निश्चित आयु से कम के बच्चों के द्वारा किया जाता है। 

बाल अपराधियों की उच्चतम आयु सीमा मिस्र, इराक, लेबनान तथा सीरिया में 15 वर्ष, फिलीपाइन्स, लंका, बर्मा तथा इंग्लैण्ड में 16 वर्ष, भारत में लड़कियों के लिए 18 वर्ष, लड़कों के लिए 16 वर्ष थाईलैण्ड में 18 वर्ष तथा जापान में 20 वर्ष है। परन्तु वर्तमान में भारत में लड़के लड़कियों के लिए यह आयु 18 वर्ष निश्चित कर दी गई है। 

बाल अपराध निश्चित आयु से कम बच्चों के ऐसे व्यवहार को कहते हैं जिसे समाज अस्वीकार करता है अथवा बाल अपराध उनके ऐसे कार्यों को कहा जाता है जो कि समाज कल्याण के लिए हानिकारक हो सकते हैं। 

एक निश्चित आयु से कम के बच्चे द्वारा जुआ खेलना, जेब काटना, चोरी करना, तस्करी में सहायता करना, अव्यवस्था फैलाना, तोड़-फोड़ करना अथवा किसी पर साधारण आघात करना आदि बाल अपराध के उदाहरण हैं।

बाल अपराध की अवधारणा 

भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार बाल अपराध की अवधारणा को तीन विशेषताओं की सहायता से समझा जा सकता है :
  1. भारत में 7 वर्ष से कम आयु के बच्चे द्वारा किए गए अपराध को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता क्योंकि इस आयु तक बच्चा अबोध होता है जो अपराधी इरादे को लेकर कोई अपराध नहीं कर सकता।
  2. भारत में बाल न्याय अधिनियम 1986 (Juvenile Justice Act, 1986) जो कि अक्टूबर 1987 से लागू किया गया, के अनुसार 16 वर्ष तक की आयु के लड़कों एवं 18 वर्ष तक की आयु की लड़कियों को अपराध करने पर बाल- अपराधी की श्रेणी में सम्मिलित किया गया था, परन्तु अब किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के तहत संपूर्ण देश में लड़के एवं लड़कियों की आयु 18 वर्ष निश्चित कर दी गई है। 
  3. केवल आयु ही बाल-अपराध को निर्धारित नहीं करती वरन इसमें अपराध की गम्भीरता भी महत्वपूर्ण पक्ष है। 7 से 18 वर्ष का लड़का एवं लड़की द्वारा कोई भी ऐसा अपराध किया गया हो जिसके लिए राज्य मृत्यु-दण्ड अथवा आजीवन कारावास देता हो जैसे-हत्या, घातक आक्रमण, देशद्रोह आदि तो भी वह बाल अपराधी माना जाएगा। 
बर्ट (Cyril Burt) ने लिखा है कि ‘‘किसी बच्चे द्वारा किया जाने वाला समाज-विरोधी व्यवहार जब इतना गम्भीर हो जाता है कि राज्य द्वारा उसे दण्ड देना आवश्यक हो जाए, केवल तभी उस व्यवहार को हम बाल अपराध कहते हैं।’’

बाल अपराध के अन्तर्गत रखा जा सकता है-
  1. किसी कानून या अध्यादेश को भंग करना।
  2. स्कूल तथा घर से भागने की आदत।
  3. जानबूझकर चोर, कुकर्मी तथा अनैतिक व्यक्तियों के साथ रहना।
  4. ऐसे कार्य करना, जिनसे स्वयं को अथवा दूसरों को चोट पहुँच सकती है अथवा किसी प्रकार का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  5. स्वभावत: गन्दी भाषा (व गाली गलौज) का आदतन प्रयोग करना।
  6. आदतन रेलवे स्टेशन या लाइनों पर निरुद्देश्य घूमना।
  7. चलती ट्रेन से कूदना, बिना किसी की आज्ञा से कार या इंजिन में घुस जाना।
  8. ऐसे स्थानों पर जाना जहाँ शराब बेची जाती है।
  9. बिना किसी वैधानिक रूप से स्वीकृत कार्य के रात को सड़कों पर अकारण आवारागर्दी करना तथा सड़कों व पार्कों में सो जाना।
  10. अनैतिक व अवैधानिक व्यवसाय करना या इनमें किसी प्रकार का सहयोग करना।
  11. सिगरेट पीना।
  12. शराब पीना।
  13. अन्य मादक द्रव्यों का व्यसन करना।
  14. यौन अनैतिकताओं में फंसे रहना।
  15. ऐसे व्यवहार करना या उन दशाओं में पाया जाना जिनसे खुद को या दूसरे को नुकसान पहुँचे।
  16. उपद्रवी तथा उत्पाती होना।
  17. भिक्षावृत्ति करना।
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बाल अपराध की परिभाषा

Ohio Code USA के अनुसार, ‘‘किशोरापराधी वह है जो कानून भंग करता है, आवारागर्दी करता है, आज्ञा का उल्लंघन करने में अभ्यस्त है, जिसके व्यवहार से उसका अपना तथा दूसरों का नैतिक जीवन खतरे में पड़ता है।’’

भारतवर्ष में किशोर न्याय अधिनियम 1986 के अनुसार किशोरापराधी की अधिकृत आयु लड़कों के लिए 16 वर्ष लड़कियों के लिए 18 वर्ष निश्चित की गयी थी परंतु इस अधिनियम में संशोधन करते हुए, किशोर न्याय अधिनियम 2000 के अनुसार लड़के एवं लड़की दोनों की आयु 18 वर्ष निश्चित कर दी गयी है। इस आयु से कम के बालक, यदि अपराध करते हैं तो वे बाल-अपराधी की श्रेणी में गिने जायेंगे।

एम0जे0 सेठना के अनुसार, ‘‘बाल अपराध के अन्तर्गत किसी ऐसे बालक या तरुण के गलत कार्य आते हैं जो कि संबंधित स्थान के कानून (जो इस समय लागू हो) के द्वारा निर्दिष्ट आयु-सीमा के अन्तर्गत आता हो।’’

गिलिन और गिलिन के अनुसार, ‘‘समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से एक अपराधी या किशोर वह होता है जिसके कार्य को समूह द्वारा गिरा हुआ समझा जाता है और जो हानिकर होने के नाते निषिद्ध है।’’

माउरर के अनुसार, ‘‘बाल अपराधी वह व्यक्ति है जो जानबूझकर इरादे के साथ तथा समझते हुए, समाज की रूढ़ियों की उपेक्षा करता है, जिससे उसका संबंध है।’’

न्यूमेयर के अनुसार, ‘‘एक किशोर अपराधी निर्धारित आयु से कम का वह व्यक्ति है जो समाज-विरोधी कार्य करने का दोषी है और जिसका दुरचार कानून भंग करना है।’’

रॉबिन्सन के अनुसार, ‘‘बाल-अपराधी प्रवृत्ति के अन्तर्गत आवारागर्दी और भीख मांगना, दुर्व्यवहार, बुरे इरादे से शैतानी करना और उद्दण्डता आदि विशेषताओं को सम्मिलित किया जाता है।’’

बाल अपराध के प्रकार

मनोविश्लेषकों ने बाल - अपराधियों को अग्रांकित तीन श्रेणियों में विभक्त किया है-

(i) असामान्य अपराधी - इस श्रेणी में वे बाल - अपराधी आते हैं, जो बहुत ही स्वार्थी बिना कुछ सोचे समझे आवेश में आकर किसी व्यक्ति पर शीघ्र प्रहार कर देते हैं। ऐसे लोग अति संवेगी और स्वभाव से उग्र होते हैं। मनोविश्लेषकों ने ऐसे लोगों को असामान्य अपराधी की श्रेणी में रखा है।

(ii) आत्म-सम्मोही अपराधी - इस श्रेणी में वे बाल- अपराधी आते हैं, जो बहुत ही स्वार्थी, आत्मकेन्द्रित और एकान्तप्रिय होते हैं। ऐसे लोग अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर कोई भी घृणित से घृणित असामाजिक कार्य करने में नहीं चूकते हैं। अपने स्वार्थ की पूर्ति में वे अपने परिवार, सगे सम्बन्धियों तथा घनिष्ठ मित्रों पर भी दया नहीं करते हैं ।

(iii) बहिर्मुखी-अपराधी - ऐसे बाल अपराधी स्वभाव से वाचाल होते हैं इनका एक गिरोह होता है । ये अपने हित के लिये कोई अपराध नहीं करते बल्कि अपने मित्रों या सगे-सम्बन्धियों को लाभ पहुँचाने या उन्हें सन्तुष्ट करने के लिये अपराध करते हैं । 

मनोवैज्ञानिक फेरी ने बाल - अपराधियों की निम्नांकित श्रेणियाँ बताई हैं-
(i) जन्मजात बाल–अपराधी
(ii)व्यभिचारी बाल - अपराधी
(iii) प्रासंगिक बाल- अपराधी
(iv) असामान्य बाल- अपराधी
(v)
(i)अभ्यस्त बाल- अपराधी

(i) जन्मजात अपराधी- ऐसे बाल - अपराधी जन्मजात मूढ़ अथवा जड़ बुद्धि होते हैं। इनमें बौद्धिक क्षमता बहुत कम होती है। ऐसे बालक समाज के साथ सफलतापूर्वक समायोजन नहीं कर पाते, अतः सदैव हीन भावना से ग्रसित रहते हैं। अपनी हीन भावना की प्रतिपूर्ति के लिये चोरी, डकैती, लूटपाट, लैंगिक अपराध, हेराफेरी, नशाखोरी जैसे अपराध करने लगते हैं।

(ii) व्यभिचारी अपराधी - इसके अन्तर्गत वे बाल- अपराधी आते हैं, जो यौनाचार से प्रेरित होकर लैंगिक अपराध करते हैं, ऐसे बालक यौन विकृतियों से ग्रसित होने के कारण लैंगिक अपराध करते हैं । समलिंगीय मैथुन, विषमलिंगीय मैथुन, हस्तमैथुन, बलात्कार एवं पशु मैथुन आदि अपराधी कार्य करते हैं।

(iii) प्रासंगिक अपराधी - ऐसे बाल - अपराधी परिस्थितिवश या किसी के बहकावे अथवा दबाव में आकर हत्या, चोरी, मारपीट, लूटपाट, आगजनी जैसे असामाजिक व्यवहार कर बैठते हैं। ऐसे बालक यदा-कदा प्रसंगवश अपराध करते हैं।

(iv) असामान्य अपराधी- इस श्रेणी में वे बालक आते हैं जो मनोविकृतियों से पीड़ित होते हैं। इन्हें पागल या मानसिक रोगी अपराधी भी कहा जा सकता है। इनके अपराध करने का कारण मनोविकार होता है। मनोविकृति की स्थिति में व्यक्ति चेतनाहीन एवं ज्ञानशून्य होता है। दूसरों को नोचना, कपड़े फाड़ना, निर्लज्ज व्यवहार करना, बड़बड़ाना, ईंट-पत्थर फेंकना, व्यर्थ में हँसना तथा आत्महत्या एवं हत्या करने में भी नहीं चूकते।

(v) अभ्यस्त अपराधी- वे बालक, जो असामाजिक कार्य करने में निपुण होते हैं, वे इस श्रेणी में आते हैं। ऐसे बालक अकेले या अपने ग्रुप के साथ मिलकर अपराध करते हैं । इन बालकों का सम्बन्ध आगे चलकर पेशेवर अपराधियों से हो जाता है। इनमें वेश्यागमन, मद्यपान, चोरी, चेन स्नेचिंग और पॉकेटमारी करने की आदत पड़ जाती है। अगर वे इस प्रकार के कार्य न करें तो उनमें मानसिक तनाव एवं संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होने लगती है ।

अपराध और बाल अपराध में अंतर

अपराध और बाल अपराध दोनों में ही नियमों का ही उल्लंघन होता है फिर भी इन दोनों में अंतर है :-
  1. बाल अपराधी 18 वर्ष से कम आयु के होते हैं, जबकि अपराधियों की आयु 18 वर्ष से ऊपर होती है। 
  2. बाल अपराधी अधिकतर संवेगता (उदाहरण के लिए खेल के मैदान में झगड़ा हो जाना, मारपीट हो जाना आदि) के कारण अपराध करते हैं जबकि अपराधी सामान्यत: जानबूझकर अपराध करता है (जैसे चोरी करना) अर्थात् अपराध के पीछे योजना होती है।
  3. प्राय: बाल अपराध कम गम्भीर होते हैं (जैसे किसी मोटर का शीशा तोड़ना, किसी बच्चे द्वारा भीख मांगना, या बुरे इरादे से शैतानी करना), जबकि सामान्यत: अपराध बाल अपराध से अधिक गम्भीर होते हैं (जैसे किसी की जान लेना, डकैती डालना या माल की चोरी करना आदि)
  4. बाल अपराध प्राय: स्वयं के लिए तथा परिवार के लिए अधिक हानिकारक होता है, जबकि अपराध का मुख्य उद्देश्य समाज के अन्य सदस्यों को हानि पहुंचाना है।
  5. बाल अपराधी का अपराध करते समय आर्थिक लक्ष्य नहीं होता है, जबकि अपराधी का मुख्य लक्ष्य प्राय: आर्थिक लाभ होता है। 
  6. बाल अपराधी बनने में मनोवैज्ञानिक तथा पारिवारिक कारकों का अधिक महत्व होता है, जबकि अपराधी के लिए मुख्य रूप से स्वयं की इच्छा या सामाजिक कारक महत्वपूर्ण होते हैं। अपराध को सामाजिक विघटन का प्रतीक माना जाता है, जबकि बाल अपराध सामाजिक विघटन का परिणाम है।
  7. बाल अपराधों में योजनाबद्ध ढंग या संगठन का अभाव पाया जाता है जबकि अपराधी अपने कार्य के बारे में योजना बना लेता है तथा संगठित तरीके से इसे पूरा करने का प्रयास करता है।

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