जल में किसी बाहरी पदार्थ की उपस्थिति जिसके कारण जल का स्वाभाविक गुण समाप्त हो जाता है तथा वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो तो जल प्रदूषण कहलाता है। जल की भौतिक, रासायनिक तथा जीवीय विशेषताओं में हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करने वाले परिवर्तन को जल प्रदूषण कहते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार‘ ‘प्राकृतिक या अन्य स्रोतों से उत्पन्न अवांछित बाहरी पदार्थों के कारण जल दूषित हो जाता है तथा वह विषाक्तता एवं सामान्य स्तर से कम आक्सीजन के कारण जीवों के लिए हानिकारक हो जाता है तथा संक्रामक रोगों को फैलाने में सहायक होता है।’’
जल प्रदूषण के कारण
जल के प्रदूषित होने के कई कारण हैं। उन कारणों के पीछे या तो प्राकृतिक कारण या मानवीय कारण होते हैं-1. प्राकृतिक स्रोत - इसके अन्तर्गत मृदा अपरदन, भूमि स्खलन, ज्वालामुखी उद्धार तथा पौधों एवं जन्तुओं के विघटन एवं वियोजन को सम्मिलित किया जाता है। मृदा अपरदन के कारण उत्पन्न अवसादों के कारण नदियों के अलसाद भार में वृद्धि हो जाती है। इस अवसाद के कारण नदियों तथा झीलों के गंदेपन में वृद्धि हो जाती है।
2. मानवीय स्रोत - इसके अन्तर्गत औद्योगिक, नगरीय, कृषि तथा सामाजिक स्रोतों (सांस्कृतिक एवं धार्मिक सम्मेलनों के समय एक़़ि़त्रत जन समूह है। ज्ञात्व्य है कि प्राकृतिक जल में प्राकृतिक प्रदूषकों को आत्मसात करने की क्षमता होती है, अत: जल का प्रदूषण मानवजनित स्रोतों से उत्पन्न प्रदूषकों द्वारा ही होता है।
3. मनुष्य के दैनिक कार्यों से गंदगी - मनुष्य के प्रतिदिन स्नान से, कपडे़ धोने से, बर्तन माँजने से जिस पानी का प्रयोग होता है, वो बाद में प्रदूषित हो जाता है।
4. औद्योगिक अपशिष्ट - औद्योगिक इकाइयों द्वारा लिये गए जल के उपयोग के बाद इसमें अनेक प्रकार के लवण, अम्ल, क्षार, गैसें तथा रसायन घुले होते हैं। जल में घुले हुए ये औद्योगिक अपशिष्ट सीधे ही इकाइयों से निकलकर नदी, तालाब, झील अथवा अन्य स्त्रोतों में प्रवाहित कर दिये जाते हैं, जिनसे मनुष्य, जीव-जन्तु, वनस्पति सभी, जो उस जल का उपयोग करते हैं, प्रभावित होते हैं।
5. कृषि रसायन - उत्पादन को बढ़ाने हेतु कृषक खेतों में रासायनिक खादों का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बहुत तेजी से कर रहा है। वर्षा के जल के साथ नदी, तालाबों एवं अन्य स्त्रोतों झीलों का भी पानी इसी रासायनिक व कीटनाशी के छिड़काव के कारण प्रदूषित हो जाता है
6. अपमार्जक (डिटरजेण्ट)-बढ़ती हुई औद्योगिक इकाइयों के कारण सफाई व धुलाई के नये-नये अपमार्जक (डिटरजेण्ट) बाजार में आ रहे हैं। इनका उपयोग भी दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
7. औद्योगिक तापीय प्रदूषण - विभिन्न प्रकार के उद्योगों में संयंत्रों को ठण्डा रखने के लिए जल का उपयोग किया जाता है व फिर इस जल को वापिस नदी, तालाब, नाले, नाली में प्रवाहित कर दिया जाता है। इससे जल स्रोतों का तापमान बढ़ जाता है और प्राकृतिक सन्तुलन के बिगड़ने से जीवों को क्षति होती है।
8. खनिज तेल - समुद्रों के जल मार्ग में खनिज तेल ले जाने वाले जहाजों के दुर्घटनाग्रस्त होने से अथवा उन द्वारा भारी मात्रा में तेल के जल सतह पर छोड़ने से तो जल प्रदूषण होता ही है, लेकिन भूमि पर भी तेलों के बिखरने से भू-प्रदूषण भी होता है।
9. शवों के जल प्रवाह से प्रदूषण - जीवाणुओं सहित मानव एवं पशुओं के शव नदियों में प्रवाहित कर देते हैं। इससे नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है। शवों के कारण जल के तापमान में भी वृद्धि होती है।
जल प्रदूषण के प्रभाव
जल प्रदूषण के प्रभाव इस प्रकार है -
- जलीय जीव-जन्तुओं पर प्रदूशित जल का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है जल प्रदूषण से जल में कोई भी अधिकता हो जाती है तथा ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
- प्रदूषित जल को पीने से पशु-पक्षियों को तरह-तरह की बीमारियॉं हो जाती हैं।
- प्रदूषित जल का सर्वाघिक भयंकर प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है इससे पोलियो,हैजा,पेचिस ,पीलिया,मियादी,बुखार ,वायरल फीवर आदि बीमारियॉं फैलती हैं।
- जल प्रदूशित होने के कारण औद्योगिक इकाईयों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
जल प्रदूषण रोकने के उपाय
जल प्रदूषण को रोकने के उपाय या दो सुझाव -
- जल स्रोतों के पास गन्दगी फैलाने,साबुन लगााकर नहाने तथा कपड़े धोने पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।
- पशुओं को जल में नहलाने से रोगाणुओं के जल में फैलने की संभावना रहती है इसलिए पशुओं को नदियों ,तालाबों आदि में नहलाने में प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिये।
- नदियों में शव,अधजले शव राख तथा अधजली लकड़ी के बहाने पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिये तथा नदी घाटों पर विद्युत शवदाह गृहों का निर्माण कर उसके उपयोग को प्रोत्साहित किया जाय।
- ऐसी मछलियों को जलाशयों में छोड़ा जाना चाहिये जो मच्छरों के अण्डे ,लार्वा एवं जलीय खरपतवारों का क्षरण करती हैं।