हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्यकारो के नाम

हिन्दी के व्यंग्यकारों ने अनेक ऐसी रचनाएँ दी है जिनमें न प्रत्यक्ष हास्य है, न आक्रोश और न करूणा । वे विशुद्ध बौद्धिक और चिन्तन - प्रधान रचनाएँ है जो पाठक में सामाजिक सजगता उत्पन्न करती है।

व्यंग्यकार की भूमिका एक सुधारक, नियामक और न्यायाधीश की होती है। वह एक तटस्थ तमाशबीन की तरह समाज की बुराइयों पर कहकहे लगाकर नहीं रह जाता अपितु उन बुराइयों के लिए जिम्मेदार लोगों को दण्डित करना चाहता है । 

हिन्दी के व्यंग्यकारों ने अपनी लेखनी के द्वारा व्यंग्य को चरम ऊँचाईयों पर पहुँचाने का कार्य किया है। साहित्य में चिन्तन वह सर्वोच्च स्थिति है जहाँ पहुँचकर भावात्मकता और भावुकता पीछे छूट जाती है और केवल बौद्धिकता शेष रह जाती है। हिन्दी के व्यंग्यकारों ने अपनी रचनाओं में व्यंग्य के माध्यम से समाज में फैली विभिन्न विसंगतियों पर तीखा प्रहार किया है। 
हिन्दी के व्यंग्यकारों ने अपनी रचनाओं में व्यंग्य के माध्यम से समाज में फैली विभिन्न विसंगतियों पर तीखा प्रहार किया है। 

हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार

  1. हरिशंकर परसाई
  2. रवीन्द्रनाथ त्यागी
  3. श्रीलाल शुक्ल
  4. बालेन्दुशेखर तिवारी
  5. शरद जोशी

(1) हरिशंकर परसाई :–

हरिशंकर परसाई एक युग प्रवर्तक साहित्यकार है। उन्होंने व्यंग्य को उस उच्चतम भूमि पर प्रतिष्ठित किया है, जहाँ खड़े होकर आधुनिक समीक्षक कबीर, भारतेन्दु और निराला के साहित्य का व्यंग्य के संदर्भ में पुनर्मूल्यांकन करने लगे है। हरिशंकर परसाई का लेखन - अनुभवों की व्यापकता और विचारों की गहराई दोनों से सम्पन्न है। उन्होंने उपन्यास, कहानी, निबन्ध, लघुकथा आदि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रचुर मात्रा में व्यंग्य लिखा है

हरिशंकर परसाई हिन्दी के पहले रचनाकार है जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परम्परागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी भाषा— शैली में खास किस्म का अपनापन है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है।

"परसाई की ज्यादातर व्यंग्य रचनाएँ राजनीति - केन्द्रित है । "ठिठुरता हुआ गणतन्त्र” इनका अत्यन्त चर्चित राजनैतिक व्यंग्य है। 

(2) शरद जोशी :-

“शरद जोशी का व्यंग्य फलक इतना व्यापक है कि उसमें कीड़ी से कुंजर तक सब कुछ समा गया है। न तो वह राजनीतिक भ्रष्टाचार तक सीमित है और न आर्थिक विपन्नताओं तक । घर-परिवार का माहौल कस्बे की मानसिकता और उनके व्यंग्य की नोक अधिकतर राजनैतिक विरूपताओं की और ही रही है। 'हम भक्तन के भक्त हमारे' में राजनीति में फैले भ्रष्टाचार पर तीखा प्रहार करते हुए शरद जोशी ने नेताओं के वादाखिलाफी को जनता के समक्ष प्रकट किया है अफसरों और प्रशासकों के भ्रष्ट आचरण पर व्यंग्य किया गया है। यह वह वर्ग है, जो सारी विकास योजनाओं की राशि को इसी तरह चट कर जाता है जैसे फसल को इल्लियाँ । 

उनकी रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी विसंगतियों का बेबाक चित्रण मिलता है। बिहारी के दोहे की तरह शरद जोशी अपने व्यंग्य का विस्तार पाठक पर छोड़ देते है । इस वक्त लोग व्यंग्य से दूर हो रहे है, क्योंकि सामाजिक परिस्थितियाँ इतनी खराब होती जा रही है, जो लोग व्यंग्य के शब्दों में छिपी वेदना को अभिव्यक्त करने वाले को स्वीकार करने में हिचकते है । इसको सहजता से पीने का काम शरद जोशी करते थे।

(3) रवीन्द्रनाथ त्यागी :-

रवीन्द्रनाथ त्यागी का 'अतिथि कक्ष' इस वर्ग की एक श्रेष्ठ रचना है जो राजनैतिक संस्कृति के असली चेहरे को अनावृत करती है। इस व्यंग्य रचना में नेताओं से लेकर सरकारी अधिकारी, ठेकेदारों, वकील, कथावाचक पर करारा व्यंग्य किया है।

'कुत्ता संस्कृति' त्यागीजी की एक और तीखी व्यंग्य रचना है, जो पाश्चात्य संस्कृति के संसर्ग से लगे शौकों के साथ - साथ जीवन के व्यापकतर संदर्भों पर तेज रोशनी डालती है। वे लिखते है- शामिल हुआ था। इस नुमाइश में आदमी की हैसियत से मैं भी सोफे पर नहीं बैठ सका। वहाँ कुत्ते बैठे थे ।" 

व्यंग्य की यह तीक्ष्णता उन सभी क्षेत्रों की विकृतियों के प्रति व्यक्त हुई है, जो हमारे जीवन को सीधे-सीधे प्रभावित करते है

'मूल्यों का संकट' भी व्यापक सामाजिक संवेदनाओं वाली व्यंग्य रचना है। रचना का प्रारम्भ एक नागरिक की इस शिकायत से हुआ है कि शराब बहुत महँगी होती जा रही है। व्यंग्यकार का विक्षोभ उमड़ पड़ता है और वे कह उठते है— आप शराब की बातें कर रहे है, बाकी लोगों को देखिए, जिन्हें रोटी भी नहीं मिल रही।

इस प्रकार रवीन्द्रनाथ त्यागी के व्यंग्य में जीवन के विविध रूप है। नेता और मंत्री, क्लर्क और अफसर, साहित्यकार और प्रकाशक, शोषण और भ्रष्टाचार, शिक्षा और संस्कृति सभी के अन्दर झाँककर उन्होंने विरूपताओं के विविध रूपों का साक्षात्कार किया है । और जैसी विविधता कथ्य में है, वैसी ही शैली में भी। उन्होंने कहानी, निबंध, डायरी, पत्र, संस्मरण, यात्रा - वर्णन और लघुकथा ही नहीं, आलोचना और भाषण में भी व्यंग्य के प्रयोग किये है।

(4) श्रीलाल शुक्ल

हिन्दी व्यंग्यकारों के बीच श्रीलाल शुक्ल ही एक ऐसे व्यंग्यकार है, जो ग्रामीण जीवन के प्रश्नों से अधिक रूबरू हुए है। श्रीलाल शुक्ल के व्यंग्य का दायरा बहुत बड़ा है। ग्रामीण यथार्थ के तो एक-एक पहलू का साक्षात्कार ‘राग दरबारी' में हुआ है। अन्य व्यंग्यकारों की तरह श्रीलाल शुक्ल भी नेताओं के जीवन की कृत्रिमताओं का चित्रण करने में अधिक रस लेते है। 'एक जीते हुए नेता से मुलाकात' व्यंग्य में व्यंग्यकार ने एक ऐसे नेता का वर्णन किया है। जो अपने रहन-सहन से युवा दिखाई दे। उसकी उम्र पचपन के करीब है। इस रचना का प्रमुख उद्देश्य नेताओं के व्यस्तता के ढोंग और जन समस्याओं के प्रति अनकी जागरूकता के नाटक को बेपर्द करना है।

(5) बालेन्दुशेखर तिवारी :-

'रिसर्च गाथा' की भूमिका में वे लिखते है, जिस इलाके में मैं रहता हूँ, " उसकी कुल पाँच समस्याएँ है । कापियाँ जाँचकर उसके बिल को चेक रूप में प्राप्त करना, तरक्की पाना, पाठ्यक्रम में पुस्तकें लगवाना, समितियों में सदस्य बनना और सहकर्मियों के कार्यकलापों की शास्त्रीय समीक्षा करना - इन्हीं पाँच समस्याओं से बंधे विश्वविद्यालय के सुधी विद्वानों के बीच खाकसार को भी रहना पड़ता है।" ये पंक्तियाँ सूत्र रूप में विश्वविद्यालयीन शिक्षकों की सारी कमजोरियों को एक साँस में कह जाती है। स्पष्ट है बालेन्दुशेखर तिवारी के व्यंग्य का निशाना अपने ऊपर, यानी विश्वविद्यालयीन परिवेश के ऊपर अधिक रहा है।

( 6 ) शंकर पुणताम्बेकर :―

हिन्दी साहित्य में व्यंग्य विधा के पुरोधा कहे जाने वाले शंकर पुणताम्बेकर एक साधारण व्यक्तित्व व असाधारण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने विपुल मात्रा में व्यंग्य लिखा है। नेता, अफसर, शोषक पूँजीपति, पाखण्डी धर्मगुरू सभी लेखक के व्यंग्य के माध्यम बने है

शंकर पुणताम्बेकर ने भी अन्य व्यंग्यकारों की तरह देश की राजनीति व राजनेताओं पर करारा व्यंग्य किया है। देश के नेताओं की वादा खिलाफी पर 'प्रेत का बयान' नामक रचना में व्यंग्य किया है। नोट के बदले वोट की राजनीति, एक वोट के बदले ढेर सारे वायदे, ढेर सारे सपनों की राजनीति पर व्यंग्य किया गया है।

सरकारी अस्पतालों की दुरावस्था पर भी शंकर पुणताम्बेकर ने कई रचनाओं में चोट की है। " रूग्णालय की गोद में" व्यंग्य में अस्पताल के अन्दर की इस दुनिया का यथार्थ चित्रण मिलता है। अस्पताल वह जगह है, जहाँ आदमी रोग से मुक्ति पाने की आशा में जाता है और जीवन के कटुतम अनुभव लेकर लौटता है।

(7) प्रेम जनमेजय :-

जनमेजय आधुनिक व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी है। उनके व्यंग्य के पीछे एक व्यापक जीवन-दृष्टि है, जो पूँजीवाद, आडम्बर और रूढ़िवादिता की विरोधिनी होते हुए भी किसी नारेबाजी में विश्वास नहीं रखती। वे मानव मूल्यों के हामी और समाजोन्मुख लेखन के प्रवक्ता है। उनके व्यंग्य में आक्रोश का स्वर अधिक है, हास्य का कम। वे एक ओर व्यवस्था के प्रति विक्षोभ उत्पन्न करते है तो दूसरी और त्रस्त मानव के प्रति करूणा भी।

पुलिस प्रशासन का कार्य जनता की रक्षा करना, चोर उचक्कों से बचाना है, किन्तु पुलिस अपनी भूमिका को भुलकर, कमजोरों को सताना, हफ्ता वसूल करना, गुण्डों को शह देना जैसे कार्यों में प्रवृत्त है। " इंस्पेक्टर का तबादला” में प्रेम जनमेजय ने इस चरित्र की बखूबी चीरफाड़ की है । वे लिखते है– ” हमारे सभ्य समाज में एक वर्ग है, जिसे जनता का रक्षक कहा जाता है । परन्तु वे रक्षक जनता को गधा समझते है। जो पिटता है, बोझा ढोता है, डर के मारे खड़ा-खड़ा नित्यकर्म करता है, ऐसे रक्षकों को पुलिस कहा जाता है । "

राजनैतिक विडम्बनाओं पर भी प्रेम जनमेजय ने सशक्त व्यंग्य रचनाएँ दी है, जिनमें “चुनाव का आँखों देखा हाल" विशेष उल्लेखनीय है।

उपरोक्त सभी व्यंग्यकारों ने राजनीतिक अखाड़े का पर्दाफाश किया है, समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए समाज को प्रेरणा दी है। सांस्कृतिक, धार्मिक, प्रशासकीय, आर्थिक, शैक्षणिक क्षेत्र संबंधित विकृतियों पर कविता, नाटक, निबंध, कहानी, उपन्यास आदि सभी व्यंग्य विधाओं में विसंगति पर तीक्ष्ण प्रहार किये है। सभी व्यंग्यकारों की रचनाओं में व्यंग्य की सभी विशेषताएँ दिखाई देती है।

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