वेदों की उत्पत्ति का सम्पूर्ण वर्णन

वेदों की उत्पत्ति का सम्पूर्ण वर्णन

विश्व साहित्य का सबसे प्राचीनतम् ग्रन्थ 'वेद' है। वेद न केवल भारतीय समाज द्वारा समाहत है अपितु विश्व के महान विद्वानों ने भी इन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखा है तथा उनकी महत्वता को स्वीकारा है। वेद भारतीय संस्कृति के मूल स्रोत है, अतः वेदों में ज्ञान-विज्ञान, धर्म-दर्शन, सदाचार-संस्कृति, सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन से सम्बन्धित सभी विषय उपलब्ध है। विद्वानों ने इसे विश्वकोष के रूप में अलंकृत किया है।

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वेद शब्द की परिभाषा

ज्ञानार्थक वेद शब्द की निष्पत्ति विद् धातु से, 'भाव', कर्म तथा 'करण' अर्थ में 'हलश्च' सूत्र से 'घञ' प्रत्यय लगकर बना है, जिसका अर्थ है - 'ज्ञान, ज्ञान का विषय ' तथा 'ज्ञान का साधन' आदि ।

(1) आचार्य सायण के मतानुसार वेद - वेदों के भाष्यकर्ता आचार्य सायण ने वेद पदार्थ के विषय में कहते है कि अभीष्ट की प्राप्ति तथा अनिष्ट के परिहार्थ अलौकिक उपाय को बताने वाले ग्रन्थ को वेद कहा गया है।

(2) आचार्य दयानन्द सरस्वती के मतानुसार - 'आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 'ऋग्वेदभाष्यभूमिका' में कहते है कि- "जिस ग्रन्थ से सभी मनुष्य सत्यविद्या को जानते है, प्राप्त करते है, विचार करते है तथा विद्वान होते अथवा सत्विधा की प्राप्ति के लिए प्रवृत्त होते है वे ग्रन्थ ही 'वेद' कहलाते है ।

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वेदों की उत्पत्ति

वेदोत्पत्ति के विषय में सभी ऐतिहासिक विद्वान एकमत है कि संसार का सबसे प्राचीन साहित्य वेद है तथा यह भारतवर्ष में ही प्रकट है, परन्तु वेद कहाँ से प्रकट हुए कब प्रकट हुए तथा वेदों का कर्ता कौन हैं ? यह तीनों ही प्रश्न प्राचीन काल से अब तक विद्वानों के मध्य सन्देह एवं विवाद का ही विषय रहा है। वह भारतीय विद्वान हो अथवा पाश्चात्य विद्वान दोनों ही वेद के इन तीन प्रश्नों की गुत्थियों को सुलझाने में असमर्थ ही रहे, हैं, किन्तु संस्कृत वाङ्मय के ऐसे कई शास्त्र हैं जो कि इन तीन प्रश्नों के सम्भवतः साक्ष्य हमारे समक्ष उपस्थित करते हैं, तथा इन्हीं शास्त्रों के आधार पर विद्वानों ने भी वेदों की उत्पत्ति विषयक अपने-अपने मत प्रस्तुत किये हैं ।

आचार्य वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों में कहीं ब्रह्मा के चतुर्मुख से वेदों का निःसरण का वर्णन है तो कहीं ऊँकार से वेदोत्पत्ति विषयक उल्लेख है। कहीं माता गायत्री से ही वेदों की उत्पत्ति का वर्णन है ।

1- श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार वेदोत्पत्ति- भगवान श्री कृष्ण की लीला का सुन्दर चित्रण हमारे मध्य उपस्थित करने वाले श्रीमद्भागवत पुराण में "ऊँकार" से चतुर्विध वेदोत्पत्ति विषयक वर्णन है । यथा-

श्रृणोति य इमं स्फोटं सुप्तश्रोते च शून्यदृक ।
येन वाग् व्यज्यते यस्य व्यक्तिराकाश आत्मनः । । '

वही ऊँकार परमात्मा से हृदयाकाश में प्रकट होकर वेद रूपी वाणी को अभिव्यक्त करते हैं ।

स्वधाम्नो ब्रह्मणः साक्षाद् वाचकः परमात्मनः ।
स सर्वमन्त्रोपनिषद्वेदबीजं सनातनम् । । 

ॐकार अपने आश्रय परमात्मा परब्रह्म का साक्षात वाचक है और ॐकार ही सम्पूर्ण मन्त्र, उपनिषद् और वेदों का सनातन बीज है।

ततोऽक्षरसमाम्नायमसृजद् भगवानजः ।
अन्तः स्थोष्मस्वरस्पर्शहृस्वदीर्घादिलक्षणम् । ।
तेनासौ चतुरो वेदांश्चतुर्भिर्वदनैर्विभु ।
सव्याहतिकाम् सोङ्कारांश्चातुर्होत्रविवक्षया । । '

अर्थात् ब्रह्माजी ने उसी ॐकार से वर्णमाला की रचना की उसी वर्णमाला द्वारा उन्होंने अपने चार मुखों से होता, उध्वर्यु, उद्गाता और ब्रह्मा इन चार ऋत्विजों के कर्म बतलाने के लिये ॐकार और व्यवहृतियों (भुः भुवः, स्व) के सहित चार वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) प्रकट किए । 

2- मत्स्य पुराण के अनुसार वेदोत्पत्ति- भगवान मत्स्य का वर्णन करने वाले मत्स्य पुराण में ब्रह्मा के मुख से वेदों का निःसरण बतलाया गया है तथा यह भी उल्लेख है कि सर्वप्रथम ब्रह्माजी ने पुराण का कथन किया-

पुराणं सर्व शास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणां स्मृतम् ।
अनन्तएन्य वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गताः । । '

मत्स्य पुराण में ही 171वें अध्याय में ऐसा वर्णन प्राप्त होता है कि ब्रह्मा ने तपस्या करते हुए वेदपूजित त्रिपदा गायत्री का उच्चारण किया, तत्पश्चात् सर्वव्यापी ब्रह्मा ने प्रजापतियों की सृष्टि करते हुए सागरों की तथा गायत्री से उत्पन्न होने वाले चारों वेदों की रचना की ।

तया समाहितस्त्र रेमे ब्रह्मा तपश्चरम् ।
ततो जगाद् त्रिपदा गायत्री वेद पूजिताम् । । '
सृजन् प्रजानां पतयः सागरांश्चासृजद विभुः ।
अपरांश्चैव चतुरो वेदान् गायत्रिसम्भवान् । । 

3- ब्रह्म पुराण के अनुसार वेदोत्पत्ति - भगवान सूर्य को शिव मानकर उपासना करने वाले तथा उड़ीसा प्रदेश के तीर्थों का सुन्दर वर्णन करने वाले ब्रह्म पुराण में वेदोत्पत्ति विषयक वर्णन प्राप्त होता है कि वेदों की उत्पत्ति से पूर्व विद्युत, व्रज्र, मेघ, रोहितेन्द्र, धनुष, पक्षीगण ओर पर्जन्य इन सबका आदि काल में सृजन था। इसके उपरान्त यज्ञ के कर्मों को सम्पादित करके सिद्धि प्राप्त करने के लिये ऋग्वेद यजुर्वेद और सामवेद की ऋचाओं का सृजन तथा निर्माण किया गया।

क्रियावन्तत्र प्रजावन्तो महर्षिभिरलङ्कृता ।
विद्युतोऽशनिमेघाञ्च रोहितेन्द्रधनूषिं च ।।
वयसि च ससर्जादो पर्यजन्यञ्च ससर्ज ह।
ऋचो यजूषिं समानि निर्ममे यज्ञसिद्धये । । '

4- `देवी भागवत पुराण के अनुसार वेदोत्पत्ति - देवियों के महात्म्य का सुन्दर चित्रण हमारे बीच प्रस्तुत करने वाले देवी भागवत पुराण में ब्रह्मा से वेदों की उत्पत्ति का वर्णन है तो कहीं कतिपय श्लोकों में वेदमाता सावित्री देवी से चतुर्विध वेदों का निःसरण बतलाया गया है-

धाता चतुर्णां वेदानां विधाता जगतामपि ।
ब्रह्मा चतुर्मुखेनैव नालं विष्णुश्च सर्ववित् । । '

देवी भागवत पुराण में ही एक आख्यान में है कि प्राचीन समय में पृथिवी के सभी नर भयभीत होकर महर्षि काश्यप की शरण में गए तब काश्यप भी भयभीत होकर ब्रह्मा के ही परामर्श से वेद बीज के अनुसार मंत्र रचना की ।

पुरा नागभयाक्रांना बभूवुर्मानवा भुवि ।
गतास्ते शरणं सर्वे कश्यपं मुनिपुङ्गवम् । ।
मंत्रांश्च ससृजे भीतः कश्यपो ब्रह्मणाऽन्वितः । 
वेदबीजानुसारेण चोपदेशेन ब्रह्मणः ।

देवी भागवत पुराण में एक स्थान पर सावित्री देवी को वेदों की अधिष्ठात्री देवी बतलाते हुए, वेद बीज रूपी कहा गया है-

वेदाधिष्ठातृदेवी च वेदशास्त्रस्वरूपापिणीम् । 
वेदबीजस्वरूपां य भजे तां वेदमातरम् ।।

5- स्कन्द पुराण के अनुसार वेदोत्पत्ति - काशी के महात्म्य का वर्णन करने वाले स्कन्द पुराण में प्रयोगेश्वरमहात्म्य प्रकरण में सावित्री को समस्त वेदों की माता बतलाया गया है साथ ही यह भी उल्लेख है कि सावित्री के हृदय में तीन पुरूषों को क्रमशः स्थित बतलाया गया है। स्वयं वेदमाता सावित्री कहती हैं कि "जो यह मेरे शरीर में स्थित है, जिसके परम शुभ अंग और परम चारू एवं शोभा वाला है । यही प्रथम स्थित पुरूष ऋग्वेद नाम वाला है। द्वितीय स्थित पुरूष यजुर्वेद नाम वाला है तथा तृतीय स्थित पुरूष सामवेद वाला है। अतः तीन वेद मुझ में स्थित है।

माताहं सर्ववेदानां सावित्रानाम् नामतः ।
मां न जानासियेन त्वमतोवेदा हृतास्तवा । ।
एवमुक्ते मया वृष्टा विस्मयेन महीपते । 
वेदानां त्वं तु माता वैकथयस्वममानद्ये ।।
त्वदीयहृदये देवि ! क एते पुरुषास्त्रयः ।
एष मच्छरीरस्थः शुभाङ्गश्चारुशोभनः ।
एष ऋग्वेदनामा तु यजुर्वेदो द्वितीयकः । ।
सामवेदस्तृतीयस्तु त्रयो वेदामयि स्थिताः । 
त्रयऽग्नयस्त्रयो देवा मच्छरीरे स्थिता द्विजः । । '

स्कन्द पुराण के रेवा खण्ड में ब्रह्मा के मुख से पुराण समस्त शास्त्र व वेदों को विनिर्गत बतलाया गया ।

अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गताः । 
पुराणमेकमेवासीदस्मिन्कल्पान्तरे मुनेः । ।'

6- मनुस्मृति के अनुसार वेदोत्पत्ति - मनुस्मृति के प्रथम अध्याय में ही महात्मा मनु ने ब्रह्मा जी से यज्ञ की सृष्टि को वर्णन करते हुए यह उल्लेख किया है कि उस ब्रह्मा ने यज्ञों की सिद्धी के लिये क्रमशः अग्नि, वायु और सूर्य से नित्य ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद को प्रकट किए अतः प्रस्तुत श्लोक से स्पष्ट है कि वेदों की उत्पत्ति वायु, अग्नि और सूर्य से हुई है, यथा-

अग्निवायुरविभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्मा सनातनम् । 
दुदोह यज्ञसिद्धयर्थऋग्यजुः सामलक्षणम् ।।

7- श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार वेदोत्पत्ति -  भगवान श्रीकृष्ण के सुन्दर व मानवजीवनोपयोगी उपदेशों का महात्म्य बतलाने वाले श्रीमदभगवद्गीता में भी पुराणों की भाँति ॐकार से वेदों के निःसरण की चर्चा है। गीता के 17वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि "ॐ तत् सत्" - ऐसे यह तीन प्रकार का सच्चिदानन्दघन ब्रह्म का नाम कहा है उसी से सृष्टि के आदिकाल में ब्राह्मण और वेद तथा यज्ञादि विहित किए गए।

ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधिः स्मृतः ।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा । । '

संदर्भ -
  1. स्कन्द पुराण - द्वितीय खण्ड - रेवा खण्ड - श्लोक 6
  2. मनुस्मृति 1/23
  3. स्कन्द पुराण - द्वितीय खण्ड - अवन्ती खण्ड - 80 - प्रागेश्वरमहात्मवर्णन - श्लोक 13-17
  4. देवी भागवत पुराण / द्वितीय खण्ड / श्लोक 12 2- देवी भागवत पुराण / द्वितीय खण्ड / श्लोक 48
  5. ब्रह्म पुराण / प्रथम खण्ड / श्लोक 49
  6. देवी भागवत पुराण / द्वितीय खण्ड / श्लोक 5 
  7. देवी भागवत पुराण / द्वितीय खण्ड / श्लोक 11
  8. मत्स्य पुराण / 171/23
  9. मत्स्य पुराण / 171/24
  10. ब्रह्म पुराण / प्रथम खण्ड / श्लोक 48
  11. मत्स्य पुराण / 53/1,
  12. श्रीमद्भागवत् पुराण / 12/6/40
  13. श्रीमद्भागवत् पुराण / 12/6/41
  14. श्रीमद्भागवत् पुराण / 12/6/43
  15. श्रीमद्भागवत् पुराण / 12/6/44

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