अर्थशास्त्र की परिभाषा एवं शाखाएं

अर्थशास्त्र एक अत्यंत विशाल विषय है। इसलिये अर्थशास्त्र की कोई निश्चित परिभाषा अथवा अर्थ देना आसान नहीं है क्योंकि इसकी सीमा तथा क्षेत्र, जो इसमें सम्मिलित हैं, अत्यंत विशाल हैं। जिस समय से यह सामाजिक विज्ञान के अध्ययन की एक पृथक शाखा के रूप में उभर कर आया है, विभिन्न विद्वानों तथा लेखकों ने इसका अर्थ तथा उद्देश्य बताने का प्रयत्न किया है। यह ध्यान देना चाहिये कि समय तथा सभ्यता के विकास के साथ अर्थशास्त्र की परिभाषा में रूपान्तरण तथा परिवर्तन हुए हैं। आइये, हम अर्थशास्त्र के अर्थ से संबंधित प्रमुख विचारों पर अपना ध्यान केन्द्रित करें :

(i) अठारहवीं शताब्दी के अन्त तथा उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में अनेक विद्वानों तथा लेखकों का मत था कि अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है। इन विद्वानों को क्लासिकी अर्थशास्त्री कहते हैं। उनकी दृष्टि में अर्थशास्त्र धन से संबंधित घटनाओं/पदार्थों का अध्ययन करता है जिसमें धन की प्रकृति तथा उद्देश्य, व्यक्तियों तथा देशों आदि द्वारा धन का सृजन करना आदि को शामिल किया जाता है।

(ii) धन की परिभाषा में समस्या थी कि यह उन लोगों के बारे में बात नहीं करती थी जिनके पास धन नहीं होता। धन होना तथा धन नहीं होना ने समाज को धनी तथा निर्धन अथवा गरीब में विभाजित कर दिया। उन्नसवीं शताब्दी के आरम्भ में अनेक विज्ञानों ने सोचा कि अर्थशास्त्र को ‘समाज के कल्याण’ के विषय पर बात करनी चाहिये न कि केवल धन के बारे में। तदनुसार अर्थशास्त्र को कल्याण के विज्ञान के रूप मेंं देख्ेखा गया। कल्याण प्रकृति में परिमाणात्मक तथा गुणात्मक दोनों होता है। वस्तुओं एवं सेवाओं का उपभोग, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि आदि कल्याण के परिमाणात्मक पहलू हैं। शांति से रहना, अवकाश का आनन्द लेना, ज्ञान अर्जित करना आदि कल्याण के गुणात्मक पहलू हैं। कल्याण के विज्ञान के रूप में अर्थशास्त्र का संबंध केवल परिमाणात्मक कल्याण से ही माना गया क्योंकि उसे मुद्रा में मापा जा सकता है।

(iii) अर्थशास्त्र की कल्याण की परिभाषा ने कल्याण के केवल भौतिक पहलुओं की ही व्याख्या की। परन्तु लोगों को भौतिक वस्तुओं तथा अभौतिक सेवाओं दोनों की आवश्यकता होती है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अथवा समाज के पास उपलब्ध संसाधन दुर्लभ होते हैं, लोग अपने लक्ष्यों को इन संसाधनों के बैकल्पिक प्रयोग से प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं जो वे उपयुक्त चयन के द्वारा करते हैं। अत: अर्थशास्त्र को दुलुर्लर्भ्भता तथा चयन का विज्ञान कहा गया। दुर्लभता तथा चयन के विज्ञान के रूप में अर्थशास्त्र मानवीय व्यवहार के उद्देश्यों व उन दुर्लभ साधनों के संबंधों का अध्ययन करता है जिनका वैकल्पिक प्रयोग किया जा सकता है।

यहाँ ‘उद्देश्यों’ से अभिप्राय ‘आवश्यकताएं’ तथा ‘दुर्लभ संसाधनों’ से अभिप्राय ‘सीमित संसाधनों’ से है। दुर्लभता की परिभाषा के अनुसार, सीमित संसाधनों के वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं। कपड़ा तथा गेहूँ - दो वस्तुओं के उत्पादन का उदाहरण लीजिये। सीमित संसाधनों से हम कपड़ा तथा गेहूँ की असीमित मात्रा में उत्पादन नहीं कर सकते। इन वस्तुओं का उत्पादन करने के लिये संसाधनों को विभाजित करना पड़ता है। मान लीजिये, इनमें से किसी एक वस्तु जैसे गेहूँ की मांग में वृद्धि हो जाती है, इसलिये इसको अधिक मात्रा में उत्पादन करना पड़ता है जिसके लिये हमें अधिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। परन्तु दिया हुआ है कि संसाधन सीमित हैं, हम अधिक गेहूँ का उत्पादन केवल कपड़े के उत्पादन में से कुछ संसाधनों को निकालकर तथा इन्हें गेहूँ के उत्पादन में लगाकर ही कर सकते हैं। परिणामस्वरूप, कपड़े का उत्पादन कम हो जायेगा तथा गेहूँ के उत्पादन में वृद्धि हो जायेगी। इस उदाहरण में हमारे पास दो विकल्प हैं :
  1. कपड़ा तथा गेहूँ का उसी मात्रा में उत्पादन करते रहें।
  2. गेहूँ की मांग में वृद्धि होने के कारण उसका अधिक उत्पादन करें, इसके कारण कपड़े की कुछ मात्रा कम कर दें।
क्योंकि अर्थव्यवस्था को अधिक गेहूँ की आवश्यकता है, अर्थशास्त्र का अध्ययन हमें बतलाता है कि सीमित संसाधनों से इस समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है।

(iv) बीसवीं शताब्दी में पूरी अर्थव्यवस्था की संवृद्धि तथा विकास प्राप्त करने के उद्देश्य ने गति पकड़ी। आर्थिक संवृद्धि तथा विकास में सरकार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई। इसलिये अर्थशास्त्र अब केवल व्यक्तिगत निर्णय लेने तथा संसाधनों के प्रयोग तक ही सीमित नहीं रह गया। समय के साथ वस्तुओं के उत्पादन तथा उपभोग को सम्मिलित कर इसके क्षेत्र में विस्तार किया गया ताकि अर्थव्यवस्था में संवृद्धि तथा विकास हो सके।

इसलिये अर्थशास्त्र को संवंवृृिद्धि तथा विकास का विज्ञान कहा गया है। वास्तव में, यह सत्य है कि आजकल लोग व्यक्तियों तथा पूरे देश के कल्याण के बारे में बात करते हैं। यह समझा जाता है कि किसी व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की तुष्टि करने के योग्य बनाने के लिये यह आवश्यक है कि पूरी अर्थव्यवस्था में संवृद्धि होनी चाहिये तथा संवृद्धि के लाभों को व्यक्तिगत नागरिकों में वितरित करने के लिये उपयुक्त साधन ढूँढने चाहिए। अत: संसाधनों के प्रयोग तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन तथा वितरण के संबंध में अर्थव्यवस्था का निष्पादन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अर्थव्यवस्था को अपने संसाधनों का विभिन्न वैकल्पिक गतिविधियों में आबंटन, कुशल प्रयोग सुनिश्चित करना चाहिये तथा अर्थव्यवस्था के भावी विकास के लिये उनमें संवृद्धि किस प्रकार होगी इसके तरीके ढूँढने चाहिये। इस आधार पर, विश्व की अनेक अर्थव्यवस्थाओं का निष्पादन अच्छा रहा है। उदाहरण के लिये संयुक्त राज्य (USA) यूरोप के देश, जापान आदि को विकसित अर्थव्यवस्थायें कहा जाता है क्योंकि इन्होंने अपने नागरिकों के लिये आय के उच्च स्तर को प्राप्त किया है। हमारी भारतीय अर्थव्यवस्था विकासशील अर्थव्यवस्था है क्योंकि इसके अनेक नागरिक अभी भी गरीब हैं। अर्थशास्त्र का अध्ययन हमें अपनी अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में ज्ञान कराता है तथा संवृद्धि तथा विकास के ऊँचे स्तर को प्राप्त करने में मार्गदर्शन करता है।

(v) बीसवीं शताब्दी के अन्त के अर्थशािस्त्रायों ने भावी पीढ़ियों के कल्याण तथा पर्यावरण की सुरक्षा के विषय में भी बात करना आरम्भ कर दिया है। इसलिये अर्थशास्त्र को धारणीय विकास का विज्ञान भी कहा जाता है। संवृद्धि तथा विकास का उच्च स्तर प्राप्त करने के लिये सारे विश्व की अर्थव्यवस्थायें प्राकृतिक संसाधनों का शोषण कर पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं। वस्तुओं और सेवाओं के उपभोग के परिणामस्वरूप अनेक व्यर्थ पदार्थ भी उत्पन्न हुए हैं। ध्यान दीजिये कि कुछ संसाधनों जैसे खनिज, खनिज-तेल, वन, वर्तमान पीढ़ियों द्वारा उनके बढ़ते हुए उपभोग के कारण उनका तीव्र गति से क्षय हो रहा है। इसलिये भावी पीढ़ियों के लिये संसाधन कम रह जायेंगे अथवा बचेंगे ही नहीं। उपलब्ध दुर्लभ संसाधनों का युक्तिसंगत, कुशलतापूर्वक प्रयोग करना तथा भावी पीढ़ियों का कल्याण सुनिश्चित करना हमारा नैतिक कर्त्तव्य है।

अर्थशास्त्र की शाखाएं

अर्थशास्त्र के अध्ययन को दो भिन्न शाखाओं में विभाजित किया जाता है। वे हैं :
  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र
  2. समष्टि अर्थशास्त्र

व्यष्टि अर्थशास्त्र

“Micro” शब्द का अर्थ अत्यंत सूक्ष्म होता है। अत: व्यष्टि अर्थशास्त्र अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर अर्थशास्त्र के अध्ययन का अर्थ प्रकट करता है। इसका वास्तविक अर्थ क्या है? एक समाज जिसमें सामूहिक रूप से अनेक व्यक्ति सम्मिलित हैं, प्रत्येक अकेला व्यक्ति उसका एक सूक्ष्म भाग है। इसलिये एक व्यक्ति द्वारा लिये गये आर्थिक निर्णय व्यष्टि अर्थशास्त्र की विषय वस्तु हो जाते हैं। एक व्यक्ति द्वारा लिये जाने वाले निर्णय क्या हैं? हम इस संबंध में कुछ उदाहरणों का उल्लेख कर सकते हैं।
  1. विभिन्न आवश्यकताओं की तुष्टि के लिये व्यक्ति वस्तुएं तथा सेवाएं खरीदता है। वस्तुएं तथा सेवाएं खरीदने के लिये व्यक्ति को अपनी आय की सीमित राशि में से कुछ कीमत का भुगतान करना पड़ता है। इसलिये व्यक्ति को दी गई कीमत पर वस्तु की खरीदी जाने वाली मात्रा के बारे में निर्णय लेना पड़ता है। उसे दी गई आय में खरीदी जाने वाली विभिन्न वस्तुओं के संयोग का भी निर्णय लेना पड़ता है, ताकि क्रेता के रूप में उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो सके।
  2. एक व्यक्ति विक्रेता के रूप में वस्तुओं तथा सेवाओं का विक्रय भी करता है। यहाँ उसे दी गई कीमत पर वस्तु की आपूर्ति की मात्रा के बारे में निर्णय लेना पड़ता है ताकि वह कुछ लाभ कमा सके।
  3. हम सब किसी वस्तु को खरीदने के लिये कीमत का भुगतान करते हैं। बाजार में इस कीमत का निर्धारण कैसे होता है? व्यष्टि अर्थशास्त्र इस प्रश्न का उत्तर देता है।
  4. किसी वस्तु का उत्पादन करने के लिये एक व्यक्तिगत उत्पादक को निर्णय लेना पड़ता है कि वह उत्पादन के विभिन्न साधनों को किस प्रकार संयोजित करे जिससे कि न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन कर सके।
ये सभी व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत अध्ययन के कुछ मुख्य क्षेत्र हैं।

समष्टि अर्थशास्त्र

‘Macro’ शब्द का अर्थ है - बहुत बड़ा। एक व्यक्ति की तुलना में समाज अथवा देश अथवा सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी है। इसलिये सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर लिये गये निर्णय समष्टि अर्थव्यवस्था की विषयवस्तु है। सरकार द्वारा लिये गये आर्थिक निर्णयों का उदाहरण लीजिये। हम सभी जानते हैं कि सरकार पूरे देश का प्रतिनिधित्व करती है, केवल एक व्यक्ति का नहीं। इसलिये सरकार द्वारा लिये गये निर्णय सम्पूर्ण समाज की समस्याओं को हल करने के लिये होते हैं। उदाहरण के लिये, सरकार करों को एकत्रा करने, सार्वजनिक वस्तुओं पर व्यय करने तथा कल्याण से संबंधित गतिविधियों आदि के बारे में नीतियां बनाती है जो पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती हैं। ‘ये नीतियां किस प्रकार कार्य करती है’, समष्टि अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु है। व्यष्टि अर्थशास्त्र में हम एक व्यक्ति के व्यवहार का क्रेता तथा विक्रेता के रूप में अध्ययन करते हैं। एक क्रेता के रूप में व्यक्ति वस्तु और सेवाओं पर धन/मुद्रा व्यय करता है जो उसका उपभोग व्यय कहलाता है। यदि हम सभी व्यक्तियों के उपभोग व्यय को जोड़ दें तो हमें सम्पूर्ण समाज के समग्र उपभोग व्यय का ज्ञान प्राप्त होता है। इसी प्रकार, व्यक्तियों की आयों को जोड़कर सम्पूर्ण देश की आय अथवा राष्ट्रीय आय हो जाती है। इसलिये, इन समग्रों जैसे राष्ट्रीय आय, देश का कुल उपभोग व्यय आदि का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत आते हैं। समष्टि अर्थशास्त्र का उदाहरण मुद्रा स्फीति अथवा कीमत-वृद्धि है।

मुद्रा स्फीति अथवा कीमत वृद्धि केवल एक व्यक्ति को प्रभावित नहीं करती, बल्कि यह सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। इसलिये इसके कारणों, प्रभावों को जानना तथा इसे नियंित्रात करना भी समष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन के अन्तर्गत आता है।

इसी प्रकार, बेरोजगारी की समस्या, आर्थिक संवृद्धि तथा विकास आदि देश की सम्पूर्ण जनसंख्या से संबंधित होते हैं, इसलिये समष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन के अन्तर्गत आते हैं।

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