परिकल्पना का अर्थ, परिकल्पना क्या है? परिकल्पना शब्द परि + कल्पना दो शब्दों से मिलकर बना है। परि का अर्थ
चारो ओर तथा कल्पना का अर्थ चिन्तन है। इस प्रकार परिकल्पना से तात्पर्य किसी
समस्या से सम्बन्धित समस्त सम्भावित समाधान पर विचार करना है।
परिकल्पना किसी भी अनुसन्धान प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण स्तम्भ है।
इसका तात्पर्य यह है कि किसी समस्या के विश्लेषण और परिभाशीकरण के
पश्चात उसमें कारणों तथा कार्य कारण सम्बन्ध में पूर्व चिन्तन कर लिया गया है,
अर्थात् अमुक समस्या का यह कारण हो सकता है, यह निश्चित करने के पश्चात
उसका परीक्षण प्रारम्भ हो जाता है।
अनुसंधान कार्य परिकल्पना के निर्माण और
उसके परीक्षण के बीच की प्रक्रिया है। परिकल्पना के निर्माण के बिना न तो कोई
प्रयोग हो सकता है और न कोई वैज्ञानिक विधि के अनुसन्धान ही सम्भव है।
वास्तव में परिकल्पना के अभाव में अनुसंधान कार्य एक उद्देश्यहीन क्रिया है।
परिकल्पना की परिभाषा
परिकल्पना की परिभाषा से समझने के लिए कुछ विद्वानों की परिभाषाओं केा समझना आवश्यक है। जो है -1. करलिंगर (Kerlinger) –
‘‘परिकल्पना केा दो या दो से अधिक चरों के मध्य सम्बन्धों का कथन
मानते हैं।’’
2. मोले (George G. Mouley ) –
‘‘परिकल्पना एक धारणा अथवा तर्कवाक्य है जिसकी स्थिरता की परीक्षा
उसकी अनुरूपता, उपयोग, अनुभव-जन्य प्रमाण तथा पूर्व ज्ञान के आधार पर
करना है।’’
3. गुड तथा हैट (Good & Hatt ) –
‘‘परिकल्पना इस बात का वर्णन करती है कि हम क्या देखना चाहते है।
परिकल्पना भविश्य की ओर देखती है। यह एक तर्कपूर्ण कथन है जिसकी वैद्यता
की परीक्षा की जा सकती है। यह सही भी सिद्ध हो सकती है, और गलत भी।
4. लुण्डबर्ग (Lundberg ) –
‘‘परिकल्पना एक प्रयोग सम्बन्धी सामान्यीकरण है जिसकी वैधता की
जॉच हेाती है। अपने मूलरूप में परिकल्पना एक अनुमान अथवा काल्पनिक
विचार हो सकता है जो आगे के अनुसंधान के लिये आधार बनता है।’’
5. मैकगुइन (Mc Guigan ) –
‘‘परिकल्पना दो या अधिक चरों के कार्यक्षम सम्बन्धों का परीक्षण योग्य
कथन है। ’’
अत: उपरेाक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परिकल्पना किसी भी समस्या के लिये सुझाया गया वह उत्तर है जिसकी तर्कपूर्ण वैधता की जॉच की जा सकती है। यह दो या अधिक चरों के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध है ये इंगित करता है तथा ये अनुसन्धान के विकास का उद्देश्यपूर्ण आधार भी है।
अत: उपरेाक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परिकल्पना किसी भी समस्या के लिये सुझाया गया वह उत्तर है जिसकी तर्कपूर्ण वैधता की जॉच की जा सकती है। यह दो या अधिक चरों के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध है ये इंगित करता है तथा ये अनुसन्धान के विकास का उद्देश्यपूर्ण आधार भी है।
शोध परिकल्पना के प्रकार
मनोवैज्ञानिक, समाजषास्त्र तथा षिक्षा के क्षेत्र में शोधकर्ताओं द्वारा बनायी गयी परिकल्पनाओं के स्वरूप पर यदि ध्यान दिया जाय तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि उसे कई प्रकारों में बाँटा जा सकता है। शोध विशेषज्ञों ने परिकल्पना का वर्गीकरण तीन आधारों पर किया है -1. चरों की सख्या के आधार पर -
1. साधारण परिकल्पना - साधारण परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना से है जिसमें चरों की संख्या मात्र दो होती है और इन्ही दो चरों के बीच के सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण स्वरूप बच्चों के सीखने में पुरस्कार का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यहाँ सीखना तथा पुरस्कार दो चर है जिनके बीच एक विशेष सम्बन्ध की चर्चा की है। इस प्रकार परिकल्पना साधारण परिकल्पना कहलाती है।2. जटिल परिकल्पना - जटिल परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना से है जिसमें दो से अधिक चरों के बीच आपसी सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। जैसे- अंग्रेजी माध्यम के निम्न उपलब्धि के विद्यार्थियों का व्यक्तित्व हिन्दी माध्यम के उच्च उपलब्धि के विद्यार्थियों की अपेक्षा अधिक परिपक्व होता है। इस परिकल्पना में हिन्दी अंग्रेजी माध्यम, निम्न उच्च उपलब्धि स्तर एवं व्यक्तित्व तीन प्रकार के चर सम्मिलित हैं अत: यह एक जटिल परिकल्पना का उदाहरण है।
2. चरों की विशेष सम्बन्ध के आधार पर -
मैक्ग्यूगन ने (Mc. Guigan, 1990) ने इस कसौटी के आधार पर परिकल्पना के मुख्य दो प्रकार बताये हैं-1. सार्वत्रिक या सार्वभौमिक परिकल्पना - सार्वत्रिक परिकल्पना से स्वयम् स्पष्ट होता है कि ऐसी परिकल्पना जो हर क्षेत्र और समय में समान रूप से व्याप्त हो अर्थात् परिकल्पना का स्वरूप ऐसा हेा जो निहित चरों के सभी तरह के मानों के बीच के सम्बन्ध को हर परिस्थिति में हर समय बनाये रखे। उदाहरण स्वरूप- पुरस्कार देने से सीखने की प्रक्रिया में तेजी आती है। यह एक ऐसी परिकल्पना हे जिसमें बताया गया सम्बन्ध अधिकांश परिस्थितियों में लागू होता है।
2. अस्तित्वात्मक परिकल्पना - इस प्रकार की परिकल्पना यदि सभी व्यक्तियों या परिस्थितियों के लिये नहीं तो कम से कम एक व्यक्ति या परिस्थिति के लिये नििष्च्त रूप से सही होती है। जैसे - सीखने की प्रक्रिया में कक्षा में कम से कम एक बालक ऐसा है पुरस्कार की बजाय दण्ड से सीखता है’ इस प्रकार की परिकल्पना अस्तित्वात्मक परिकल्पना है।
3. विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर -
विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर परिकल्पना के तीन प्रकार है-1. शोध परिकल्पना - इसे कायर्रूप परिकल्पना या कायार्त्मक परिकल्पना भी कहते हैं। ये परिकल्पना किसी न किसी सिद्धान्त पर आधारित या प्रेरित होती है। शोधकर्ता इस परिकल्पना की उद्घोषणा बहुत ही विश्वास के साथ करता है तथा उसकी यह अभिलाषा होती है कि उसकी यह परिकल्पना सत्य सिद्ध हो।
उदाहरण के लिये - ‘करके सीखने’ से प्राप्त अधिगम अधिक सुदृढ़ हेाता है और अधिक समय तक टिकता है।’ चूकि इस परिकल्पना में कथन ‘करके सीखने’ के सिद्वान्त पर आधारित है अत: ये एक शोध परिकल्पना है।
शोध परिकल्पना दो प्रकार की होती है-दिशात्मक एवं अदिशात्मक। दिशात्मक परिकल्पना में परिकल्पना किसी एक दिशा अथवा दषा की ओर इंगित करती है जब कि अदिशात्मक परिकल्पना में ऐसा नही होता है।
2. शून्य परिकल्पना - शून्य परिकल्पना शोध परिकल्पना के ठीक विपरीत होती है। इस परिकल्पना के माध्यम से हम चरों के बीच कोई अन्तर नहीं होने के संबंध का उल्लेख करते हैं। उदाहरण स्वरूप उपरोक्त परिकल्पना केा नल परिकल्पना के रूप में निम्न रूप से लिखा जा सकता है- ‘विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि एंव कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि में कोई अंतर नही है।
एक अन्य उदाहरण में यदि शोध परिकल्पना यह है कि, ‘‘व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी सीखता है’’ तो इस परिकल्पना की शून्य परिकल्पना यह होगी कि - ‘व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी नहीं सीखता है।’’
अत: उपरोक्त उदाहरणों के माध्यम से शून्य अथवा नल परिकल्पना को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
3. सांख्यिकीय परिकल्पना - जब शोध परिकल्पना या शून्य परिकल्पना का सांख्यिकीय पदों में अभिव्यक्त किया जाता है तो इस प्रकार की परिकल्पना सांख्यिकीय परिकल्पना कहलाती है। शोध परिकल्पना अथवा सांख्यिकीय परिकल्पना को सांख्यिकीय पदों में व्यक्त करने के लिये विशेष संकेतों का प्रयोग किया जाता है। शोध परिकल्पना के लिये H1 तथा शून्य परिकल्पना के लिये H0 का प्रयोग हेाता है तथा माध्य के लिये X का प्रयोग किया जाता है।
परिकल्पना के कार्य
1. दिशा निर्देश देना - परिकल्पना अनुसंधानकता को निर्देशित करती है। इससे यह ज्ञात होता है कि अनुसन्धान कार्य में कौन कौन सी क्रियायें करती हैं एवं कैसे करनी है। अत: परिकल्पना के उचित निर्माण से कार्य की स्पष्ट दिशा निश्चित हो जाती है।2. प्र्रमुख तथ्यों का चुनाव करना - परिकल्पना समस्या को सीमित करती है तथा महत्वपूर्ण तथ्यों के चुनाव में सहायता करती है। किसी भी क्षेत्र में कई प्रकार की समस्यायें हो सकती है लेकिन हमें अपने अध्ययन में उन समस्याओं में से किन पर अध्ययन करना है उनका चुनाव और सीमांकन परिकल्पना के माध्यम से ही होता है
3. पुनरावृत्ति को सम्भव बनाना - पुनरावृत्ति अथवा पुन: परीक्षण द्वारा अनुसन्धान के निष्कर्ष की सत्यता का मूल्यांकन किया जाता है। परिकल्पना के अभाव में यह पुन: परीक्षण असम्भव होगा क्यों कि यह ज्ञात ही नही किया जा सकेगा किस विशेष पक्ष पर कार्य किया गया है तथा किसका नियंत्रण करके किसका अवलेाकन किया गया है।
4. निष्कर्ष निकालने एवं नये सिद्धान्तों के प्रतिपादन करना - परिकल्पना अनुसंधानकर्ता केा एक निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने में सहायता करती है तथा जब कभी कभी मनोवैज्ञानिकों को यह विश्वास के साथ पता होता है कि अमुक घटना के पीछे क्या कारा है तो वह किसी सिद्धान्त की पश्श्ठभूमि की प्रतीक्षा किये बिना परिकल्पना बनाकर जॉच लेते हैं। परिकल्पना सत्य होने पर फिर वे अपनी पूर्वकल्पनाओं, परिभाषाओं और सम्प्रत्ययों को तार्किक तंत्र में बांधकर एक नये सिद्धान्त का प्रतिपादन कर देते है। अत: उपरोक्त वर्णन के आधार पर हम परिकल्पनाओं के क्या मुख्य कार्य है आदि की जानकारी स्पष्ट रूप से प्राप्त कर सकते है।
परिकल्पना की प्रकृति
किसी भी परिकल्पना की प्रकृति रूप में हो सकती है -- यह परीक्षण के योग्य होनी चाहिये।
- इसह शोध को सामान्य से विशिष्ट एवं विस्तृत से सीमित की ओर केन्द्रित करना चाहिए।
- इससे शोध प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर मिलना चाहिए।
- यह सत्याभासी एवं तर्कयुक्त होनी चाहिए।
- यह प्रकृति के ज्ञात नियमों के प्रतिकूल नहीं होनी चाहिए।
परिकल्पना के स्रोत
1. समस्या से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन - समस्या से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन करके उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।2. विज्ञान -
विज्ञान से प्रतिपादित सिद्धान्त परिकल्पनाओं को जन्म देते हैं।
3. संस्कृति -
संस्कृति परिकल्पना की जननी हो सकती है। प्रत्येक समाज में विभिन्न
प्रकार की संस्कृति होती है। प्रत्येक संस्कृति सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों में
एक दूसरे से भिन्न होती है ये भिन्नता का आधार अनेक समस्याओं को जन्म देता
है और जब इन समस्याओं से सम्बन्धित चिंतन किया जाता है तो परिकल्पनाओं
का जन्म होता है।
4. व्यक्तिगत अनुभव -
व्यक्तिगत अनुभव भी परिकल्पना का आधार हेाता है, किन्तु नये अनुसंध्
ाानकर्ता के लिये इसमें कठिनाई है। किसी भी क्षेत्र में जिनका अनुभव जितना ही
सम्पन्न होता है, उन्हें समस्या के ढूँढ़ने तथा परिकल्पना बनाने में उतनी ही
सरलता होती है।
5. रचनात्मक चिंतन -
यह परिकल्पना के निर्माण का बहुत बड़ा आधार है। मुनरो ने इस पर
विशेष बल दिया है। उन्होने इसके चार पद बताये हैं - (i) तैयारी (ii) विकास
(iii) प्रेरणा और (iv) परीक्षण। अर्थात किसी विचार के आने पर उसका विकास
किया, उस पर कार्य करने की प्रेरणा मिली, परिकल्पना निर्माण और परीक्षण
किया।
6. अनुभवी व्यक्तियों से परिचर्चा -
अनुभवी एवं विषय विशेषज्ञों से परिचर्चा एवं मार्गदर्शन प्राप्त कर उपयुक्त
परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।
7. पूर्व में हुए अनुसंधान -
सम्बन्धित क्षेत्र के पूर्व अनुसंधानों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि किस
प्रकार की परिकल्पना पर कार्य किया गया है। उसी आधार पर नयी परिकल्पना
का सर्जन किया जा सकता है।
उत्तम परिकल्पना की विशेषताएं या कसौटी
1. परिकल्पना जाँचनीय हो - एक अच्छी परिकल्पना की पहचान यह है कि उसका प्रतिपादन इस ढ़ंग से किया जाये कि उसकी जाँच करने के बाद यह निश्चित रूप से कहा जा सके कि परिकल्पना सही है या गलत । इसके लिये यह आवश्यक है कि परिकल्पना की अभिव्यक्ति विस्तश्त ढ़ंग से न करके विशिष्ट ढ़ंग से की जाये। अत: जॉँचनीय परिकल्पना वह परिकल्पना है जिसे विष्वास के साथ कहा जाय कि वह सही है या गलत।2. परिकल्पना मितव्ययी हो -
परिकल्पना की मितव्ययिता से तात्पर्य उसके ऐसे स्वरूप से है जिसकी
जाँच करने में समय, श्रम एवं धन कम से कम खर्च हो और सुविधा अधिक प्राप्त
हो।
3. परिकल्पना को क्षेत्र के मौजूदा सिद्धान्तों तथा तथ्यों से
सम्बन्धित होना चाहिए-
कुछ परिकल्पना ऐसी होती है जिनमें शोध समस्या का उत्तर तभी मिल
पाता है जब अन्य कई उप कल्पनायें (Sub-hypothesis) तैयार कर ली जाये।
ऐसा इसलिये होता है क्योंकि उनमें तार्किक पूर्णता तथा व्यापकता के आधार के
अभाव होते हैं जिसके कारण वे स्वयं कुछ नयी समस्याओं को जन्म दे देते हैं और
उनके लिये उपकल्पनायें तथा तदर्थ पूर्वकल्पनायें (adhoc assumptions) तैयार
कर लिया जाना आवश्यक हो जाता है। ऐसी स्थिति में हम ऐसी अपूर्ण
परिकल्पना की जगह तार्किक रूप से पूर्ण एवं व्यापक परिकल्पना का चयन
करते हैं।
4. परिकल्पना को किसी न किसी सिद्धान्त अथवा तथ्य अथवा
अनुभव पर आधारित होना चाहिये -
परिकल्पना कपोल कल्पित अथवा केवल रोचक न हो। अर्थात् परिकल्पना
ऐसी बातों पर आधारित न हो जिनका केाई सैद्धान्तिक आधार न हो। जैसे -
काले रंग के लोग गोरे रंग के लोगों की अपेक्षा अधिक विनम्र होते हैं। इस प्रकार
की परिकल्पना आधारहीन परिकल्पना है क्योंकि यह किसी सिद्धान्त या मॉडल
पर आधारित नहीं है।
5. परिकल्पना द्वारा अधिक से अधिक सामान्यीकरण किया जा सके
परिकल्पना का अधिक से अधिक सामान्यीकरण तभी सम्भव है जब
परिकल्पना न तेा बहुत व्यापक हो और न ही बहुत विशिष्ट हो किसी भी अच्छी
परिकल्पना को संकीर्ण होना चाहिये ताकि उसके द्वारा किया गया
सामान्यीकरण उचित एवं उपयोगी हो।
6. परिकल्पना को संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होना चाहिए-
संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होने का अर्थ है परिकल्पना व्यवहारिक एवं
वस्तुनिश्ठ ढ़ंग से परिभाषित हो तथा उसके अर्थ से अधिकतर लोग सहमत हों।
ऐसा न हो कि परिभाषा सिर्फ व्यक्ति की व्यक्गित सोच की उपज हो तथा
जिसका अर्थ सिर्फ वही समझता हो।
इस प्रकार हम पाते हैं कि शोध मनोवैज्ञानिक ने शोध परिकल्पना की
कुछ ऐसी कसौटियों या विशेषताओं का वर्णन किया है जिसके आधार पर एक
अच्छी शोध परिकल्पना की पहचान की जा सकती है।
Very nice
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteलव यू
ReplyDelete2
DeleteLove you
ReplyDelete2
DeleteBook se Match hoga na? ?kyu ki Maine match nhi kia h. ..Or main Exam m v essi hee likhunga. .No too nhi ktenge naa. .????
ReplyDeleteNhi
DeleteResearch
ReplyDeleteResearch me hypothesis ka importance kya hai
ReplyDeleteH.1
ReplyDelete👍
ReplyDeletethanks सर बहुत अच्छा है
ReplyDeleteThank you sir
ReplyDeleteThankyou sir ji
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद में आपकी लेखन प्रक्रिया से काफी ज्यादा प्रभावित हुआ हूं मैं आपका कोई ना कोई लेखन पढ़ता रहता हूं मैं उत्तराखंड का मूल निवासी केदारनाथ से हूं Sartaj Hill view my top hai jo पहाड़ों कि दास्तां है
Badiya bhaiya I m from satna ...Jay shree ram..
ReplyDeleteThank you
ReplyDeleteits very good and easyli understable thanks so much
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