अनुक्रम
इसके पूर्व वारकरी संप्रदाय के उदय के बारे में जानकारी दी है। इस काल में वारकरी संप्रदाय में आए हुए संत कवियों का अध्ययन यहाँ किया गया है-
‘‘गरूड़ चढे़ जब विष्णु आया सांच भक्त मेरे दोही, धन्य कबीरा, धन्य रोहिदास, गावे सेना न्हावी।’’ यहाँ पर वेदशास्त्र को झूठा कहा है। मराठी मिश्रित हिंदी भाषा है। कबीर और रोहिदास का गुनगान किया है।
वारकरी संप्रदाय के प्रमुख संत
1. संत नामदेव -
भक्त शिरोमणि संत नामदेव का कार्यकाल सन् 1270 से सन् 1450 तक रहा है। नामदेव का जन्म शालिवाहन शके 1192 (सन् 1270) की कार्तिक शुक्ला एकादशी रविवार को सूर्योदय के समय हुआ। उनके जन्मस्थान के बारे में मतभेद है। कुछ लोग उनका जन्म नरसी बामणी मानते हैं, तो कुछ पंढरपुर। वे दर्जी जाति के थे। संत नामदेव के गुरु विसोबा खेचर थे। स्नेहसाथी संत ज्ञानेश्वर थे। नामदेव ने अनेक अलौकिक चमत्कार दिखाए।2. संत त्रिलोचन -
पं. परशुराम चतुर्वेदी ने इनका जन्म संवत् 1324 बताया है। ये नामदेव के शिष्य थे। इनकी रचनाएँ अब उपलब्ध नहीं हैं लेकिन सिक्खों के ‘गुरुग्रंथसाहेब’ में इनके चार पद उपलब्ध हैं। ये पद उपदेशपरक हैं तथा राग-रागिनियों से युक्त हैं। पूरणदास कृत’नामदेव चरित्र ‘में त्रिलोचन की कथा दी है। त्रिलोचन जाति के वैश्य थे।3. संत निपटनिरंजन -
ये हिंदी भाषी नाथपंथी संत हैं। उन्होंने संन्यास लिया था और भ्रमण करते-करते संवत 1720 में महाराष्ट्र में (देवगिरी) आए। वहीं पर रहने लगे। संत निपटनिरंजन का जन्म बुंदेलखंड के चंदेरी नामक ग्राम में जूझौतिया गौड़ ब्राह्मण के घर में हुआ था। उनके जन्मकाल के बारे में विभिन्न मतभेद हैं। शिवसिंह सरोज, डॉ. ग्रियर्सन, डॉ. नलिन विलोचन शर्मा ने इनका जन्म संवत् 1650 माना है। डॉ. रामकुमार वर्मा ने इनका जन्म संवत् 1596 माना है। डॉ. किशोरीलाल गुप्त ने इनका जन्म संवत् 1680 माना है।4. गोंदा महाराज -
यह संत नामदेव के तृतीय पुत्र थे। गोंदा का जन्म शके 1218 के पूर्व हुआ होगा ऐसा माना जाता है। इनकी रचनाएँ निम्न हैं- संत गाथा में गोंदा के 19 मराठी पद मिलते हैं। संत गाथा में ‘भाट’ शीर्षक के अंतर्गत 55 हिंदी पद मिलते हैं। इन्होंने नामदेव के जीवन के बारे में पद रचना की है। इनका एक हिंदी पद निम्नवत् है- ‘‘गजानन गौरी खूब लाल अंग पर अमूल। तरे मुरख वचनामृत उस जमदूत भागत है।।’’ यहाँ पर गोंदा महाराज ने गजानन का वर्णन किया है। यह अभंग छंद में लिखा हिंदी पद है। इन्होंने पिता नामदेव के साथ शके 1272 में पंढरपुर श्री विट्ठल मंदिर के महाद्वार के सामने समाधि ली।5. सेनानाई -
सेनानाई के काल के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। डॉ.रानडे इनका समय सन् 1448 मानते हैं। परशुराम चतुर्वेदी इनका काल 14 वीं विक्रमी शताब्दी का उत्तरार्ध व 15 वीं का पूर्वार्ध मानते हैं। महिपति के ‘भक्तविजय ‘के कथानुसार वे यवन बादशाह के नौकर थे। इन्होंने उत्तर भारत की यात्रा की है। इनका पंथ उत्तरी भारत में सेनाताई-पंथ नाम से प्रसिद्ध है। इनकी काव्य संपदा इस प्रकार है- मराठी में 150 अभंग हैं। इनकी गौलण (लोकगीत) शीर्षक से रचनाएँ मिलती हैं। गुरुग्रंथसाहेब में इनका एक पद मिलता है। धुलिया में समर्थ वाग्देवता मंदिर की पोथीशाला में इनका काव्य दो रूपों में पाण्डुलिपि में उपलब्ध हुआ है। इनका हिंदी का एक पद यहाँ पर उद्धृत है-‘‘गरूड़ चढे़ जब विष्णु आया सांच भक्त मेरे दोही, धन्य कबीरा, धन्य रोहिदास, गावे सेना न्हावी।’’ यहाँ पर वेदशास्त्र को झूठा कहा है। मराठी मिश्रित हिंदी भाषा है। कबीर और रोहिदास का गुनगान किया है।
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