अरस्तु का जीवन परिचय एवं महत्त्वपूर्ण रचनाएँ

अरस्तु का जन्म एथेन्स से 200 मील उत्तर में स्थिति यूनानी उपनिवेश स्तागिरा में 384 ई0 में हुआ था। अरस्तु के पिता निकोमाकस एक राजवैद्य थे और उनकी माता फैस्टिस एक गृहिणी थी। उसका बचपन मेसीडोनिया की राजधानी पेल्ला में बीता जहाँ उसके पिता राजवैद्य थे। उसकी बाल्यावस्था में ही उसके सिर से माँ-बाप का साया उठ गया। अरस्तु की शारीरिक बनावट एक कुरूप की तरह थी। अरस्तु ने बचपन से ही चिकित्सा विज्ञान में रुचि लेनी शुरु कर दी और उसने इस अनुभव का अपनी रचनाओं में फायदा उठाया। अरस्तु के जीवन काल को तीन भागों में बाँटा जा सकता है।

अपने जीवन के प्रथम काल में उसने अठारह वर्ष की आयु में प्लेटो का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया। इस समय एथेन्स में प्लेटो की अकादमी की ख्याति जोरों पर थी। अरस्तु एक प्रतिभाशाली छात्र था और प्लेटो का सबसे प्रिय शिष्य बन गया। अरस्तु को नई-नई पुस्तकें एकत्रित करने का शौक था। प्लेटो ने अरस्तु के घर को पाठक का घर कहा। वह प्लेटो का पिय शिष्य होने के बावजूद भी स्वतन्त्र चिन्तन में विश्वास रखता था, इसलिए उसने अपने गुरु प्लेटो के कुछ आदर्शों का विरोध भी किया। अरस्तु ने स्वयं कहा कि प्लेटो के साथ ही ज्ञान का अन्त नहीं होगा। लेकिन उसने अपने गुरु की मृत्यु तक अकादमी नहीं छोड़ी और उसकी मृत्यु पर उसे एक महान् चिन्तक बताया।

अपने जीवन के दूसरे काल में प्लेटो की मृत्यु (347 ई0 पू0) के बाद वह अकादमी में प्रधान पद प्राप्त करने में असफल रहने पर एथेन्स छोड़कर अपने मित्र जेनोक्रेटिज के साथ एस्सास नामक नगर में चला गया। वहाँ पर उसने सम्राट हरमियास के दरबार में राजवैद्य का पद स्वीकार कर लिया। कालान्तर में उसने सम्राट की सहायता से एक अकादमी की स्थापना की। अरस्तु ने सम्राट हरमियास की भानजी और दत्तकपुत्री से विवाह भी किया। 432 ई0 पू0 में सम्राट की मृत्यु के बाद वह एस्सास छोड़कर स्तागिरा चला गया और वहाँ पर उसने हर्पलिस नामक सुन्दरी से गुप्त विवाह कर लिया। 342 ई0 पू0 में ही वह मेसीडोनिया के राजा फिलिप द्वारा आमन्त्रित किए जाने पर सिकन्दर महान् को पढ़ाने हेतु मेसीडोनिया चला गया। 344 ई0 पू0 जब सिकन्दर विश्व विजय अभियान पर निकला तो वह वापिस एथेन्स चला गया।

अपने जीवन के तीसरे काल में मेसीडोनिया के राजा फिलिप की मृत्यु के बाद वह एथेन्स में 12 वर्ष तक रहा और उसमें ‘लाइसियम’ नामक अकादमी की स्थापना की। 323 ई0 पू0 सिकन्दर की मृत्यु होने पर एथेन्सवासियों ने मेसीडोनिया के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। अरस्तु मेसिडोनिया समर्थक होने के कारण देशद्रोह का आरोप लगने पर अपने प्राण बचाने हेतु यूबोइया टापू के कैल्सिस नामक नगर में चला गया। यहीं पर इस महान् दार्शनिक की 322 ई0 पू0 में जीवन ज्योति बुझ गई।

अरस्तु की महत्त्वपूर्ण रचनाएँ

अरस्तु की महानता उसके जीवन से नहीं, अपितु उसकी रचनाओं से स्पष्ट होती है। उसने गणित को छोड़कर मानव- जीवन और प्राकृतिक विज्ञान के हर क्षेत्र को छुआ है। उसने दर्शन, साहित्य, यन्त्र-विज्ञान, भौतिकशास्त्र, शरीर विज्ञान, खगोल विद्या, शासन कला, आचारशास्त्र, लेखन कला, भाषण कला, इतिहास, अर्थशास्त्र, राजनीति आदि विषयों पर लेख लिखे हैं। उसके गम्भीर और प्रभावशाली लेखन कार्य को देखकर यह कहा जाता है कि सबसे महान् दार्शनिक चिन्तक है। मैक्सी ने उसे ‘सर्वज्ञ गुरु’ और दाँते ने उसे ‘ज्ञाताओं का गुरु’ की संज्ञा दी है। कैटलिन ने उसे सामान्य बुद्धि और स्वर्ण मार्ग का सर्वोच्च धर्मपूत कहा है। उसके लेखन कार्य की महानता को देखकर फोस्टर ने कहा है- “अरस्तु की महानता उसकी रचनाओं में है, न कि उसके जीवन में।” उस की महत्त्वपूर्ण रचनाएँ इस कथन को स्पष्ट करती हैं कि वह अपने समय के यूनानी ज्ञान-विज्ञान का विश्वकोष था।

अरस्तु ने लगभग 400 ग्रन्थों की रचना की। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने उसके समस्त ग्रन्थों को 12 खण्डों में प्रकाशित किया है, जिसमें पृष्ठों की संख्या 3500 है। उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति ‘पॉलिटिक्स’ है। उसकी रचनाओं को सामान्य रूप से तार्किक, वैज्ञानिक, सौन्दर्यशास्त्रीय एवं दार्शनिक चार वर्गों में बाँटा जा सकता है। ‘कैटेगरीज’ (Categories), ‘टॉपिक्स’ (Topics), ‘प्रायर एनालीटिक्स’ (Prior Analytics), ‘पोस्टेरियर एनालीटिक्स’ (Posterior Analytics), ‘प्रोपोजीशन्स’ (Propositions), ‘सोफिस्टिकल रेफुटेशन’ (Sophistical Refutation) आदि रचनाएँ तार्किक रचनाएँ हैं। उसने भौतिकशास्त्र, जीव-विज्ञान, ऋतुविज्ञान आदि वैज्ञानिक विषयों पर भी लिखा। ‘मैटरोलॉजी’ (Meterology) तथा ‘हिस्ट्री ऑफ एनीमल’ (History of Animals) आदि रचनाएँ वैज्ञानिक कोटि की हैं। ‘रेटोरिक’ (Rhetoric) और ‘पोएटिक्स’ (Poetics) रचनाएँ सौन्दर्यशास्त्र के अन्तर्गत आती हैं। ‘मेटाफिजिक्स’ (Metaphysics), ‘निकोमाकियन एथिक्स’ (Nicomachean Ethics) एवं ‘पॉलिटिक्स’ (Politics), ‘दॉ कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ एथेन्स’ (The Constitution of Athens) दर्शनशास्त्र की रचनाएँ हैं। ‘यूडेमस’ (Eudemus), ‘काइलो’ (Caelo) तथा ‘डी अनिमा’ (De Anima) अरस्तु की अन्य प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।

अरस्तु के अध्ययन की पद्धति

अरस्तु राजनीति दर्शन के इतिहास में ऐसा प्रथम चिन्तक है जिसने एक परिपक्व विद्वान की तरह क्रमबद्ध ढंग से साहित्य का सर्जन किया। इसी कारण उसे प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक होने का श्रेय प्राप्त हुआ। अरस्तु की रचनाएँ कल्पना की उड़ान न होकर वास्तविकता से सम्बन्ध रखती हैं और उनमें प्रौढ़ावस्था का अनुभव है। मैक्सी के अनुसार- “अरस्तु ने प्राय: वैज्ञानिक पद्धति (Scientific Method) का अनुसरण किया है।” इसी प्रकार बार्कर ने भी लिखा है- “अरस्तु ने एक वैज्ञानिक की तरह लिखा है, उसके ग्रन्थ क्रमबद्ध, समीक्षात्मक एवं सतर्क हैं। उसमें कल्पना की उड़ान नहीं यथार्थ का पुट है।” अरस्तु ने अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण बचपन से विशेष घटनाओं और तथ्यों के निरीक्षण के आधार पर प्राप्त अनुभवों का पूरा लाभ उठाया और सामान्य सिद्धान्त कायम करने में सफल रहा। उसने अपने चिन्तन में जीव-विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति में जो अभिरुचि दिखाई, वह उसके पारिवारिक वातावरण की ही देन है। अत: उसको वैज्ञानिक अनुभव विरासत के रूप में प्राप्त हुआ था जिस पर उसने अपना लेखन कार्य आधारित किया। अरस्तु की अध्ययन पद्धति की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं :-
अरस्तु ने सर्वप्रथम राजनीतिशास्त्र का अध्ययन करते समय आगमनात्मक पद्धति (Inductive Method) का ही प्रयोग किया। यह पद्धति विशेष से सामान्य की ओर बढ़ती है। इसमें घटनाओं का सामान्यीकरण किया जाता है। अरस्तु ने भी घटनाओं का सामान्यीकरण किया है। बार्कर ने अरस्तु की आगमनात्मक पद्धति के बारे में लिखा है- “इस अध्ययन पद्धति का सार था निरीक्षण करना तथा सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करना और इसका उद्देश्य था, प्रत्येक विचार्य विषय का कोई सामान्य सिद्धान्त खोज निकालना।” अरस्तु ने इस पद्धति का प्रयोग तथ्यों के निरीक्षण, संग्रह, समायोजन, तुलनात्मक अध्ययन तथा उसके आधार पर निष्कर्ष निकालने में किया है। अत: अरस्तु दृश्यमान जगत् के वास्तविक पदार्थों को अपने विचार का आधार बताते हुए स्थूल सूक्ष्म की ओर बढ़ता है।

अरस्तु की पद्धति विश्लेषणात्मक (Analytical) भी है। इस पद्धति के अन्तर्गत किसी विषय या वस्तु के निर्माणकारी अंगों को अलग करके उनका अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए अरस्तु ने राज्य के स्वभाव का अध्ययन करने से पहले उसके निर्माणकारी तत्त्वों - परिवारों और गाँवों का अध्ययन किया है। जीवन का अध्ययन करने के लिए अरस्तु ने जीवन को तीन भागों - पौष्टिक (Nutrative), संवेदनशील (Sensitive), और बौद्धिक (Rational) में बाँटकर सामान्य सिद्धान्त की खोज की है। इसी प्रकार अरस्तु ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘पालिटिक्स’ के तीसरे अध्याय में नागरिकों को निर्माणकारी तत्त्व मानकर राज्य का अध्ययन किया है। अपनी इसी पद्धति के आधार पर अरस्तु ने विभिन्न शासन प्रणालियों में क्रान्ति के कारणों का अध्ययन किया है। इस प्रकार विश्लेषण अरस्तु की अध्ययन पद्धति की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।

अरस्तु ने अपने समय के विविध विषयों के बारे में जानने के लिए ऐतिहासिक घटनाओं का भी सहारा लिया है। उसने यूनानी समाज में प्रचलित 158 देशों की राजव्यवस्थाओं के ऐतिहासिक और तत्कालीन कार्य-कारण का अध्ययन किया है। अरस्तु के इन विचारों के कारण उसे ऐतिहासिक विधि (Historical Method) का जनक भी कहा जाता है।

अरस्तु ने तत्कालीन यूनानी समाज में प्रचलित 158 देशों की शासन पद्धतियों का तुलनात्मक अध्ययन है। इस कारण अरस्तु को तुलनात्मक पद्धति (Comparative Method) का जनक कहा जाता है। इस पद्धति के अन्तर्गत उसने प्रत्येक किस्म के संविधान के गुणों व दुर्बलताओं का अध्ययन करके तुलनात्मक निष्कर्ष निकाले हैं।

अत: निष्कर्ष तौर पर यह कहा जा सकता है कि अरस्तु ने अनुभवमूलक तथ्यों पर आधारित वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया है। उसकी पद्धति आगमनात्मक, ऐतिहासिक तथा विश्लेषणात्मक है। वह तथ्यों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचा है। उसने इतिहास और घटनाओं का व्यापक विश्लेषण किया है। उसने विभिन्न देशों के संविधानों का तुलनात्मक अध्ययन करके तुलनात्मक पद्धति को जन्म दिया हैं उसने राजनीतिशास्त्र को एक स्वतन्त्र और सम्पूर्ण विज्ञान का रूप प्रदान किया है। उसने राजनीतिशास्त्र को नीतिशास्त्र से अलग करके एक सर्वोच्च विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसलिए अरस्तु को यथार्थवादियों, वैज्ञानिकों, व्यवहारवादियों एवं उपयोगितावादियों का जनक माना जाता है।

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