स्व-अधिगम सामग्री क्या है स्व अधिगम सामग्री की विशेषताएं?

स्व–अधिगम सामग्री का उपयोग उच्च शिक्षा में अध्ययन के लिए किया जाता है । प्रत्येक विषय की पाठ्यचर्या में कुछ ऐसी विषयवस्तु होती है जिसे यदि उचित प्रकार से संगठित कर प्रस्तुत किया जाये तो विद्यार्थी उसे स्वयं पढ़कर सीख सकतें हैं ऐसी सामग्रीयों में सरल भाषा का उपयोग किया जाता है व चित्रों, उदाहरणों एवं अधिगम अभ्यास पर अधिक ध्यान दिया जाता है तथा इसके अंतर्गत शब्द सूची भी दी जाती है जिससे विद्यार्थी स्वयं अध्ययन कर सकें । स्व–अधिगम सामग्री के उपयोग से न केवल औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है, अपितु दूरस्थ शिक्षा के लिए भी यह उपयोगी है। स्व–अधिगम सामग्री का प्रमुख उद्देष्य यह है कि छात्र अपने आप से, अपने प्रयास से, अपने घर रहकर ही विषय वस्तु को सरलता एवं स्पष्टता से समझ सकें। छात्र अपनी अपनी व्यक्तिगत रुचि, मानसिक स्तर, क्षमता एवं योग्यता के अनुकूल स्व–अधिगम सामग्री के माध्यम से अध्ययन करते है और सरलता से पाठ्यवस्तु को समझ सकते हैं ।

स्व अधिगम सामग्री की विशेषताएं

स्व-अधिगम सामग्री के कुछ विशेष अभिलक्षण होते हैं। यद्यपि स्व-अधिगम सामग्री की ये विशेषताएं, उद्देश्यों, प्रयोजन और प्रस्तुतीकरण की शैली के आधार पर थोड़ा बहुत भिन्न हो सकती है, तथापि स्व-अधिगम सामग्री की कुछ स्थायी विशेषतायें हैं। आइये हम नीचे इन विशेषताओं पर विचार करें।

स्व-अधिगम सामग्री को यद्यपि यह नाम दिया जाता है, तथापि उनका ध्यान केन्द्र अध्यापन अथवा शिक्षण की अपेक्षा अधिगम पर अधिक होता है। ये अलग-अलग शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं पर आधारित है, न कि अध्यापक तथा मुक्त अधिगम संस्थाओं की रूचियों पर। ये विद्यार्थियों को अपने अधिगम पर यथासंभव अधिक से अर्थिाक नियंत्रण प्रदान करती है। 

इसीलिये आजकल स्व-अधिगम सामग्री को स्व-अधिगम सामग्री कहा जाता है। स्व-अधिगम सामग्री के कुछ निश्चित अभिलक्षण हैं। इनमें से महत्वपूर्ण है-

1. स्व-व्याख्यात्मक - स्व-अधिगम सामग्री इस अर्थ में स्व-व्याख्यात्मक होती है कि विद्यार्थी अधिगम सामग्री के द्वारा अध्ययन कर सकते हैं, और विषयवस्तु को बिना किसी प्रकार की अधिक बाह्य सहायता/समर्थन के आसानी से समझ सकते हैं। इसलिये, ये सामग्री विषयवस्तु, प्रस्तुतीकरण और भाषा की दृष्टि से किसी भी अस्पष्टता से मुक्त होनी चाहिये। विषयवस्तु तर्कसंगत रूप से व्यवस्थित होनी चाहिये, और प्रस्तुतीकरण सरल और प्रभावी होना चाहिये। प्रत्येक वस्तु इस प्रकार स्पष्ट होनी चाहिये कि अध्येता को सीखने और ज्ञान की वृद्धि करने में सहायक हो।

2. स्व-पूर्ण - स्व-अधिगम सामग्री स्वयं में पूर्ण अथवा स्वयं में पर्याप्त होनी चाहिये। विद्यार्थी के लिये पाठ्यक्रम उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये अपेक्षित समस्त आवश्यक विषयवस्तु स्व-अधिगम सामग्री में सम्मिलित करनी चाहिये। विद्यार्थी को अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये अतिरिक्त अध्ययन सामग्री की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये, क्योंकि अतिरिक्त सामग्री प्राप्त करने में समस्यायें आती हैं। साथ ही स्व-अधिगम सामग्री अत्यधिक विषयवस्तु अथवा अधिगम कार्य से अतिभारित नहीं होनी चाहिये कि अध्येता उससे डर ही जाय।

3. स्व-निर्देशित - एक प्रभावी अध्यापक के महत्वपूर्ण प्रकायोर्ंं में से एक विद्यार्थियों को आवश्यक ज्ञान, कौशल तथा अभिवृत्तियों को स्वयं अर्जन के लिये विद्यार्थियों को निर्देश दे। इसी प्रकार शिक्षार्थियों को स्व-अधिगम प्िरक्रया की प्रत्येक अवस्था पर आवश्यक मार्गदर्शन, संकेत और सुझाव प्रदान करके स्व-अधिगम शिक्षा एक प्रभावी अध्यापक का कार्य सम्पादित करती है। 

विषयवस्तु को तर्कसंगत अनुक्रम में प्रस्तुत करके, विद्यार्थियों के स्तर के अनुसार अधिगम संकल्पनाओं की व्याख्या करके उचित स्व-अधिगम कार्यकलाप प्रदान करके और विषयवस्तु को समझने में सरल बनाने के लिये चित्रोदाहरण प्रस्तुत करके अधिगम को दिशा दी जाती है।

4. स्व-अभिप्रेरक - अभिप्रेरण प्रभावी अधिगम की पूर्व आवश्यकता है। स्व-अधिगम सामग्री मेंं विद्यार्थियों में रूचि और अभिप्रेरणा उत्पन्न करने और बनाये रखने की क्षमता होनी चाहिये। विषयवस्तु को जिज्ञासात्मक होना चाहिये, समस्यायें उठानी चाहिये और ज्ञान का सम्बंध विद्यार्थियों की परिचित परिस्थितियों से स्थापित करना चाहिये ताकि विद्यार्थी अभिप्रेरित अनुभव करे और उनका ज्ञान दश्ढ़ हो जाये। इस प्रकार का अभिप्रेरण और प्रबलीकरण अधिगम की प्रत्येक अवस्था पर देना चाहिये।

5. स्व-अधिगम - स्व-अधिगम सामग्री कार्यक्रमबद्ध शिक्षण के सिद्धान्तों पर आधारित होती है। कार्यक्रम शिक्षण के अभिलक्षण जैसे कि उद्देश्यों का विनिर्देशन, विषयवस्तु को छोटे (परन्तु प्रबंधनीय) चरणों में बांटना, अधिगम अनुभवों का अनुक्रमण करना, प्रतिपुष्टि प्रदान करना आदि को स्व-अधिगम सामग्री में सम्मिलित किया जाता है। 

इस प्रकार स्व-अम्मिागम सामग्री की ये विशेषतायें विद्यार्थियों को स्वंतत्र रूप से सिखाती है। विद्यार्थी अपनी स्वयं की अधिगम कार्यनीतियों को बना लेते हैं, और अपने आप ही सीखते हैं।

6. स्व-मूल्यांकन - स्व-अधिगम सामग्री विद्यार्थियों को इष्टतम अधिगम को सुनिश्चित करने के लिये, उचित प्रतिपुष्टि प्रदान करते हैं। वे विद्यार्थियों को यह भी जानकारी देते हैं कि क्या वे ठीक दिशा में प्रगति कर रहे हैं अथवा नहीं। स्व-जॉच अभ्यास, मूल पाठ में प्रश्न, कार्यकलाप और अभ्यास के दूसरे प्रकार अध्येताओं को उनकी प्रगति के विषय में बहुअपेक्षित प्रतिपुष्टि देते हैं। यहां यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि प्रगति से सम्बंधित प्रतिपुष्टि विद्यार्थियों को एक अधिगम बिन्दु से दूसरे अधिगम बिन्दु तक सीखने और आगे बढ़ने के लिये प्रबलित और अभिप्रेरित करता है। दूसरे शब्दों में, परिणाम का ज्ञान अध्येताओं को आगे सीखने के लिये सकारात्मक प्रबलन प्रदान करता है। 

उपर्युक्त विशेषताओं के साथ स्व-अधिगम सामग्री के विकास के लिये इस बात की भी आवश्यकता है कि विणिण्ट ज्ञान, कौणलो और सक्षमताओं वाले लोगों को सम्मिलित किया जाये। इसका यह तात्पर्य है कि दूरस्थ शिक्षकों से यह अपेक्षा की जाती है कि उनमें प्रभावी स्व-अधिगम सामग्री के विकास के लिये कुछ निश्चित विशेषताएं हों।

7. पाठ्यक्रम लेखकों अपेक्षाए - 
दूरस्थ अध्येताओं के लिये अधिगम सामग्री का विकास करने के काम में लगे हुये अध्यापकों में विशिष्ट ज्ञान, कौशलों और सक्षमताओं की अपेक्षा की जाती है। दूरस्थ शिक्षा अध्येताओं के लिये स्व-अधिगम सामग्री तैयार करने वाले पाठ्यक्रम लेखकों में निम्नांकित मुख्य पूर्वापेक्षाये होनी चाहिये।

8. प्रणाली की सुविज्ञता - पाठ्यक्रम लेखकों को सम्बंधित दूर शिक्षा संस्था की शिक्षण प्रणाली से पूरी तरह परिचित होना चाहिये। उन्हें पद्धति के विद्यार्थियों की रूपरेखा और अनुसरण किये जा रहे माध्यम उपागम से भी परिचित होना चाहिये।

9. लक्ष्य वर्ग की सुविज्ञता - दूर शिक्षा पद्धति में विद्यार्थी विभिन्न पृष्ठभूमियों, शैक्षिक योग्यताओं, अनुभव, सामाजिक आर्थिक स्तरों और आयु आदि से आते हैं। वे दूर शिक्षा पाठ्यक्रम में विभिन्न भाषात्मक योग्यताओं, सीखने की सामथ्र्य, अध्ययन आदतों, पूर्व आवश्यक ज्ञान ग्राम-शहरों आदि से आकर भाग लेते हैं। अधिगम सामग्रियों के विकास में लगे पाठ्यक्रम लेखकों को दूर शिक्षा के माध्यम से शिक्षा लेने वाले विद्यार्थियों के विभिन्न वर्गों की आवश्यकताओं, अपेक्षाओं और सीखने की आदतों से परिचित होना चाहिये। 

अधिगम सामग्री विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर के अनुसार तैयार करनी चाहिये। अर्थपूर्ण, प्रभावी अधिगम सामग्री को विकसित करने के लिये पाठयक्रम लेखक को पाठ्य विवरण का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये। इसलिये यह दावा करने के लिये कि दूरस्थ शिक्षण सामग्री स्व-पूरित और स्व-अधिगम है तो पाठ्यक्रम लेखक को सबसे पहले अधिगम अनुभव/कार्यों की दृष्टि से पाठ्य विवरण का पूरी तरह विश्लेषण करना चाहिये। अपने परस्पर संबंधों पर आधारित, अधिगम कार्यों को उचित क्रम से व्यवस्थित करना चाहिये। 

पाठ्यक्रम विशेष में विद्यार्थियों को उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता देने की दृष्टि से लेखक केा उसकी विषयवस्तु की व्याप्ति का ज्ञान होना चाहिये।

10. अधिगम के सिद्धान्तों से परिचय - कक्षा-आधारित अध्येताओं के विपरीत, दूर शिक्षा अध्येता अपने घरों तथा कार्यस्थलों पर स्वतंत्र रूप से पढ़ते हैं। पाठ्यक्रम लेखक के लिये विविध अध्यापन कार्यनीतियों के प्रयोग की आवश्यकता हेाती है, ताकि विद्यार्थी अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अधिगम रणनीति का चयन कर सके। पाठ्यक्रम लेखकों में अधिगम और संचार के सिद्धान्तों का पर्याप्त ज्ञान ऐसी स्व-शिक्षण सामग्री की सर्जनात्मक अभिकल्पना में उनकी सहायता करता है जो अलग-अलग विद्यार्थियों के अनुकूल होते हैं।

स्व- अधिगम सामग्री का आधार अधिगम सिद्धान्तों और शिक्षण मापदण्डों की ठोस नींव पर होना चाहिये ताकि विद्यार्थियों में इष्टतम अधिगम सुनिश्चित हो सके। यहां इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि स्व-अधिगम सामग्री के लेखन/विकास के सिद्धान्त अध्यापन और अधिगम के सिद्धान्तों से उत्पन्न किये जाते हैं। इसलिये पाठ्यक्रम लेखकों को शिक्षण और अधिगम सिद्धान्तों की सम्यक जानकारी होनी चाहिये। 

इसके अतिरिक्त दूर अध्येयताओं के लिये स्व-अधिगम सामग्री विकसित करने के कार्य में लगे हुये व्यक्तियों में प्रभावी संचार के पूर्णज्ञान का होना भी एक पूर्वापेक्षा है। विषयवस्तु, व्याख्या, भाषा, प्रस्तुतीकरण आदि की स्पष्टता प्रभावी संचार और विद्यार्थियों द्वारा अर्थपूर्ण अधिगम का सुनिश्चित करने में बहुत सहायक होगी। यह कहने की जरूरत नहीं है कि दूर शिक्षा, या यों कहिये कि किसी प्रकार का अध्यापन परस्पर सहमत उद्देश्यों (प्रेषक और प्रापक द्वारा) सूचना, अनुभव, विचारों आदि के आदान-प्रदान की एक प्रक्रिया है। 

अनुभव और विचारों का बॉटना, सूचना और संदेशों के प्रेषक और प्राप्तकर्ता के मध्य प्रभावी संचार पर निर्भर करता है। विशेषकर संचार तब प्रभावी होता है, जब वह उस भाषा में होता है जिसको प्राप्तकर्ता पूरी तरह से समझता है जिससे प्राप्तकर्ता की आवश्यकता की पूर्ति होती है।

दूरस्थ शिक्षा हेतु स्व-अधिगम सामग्री विकास के आवश्यक तत्व 

शिक्षा एक सोद्देश्य प्रक्रिया है तथा पाठ्यक्रम इन उद्देश्यों की पूर्ति का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। दूरस्थ शिक्षा में भी उद्देश्यों की प्राप्ति का प्रमुख साधन/आधार पाठ्यक्रम ही होता है। दूरस्थ शिक्षा में पाठ्यक्रम का अर्थ अधिक व्यापक होता है तथा इसके अन्तर्गत शिक्षण अधिगम के साथ-साथ अध्ययन के अन्य सभी तत्वों को भी सम्मिलित किया जाता है। 

दूरस्थ शिक्षा में स्व-अधिगम सामग्री का प्रारूपण एक जटिल एवं लम्बी प्रक्रिया हे। अत: पाठ्यक्रम विकास ने परम्परागत शिक्षा के सभी प्रमुख बिन्दुओं को समाहित करने के साथ दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकतओं एवं लक्ष्यों को भी ध्यान में रखना होता है। 

इसी प्रकार दूस्थ शिक्षा के पाठ्यक्रम में अग्रलिखित तत्वों को सम्मिलित किया जाता है-

1. अधिगम के उद्देश्य का प्रस्तुतीकरण एवं व्याख्या - पाठ्यवस्तु में व्यापकता के कारण तीनों पक्षों को समाहित करने का प्रयास किया जाता है। इसमें अधिगम के उद्देश्यों का प्रस्तुतीकरण करते हुये व्याख्या करने का प्रयास किया जाता है।

2. अध्ययन सामग्री के माध्यम से संवाद -  परम्परागत शिक्षा में वास्तविक कक्षा शिक्षण के दौरान अध्यापक एवं अध्येता के मध्य सक्रिय सम्प्रेषण हो जाता है, जबकि दूरस्थ शिक्षा में संवादशीलता भी स्व-अधिगम सामग्री के माध्यम से ही स्थापित की जाती है। इसके लिये पाठ्य सामग्री में अन्त: क्रियात्मकता की प्रवृत्ति एवं लय से युक्त होती है। अथार्त् सामग्री प्रस्तुतीकरण में वार्तालाप शैली का पुट होना चाहिये। पाठ्यलेखक को प्रश्नों एवं क्रियाओं को समाविष्ट करना होता है। इसके अतिरिक्त गृहकार्य पर शिक्षण टिप्पणियां श्रव्य-दृश्य माध्यमों से शिक्षक की आवाज एवं प्रदर्शन भी अध्यापक-अध्येता की अन्त: क्रिया को सम्भव बनाते हैं।

3. व्यक्तिगत जुड़ाव को महत्व - सम्पूर्ण स्व-अधिगम सामग्री तुम या आपके द्वारा अध्येता को सम्बोधित किये जाते हैं, इससे अध्येता अध्यापक से जुड़ाव का अनुभव करता है, और इसे वह अपना महत्व भी समझाता है। इससे अध्येता का व्यक्तिगत विकास होता है। प्रत्यक्ष अन्त: क्रिया हेतु प्रावधान दूरस्थ शिक्षा में भी एक निश्चित अवधि अथवा सुविधाजनक समय पर आमने-सामने की अन्त:क्रिया हेतु अध्यापक एवं अध्येता को अवसर दिया जाता है। विज्ञान एवं अन्य प्रयोगात्मक विषय इसके अतिरिक्त व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में भी सम्पर्क कार्यक्रमों के आयोजन में प्रत्यक्ष सम्पर्क पर अत्यधिक बल दिया जाता है।

4. अध्ययन कौशलों के विकास पर केन्द्र बिन्दु - दूरस्थ शिक्षा में पाठ्यक्रम पूर्णतया स्व-अध्ययन पर आधारित होता है, अत: अध्येताओं को इसके लिये तैयार करने का कार्य भी अनुदेशनात्मक सामग्री के माध्यम से करना पड़ता है, और स्व-अध्ययन के विविध कौशलों की उत्पत्ति एवं विकास हेतु आवश्यक संकेत एवं निर्देशन दिये जाने की आवश्यकता होती है, और पाठ्यक्रम प्रारूपण में इसका ध्यान रखा जाता है।

5. अध्येता की प्रकृति एवं आवश्यकता - दूरस्थ शिक्षा अध्येता उन्मुक्त होती है अत: पाठ्यक्रम निर्धारण में भी अध्येता की प्रकृति एवं आवश्यकता को केन्द्र बिन्दु बनाकर किया जाता है, उसकी आयु योग्यता, अनुभव एवं आकांक्षा स्तर में पर्याप्त भिन्नता हो सकती है। इसके अतिरिक्त दूर अध्येता विभिन्न क्षेत्रों व विविध शिक्षण संस्थाओं के पूर्व विद्यार्थी हेाते हैं, और उनके अधिगम की आदतों के अतिरिक्त प्रकृति एवं उपलब्धि में भी प्र्याप्त अन्तर होता है, इस हेतु दूरस्थ शिक्षा व्यवस्था में लगातार शोध निष्कार्णों का सहारा लिया जाता है।

6. राष्ट्रीय एवं सामाजिक लक्ष्यों का समाहित किया जाना - सभी स्तर की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य, व्यक्तिगत एवं सामाजिक विकास होता है और शिक्षा के द्वारा समाज व्यक्ति व राष्ट्र की उन्नति की संकल्पना को पूरा करना है। ठीक इसी प्रकार से मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा में भी पाठ्यक्रम विकास में इन तथ्यों को समाहित किया जाता है, और इस रूप में तैयार किया जाता है कि वह समाजोपयोगी एवं राष्ट्रोपयोगी मानव संसाधन तैयार करें।

स्व-अधिगम सामग्री की आवश्यकता 

दूरस्थ शिक्षा व्यवस्था का मुख्य स्वरूप दूर अध्येता का दूर शिक्षा संस्थान से दूरी है। इससे अध्येता पाठ्यक्रम के स्वरूप से लेकर शिक्षण तक निराश्रित रहता है। उसे न तो अध्यापक का निर्देशन प्राप्त होता है न ही सहपाठियों का मार्गदर्शन। इसीलिये स्व-अधिगम सामग्री इस कमी को ध्यान में रखकर ऐसे संकल्पित की जाती है, कि वह स्वयं में पूर्ण पर्याप्त, शैक्षणिक, स्पष्ट, निर्देशित, आंकलन करने योग्य तथा सहपाठी की भांति होती है। दूर अध्येता को सहारा देने के साथ अधिगम व अध्ययन हेतु मार्गदर्शन देती है। इसके साथ ही दूर अध्येता के अधिगम को सुलभ बना देती है, और बाह्य सहायता को कम कर देती है।

स्व-अधिगम सामग्री दूर अध्येता को पाठ्यक्रम विशेष में क्या और कितना पढ़ना है, और कहां तक जानना आवश्यक है यह स्पष्ट करती है। यह दूर अध्येताओं के समक्ष अधिगम की परिस्थितयां उत्पन्न कर देती है, जिसमें विद्यार्थी सीखने के लिये विवश हो जाता है। इनका स्वरूप इस प्रकार से निर्मित किया जाता है कि वह ऐसा प्रतीत होता है कि अध्यापक को अप्रत्यक्ष रूप से उपस्थित कर देता है, और अध्येता को ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि अप्रत्यक्ष रूप से कोई उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा हो, उन्हें निर्देश दे रहा है। 

स्व-अधिगम सामग्री में अध्येता को अपनी गति से अधिगम की सुविधा के साथ-साथ अपने अधिगम के आंकलन की भी सुविधा दी जाती है, इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण शिक्षण सामग्री अध्यापक अध्येता की अप्रत्यक्ष वार्तालाप को प्रकट करती है। स्व-अधिगम सामग्री पूर्णतया अध्येता उन्मुख होती है, इसीलिये यह मनोविज्ञान के सिद्धान्तों पर अभिकल्पित किया जाता है।

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  1. DIET CHITARPUR, RAMGARH E-CONTENT / 2023-24 तीसरा सप्ताह तीसरे दिन बुधवार 12/7/2023कक्षा 8 के निर्धारित पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक के विषय वस्तुओं पर आधारित स्व अधिगम सामग्री

    कक्षा _8
    विषय - विज्ञान

    पाठ-1 कोशिका
    भाग-2

    दक्षता- छात्र सजीवों की मूलभूत संरचनाओं के बारे में जानेंगे

    अध्ययन के लिए सामग्री लिंक__https://youtube.com/watch?v=0TQ4zMu5_yE&feature=share8

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