नियोजन क्या है नियोजन की विशेषताओं का वर्णन

नियोजन मूलतः लक्ष्य एवं उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किए गये प्रयास है। भविष्य की योजनाएं बनाना, भविष्य के लिए सोचना, तैयार करना, कार्यक्रम बनाना, स्रोतों को आंकना और मूल्यांकन करके पूरा एक प्रलेख तैयार करना है। जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को कब करना है ? कैसे करना है ? कहां करना हैं ? और किस रूप में करना है आदि प्रश्नों को विचार करता है तो एक विभिन्न विकल्पों में से किसी एक निर्णय पर पहुंचता है उसे ही नियोजन कहते है।

नियोजन का महत्व

(1) नियोजन, निर्देशन की व्यवस्था करता है:- कार्य कैसे किया जाना है इसका पहले से ही मार्ग दर्शन करा कर नियोजन निर्देशन की व्यवस्था करता है। यह पूर्व निर्धारित क्रियाविधि से संबंधित होता है।

(2) नियोजन अनिश्चितता के जोखिम को कम करता है:- नियोजन एक ऐसी क्रिया हे जो प्रबन्धको को भविष्य में झांकने का अवसर प्रदान करती है। ताकि गैर-आशान्वित घटनाओं के प्रभाव को घटाया जा सकें।

(3) नियोजन अपव्ययी क्रियाओं को कम करता है:- नियोजन विभिन्न विभागों एवं व्यक्तियों के प्रयासों में तालमेल स्थापित करता है जिससे अनुपयोगी गतिविधियाँ कम होती है।

(4) नियोजन नव प्रवर्तन विचारों को प्रोत्साहित करता है:-नियोजन प्रबन्धकों का प्राथमिक कार्य है इसके द्वारा नये विचार योजना का रूप लेते हैं। इस प्रकार नियोजन प्रबन्धकों को नवीकीकरण तथा सृजनशील बनाते है।

(5) नियोजन निर्णय लेने को सरल बनाता है:- प्रबन्धक विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन करके उनमें से सर्वोत्तम का चुनाव करता है। इसलिए निर्णयों को शीघ्र लिया जा सकता है।

(6) नियोजन नियन्त्रण के मानकों का निर्धारण करता है:- नियोजन वे मानक उपलब्ध कराता है जिसके विरुद्ध वास्तविक निष्पादन मापे जाते हैं  तथा मूल्यांकन किए जाते हैं। नियोजन के अभाव में नियन्त्रण अंधा है अत: नियोजन नियन्त्रण का आधार प्रस्तुत करता है।

नियोजन की विशेषताएं

1. निश्चित लक्ष्य का निर्धारण-नियोजन के लिए कुछ निश्चित लक्ष्यों का निर्धारण होना आवश्यक है इसी के आधार पर ही योजनाएं तैयार की जाती है और इससे लक्ष्यों की प्राप्ति में सुगमता होती है।

2. सर्वोत्तम विकल्प का चयन-योजना बनाते समय विभिन्न विकल्प को तैयार कर उनकी तुलना की जाती हैं, तत्पश्चात् उनमें से श्रेष्ठ का चुनाव कर कार्य हेतु योजनायें एवं नीतियॉं बनाई जाती हैं। 

3. प्रबध की प्रारंभिक क्रिया- प्रबंध के लिए विभिन्न कार्यों में से प्रथम प्रक्रिया नियोजन का क्रिया है इसके पश्चात ही प्रबंध के कार्य प्रारंभ हो सकती है।

4. उद्देश्य का आधार-नियोजन संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया जाता है उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जिस-जिस कार्यो को करना होता है, उसी के संदर्भ में नियोजन किया जाता है नियोजन निर्माण का उद्देश्य संस्था के उद्देश्यों की कम से कम लागत एवं अधिकतम सफलता की प्राप्ति के लिए किया जाता है

5. सर्वव्यापकता-सम्पूर्ण प्रबंन्ध में नियेाजन व्याप्त है, प्रबन्ध के प्रत्येक क्षेत्र में नियेाजन का अस्तित्व है, प्रत्येक प्रबन्धक को योजनाये बनानी पड़ती है। इसी प्रकार फोरमेन भी अपने स्तर पर योजनायें बनाता है अत: यह सर्वव्यापी है।

6. लोचता-योजना में लोच का गुण अवश्य रहता है, अर्थात आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन करना पड़ता है, योजनायें जितनी लचीली होंगी, योजना उतनी सफल होती है अत: योजना में लोचता होनी चाहिए।

8. बौद्धिक प्रक्रिया-नियोजन निश्चित रूप से एक बौद्धिक प्रक्रिया है चुंकि विभिन्न विकल्पों में किसी श्रेष्ठ विकल्प का चयन करना होता है जो कि तर्को सिद्धांतो एवं संस्था कि हितो को ध्यान में रखकर निर्णय लिया जाता है। नियेाजन के संदर्भ को कून्ट्ज एवं ओ डोनेल ने भी स्वीकार किया है और इसे एक बौद्धिक प्रक्रिया माना है।

9. निरंतर चलने वाली प्रक्रिया-यह एक निरंतर रूप से चलने वाली प्रक्रिया है जो कि अनेक कार्यो के लिए व्यापार के विकास के साथ-साथ हर कार्यो हर स्तरों निर्माण विकास एवं विस्तार के लिए इसकी आवश्कता होती है अत: यह एक न रूकने वाली सतत् प्रक्रिया है।

नियोजन की सीमाएं

1. नियोजन दृढ़ता उत्पन्न करता है:- नियोजन व्यक्तियों की पहलशीलता एवं सृजनशीलता को हतोत्साहित कर सकता है। एक बार योजना बन जाने के बाद प्रबन्धक वातावरण में हुए परिवर्तनों को ध्यान में रखे बिना कठोरतापूर्वक इसका पालन करते है। अत: वे नए विचार एवं सुझाव लेना और देना बंद कर देते हैं। इसलिए विस्तृत नियोजन संगठन में कठोर रूपरेखा का सृजन कर सकता है।

2. नियोजन परिवर्तनशील वातावरण में प्रभावी नहीं रहता:- नियोजन भविष्य के बारे में किए गए पूर्वानुमानों पर आधारित होता है, क्योंकि भविष्य अनिश्चित एवं परिवर्तनशील होता है, इसलिए पूर्वानुमान प्राय: पूर्ण रूप से सही नहीं हो पाते।

3. नियोजन रचनात्मक को कम करता है:- नियोजन उच्च प्रबन्ध द्वारा बनार्इ जाती है जो अन्य स्तरों की रचनात्मकता को कम करता है।

4. नियोजन में भारी लागत आती है:- धन एवं समय के रूप में नियोजन में ज्यादा लागत आती है।
नियोजन समय नष्ट करने वाली प्रक्रिया है:- कभी-कभी योजनाएँ तैयार करने में इतना समय लगता है कि उन्हें लागू करने के लिए समय नहीं बचता है।

5. नियोजन सफलता का आश्वासन नहीं है:- उपक्रम की सफलता उचित योजना के उचित क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। प्रबन्धकों की पूर्व में आजमायी गयी योजना पर विश्वास करने की प्रवृत्ति होती हैं, परन्तु यह सदैव सत्य नहीं है पहले योजना दोबारा भी सफल सिद्ध होगी।

नियोजन की प्रक्रिया

1. लक्ष्य निर्धारण-हम सब जानते हैं कि हर संगठन का कोई न कोई लक्ष्य होता है, जिसे वह प्राप्त करने की कोशिश करता है योजना की शुरूआत दरअसल, अधिक ठोस, स्पष्ट रूप में इन्हीं लक्ष्यों को परिभाषित करने से होती है इससे प्रबंधन को यह समझने में आसानी होती है कि उन्है। किन लक्ष्यों को पा्रप्त करना है। और फिर वे उन्हीं के अनुरूप गतिविधियों को निर्धारण करते हैं इस प्रकार से संगठन के लक्ष्यों का निर्धारण एक अच्छी और सार्थक योजना की पहली आवश्यकता होती है।

2. पूर्वानुमान लगाना-लक्ष्यों का निर्धारण हो जाने के बाद पूर्वानुमान लगाया जाता है, इस हेतु विभिन्न ऑंकड़ों, प्रवृतियों व परम्पराओं को ध्यान में रखा जाता है व्यवसाय का पूर्वानुमान मौसम, बाजार व अन्तर्राष्ट्रीय घटनाक्रम पर भी निर्भर है, अत: पूर्वानुमान के समय इन सभी बातों पर ध्यान दिया जाता है पूर्वानुमान के अन्तर्गत पारिश्रमिक की दर, क्रय की दर व मात्रा, विक्रय नीति व विक्रय मात्रा, पूंजी की स्थिति, लाभांश वितरण, लाभ आदि के संदर्भ मे पूर्वानुमान लगाया जाता है, पूर्वानुमान भावी परिस्थितियों के बारे में किये जाते हैं, पूर्वानुमान लगाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पूर्वानुमान सत्यता से अधिक दूर न जाये पूर्वानुमान लगाते समय विभिन्न कर नीति व सरकारी नीतियों का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।

3. वैकल्पिक कार्यविधियों को निर्धारण-किसी कार्य को सम्पन्न करने के अनेक तरीके होते है। अत: विभिन्न विकल्पों को तय कर नियोजन में शामिल करने हेतु विश्लेषण एवं चिन्तन करना आवश्यक होता है।

4. वैकल्पिक कार्यविधियों का मूल्यांकन-विभिन्न वैकल्पिक कार्यविधियों का चयन पश्चात उनके गुण दोषों एवं लागत के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है।

5. श्रेष्ठ विकल्प का चयन-विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन एवं चिन्तन अत्यन्त सावधानी पूर्वक करके श्रेष्ठ विकल्प का चयन किया जाता है इसे निर्णायक बिन्दु का नियोजन का निर्माण कहते हं।ै

6. उपयोजनाओं का निर्माण- मूल योजना के कार्य को सरल बनाने के लिए सम्बन्धित उपयोजनाओं का निर्माण किया जाता हैं जो लचीला होता है ताकि प्रतियोगियों के गतिविधियों का मुकाबला करने हेतु मोर्चाबन्दी किया जा सके।
7. क्रियाओं का क्रम निश्चित करना-योजना एवं उपयोजनाओं का निर्माण हेा जाने के पश्चात क्रियाओं का क्रम निश्चित किया जाता है ताकि कौन सा कार्य कब व कहॉं करना है स्पष्ट हो सके।

8. क्रियान्वयन एवं अनुसरण-क्रियाओं का क्रम निर्धारण पश्चात नियोजन को लागू या क्रियान्वित की जाती है निर्देशों एवं नीतियों का अनुसरण किया जाता है वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति तक अनुसरण कार्य लगातार किया जाता है।

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