निबंध का अर्थ, परिभाषा, उद्भव और विकास

साहित्य की प्रमुख दो विधाएँ ‘गद्य-पद्य’ हैं। गद्य आधुनिक काल की प्रमुख देन है। गद्य की अनेक विधाओं में निबंध विशेष विधा है। मुद्रण कला के विकास ने पत्र-पत्रिकाओं के प्रचार-प्रसार को अत्यधिक बढ़ा दिया जिसके परिणामस्वरूप निबंध की लोकप्रियता एवं वैविध्य में वृद्धि होती गई। उन्नीसवीं सदी के छठे दशक में भारतेंदु युग में निबंध का श्रीगणेश हुआ। भारतेंदु एवं उनके सहयोगी साहित्यकारों ने विचाराभिव्यक्ति हेतु गद्य का माध्यम अपनाया। आधुनिक काल से पूर्व अभिव्यक्ति का माध्यम गद्य न होकर पद्य था। 

पद्य में अवधी एवं ब्रजभाषा का उपयोग होता था। गद्य में बहुत समय तक ब्रजभाषा का प्रयोग होता था। खड़ी बोली अभिव्यक्ति का माध्यम उन्नीसवीं सदी में बनी जिसका श्रेय भारतेंदु युग के साहित्यकारों विशेषकर भारतेंदु को है जिन्होंने साहित्य में खड़ी बोली भाषा के प्रयोग पर विशेष बल दिया। खड़ी बोली का परिमार्जन एवं परिष्कार द्विवेदी युग में हुआ। गद्य के विकास में निबंध का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। 

महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ का प्रकाशन एवं संपादन करके निबंध के विकास में उल्लेखनीय योगदान किया है। निबंध का चरम विकास कर पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठापित करने का श्रेय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को है। शुक्ल का व्यक्तित्व हिंदी निबंधों के विकास में केन्द्र बिंदु है जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें मील का पत्थर मानते हुए तत्कालीन काल का नामकरण ‘शुक्ल युग’ किया गया। शुक्ल से पूर्व ही निबंध का उद्भव हो चुका था। शुक्ल के बाद हिंदी निबंधों का चहुमुखी विकास हुआ।

निबंध का अर्थ एवं परिभाषा 

निबंध शब्द सं. नि + बंध् (बांधना) घ´् से व्युत्पन्न है। ‘नि’ उपसर्ग एवं ‘घ´’ प्रत्यय है। बंध धातु बांधने के अर्थ में है। निबंध शब्द का अर्थ किसी चीज को किसी के साथ जोड़ने, बाँधने या लगाने की क्रिया या भाव है। अच्छी तरह गठा या बंधा हुआ पदार्थ या भाव। ग्रंथ, लेख आदि लिखने का भाव या क्रिया। निबंध आज कल साहित्यिक क्षेत्र में वह विचार पूर्ण विवरणात्मक एवं विस्तृत लेख, जिसमें किसी विषय के सभी अंगों का मौलिक एवं स्वतंत्र रूप से विवेचन किया गया हो। निबंध का अंग्रेजी पर्याय ‘Essay’ है। 

निबंध का पूर्व रूप संदर्भ, रचना, प्रस्ताव, लेख है। तथा पर एवं विकसित रूप प्रबंध, लघु प्रबंध एवं शोध प्रबंध है। जिस प्रकार वाक्य का विस्तृत रूप प्रोक्ति है उसी प्रकार निबंध का विस्तृत एवं व्यापक रूप प्रबंध है जिसमें व्यवस्थित क्रमानुसार ठीक से परस्पर एक दूसरे से बंधे हुए अनेक निबंध होते हैं।

विचारों के बिखराव को रोकना या व्यवस्थित रूप से बांधकर विशिष्ट रूप देना निबंध कहलाता है। निबंध में उस व्यवस्था पर विशेष बल दिया गया है जहाँ विचार व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत हो जाता है।

जानसन ने निबंध में नियमबद्धता को अस्वीकारा है उनके अनुसार मुक्त मन की मौज, अनियमित और अपरिपक्व रचना निबंध है। गुलाब राय के अनुसार निबंध गद्य की वह रचना है जिसमें एक सीमित आकार के अंदर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन विशेष वैयक्तिकता, स्वच्छंदता, सौष्ठव, सजीवता, आवश्यक संगीत एवं संबद्धता के साथ किया गया हो। भारतवर्ष में प्राचीन साहित्यकार ऐसी व्याख्या को निबंध कहते थे जिसमें सब प्रकार के मतों का उल्लेख और गुणदोष आदि की आलोचना या विवेचन होता था।

आजकल पाश्चात्य साहित्य शास्त्रानुसार उसकी व्याख्या और स्वरूप का परिमार्जन हो जाने से परिभाषा भी बदल गई है। गद्यात्मक रचना निबंध है जिसमें निबंधकार अपने भावों एवं विचारों को आत्मपरकरूप से व्यक्त करने हेतु सजीव, लालित्यपूर्ण तथा मर्यादित-साहित्यिक भाषा शैली का प्रयोग करता है।

आधुनिक निबंध के जन्मदाता मौनतेय हैं। उनका कथन है, निबंध, विचारों, उद्धरणों और कथाओं का मिश्रण है।” जॉनसन के मतानुसार, “निबंध मन का आकस्मिक और उच्छृंखल आवेग - असंबद्ध और चिंतनहीन बुद्धि - विलास मात्रा है।”

केवल नामक पाश्चात्य विद्वान ने हास्य-विनोदमय निबंध की व्याख्या की है।” निबंध लेखन कला का बहुत प्रिय साधन है जिस लेखन में न प्रतिभा है और न ज्ञान वृद्धि की जिज्ञासा, वही निबंध लेखन में प्रवृत्त होता है तथा हल्की रचनाओं में आनंद लेने वाला पाठक ही उसे पढ़ता है।”

निबंध विचार-प्रकाशन का गंभीर साधन है। व्यापक अर्थ में, राजनीतिक, सामाजिक, अर्थशास्त्राीय एवं वैज्ञानिक विषयों के प्रतिपादक लेख को भी निबंध कहते हैं। निबंध की विशेषताओं में विषय नहीं बल्कि आत्मा, आकार, लघुता, मन के स्वाधीन विचरण एवं चिंतन पर आधारित होना, शैली-संक्षिप्त, रोचक एवं व्यंग्य प्रधान होना आदि है।

निबंध की विषय वस्तु के आधार पर निबंध के वर्णनात्मक, विवरणात्मक, विचारात्मक तथा भावात्मक आदि अनेक भेद हैं।

निबंध का उद्भव और विकास

हिंदी साहित्य के आधुनिक काल में हिंदी निबंध का आविर्भाव हुआ। इससे पूर्व गद्य का विकास नहीं हुआ था। निबंधों के प्रचार-प्रसार के साधनों - मुद्रण-यंत्र, पत्र-पत्रिकाओं का प्रचलन आधुनिक युग में हुआ है। भारतेंदु युगीन ‘हरिश्चन्द्र चंद्रिका, ब्राह्मण, सार सुधा निधि, प्रदीप आदि के प्रकाशन ने निबंध के विकास में अत्यधिक योगदान किया। प्रो. जय नाथ नलिन ने भारतेन्दु युग से आज तक के निबंध साहित्य के विकास काल को (1) भारतेंदु युग (2) द्विवेदी युग (3) प्रसाद युग तथा (4) शुक्लोत्तर युग चार युगों में बांटा है।

प्रसाद ने निबंध अवश्य लिखे हैं किंतु निबंध विधा में उनका इतना महत्व नहीं है कि उनके नाम पर युग का नामकरण किया जाए। ‘नलिन’ ने निबंध का चरमोत्कर्ष करनेवाले तथा निबंध की पराकाष्ठा तक उसे पहुंचाने वाले शुक्ल की उपेक्षा की है। शुक्ल युग, विभाग या युग न बनाकर शुक्लोत्तर युग का नामकरण किया है जो वैज्ञानिक एवं उचित प्रतीत नहीं होता है। 

निबंध काल को (1) भारतुंदु युग (2) द्विवेदी युग (3) प्रसाद युग (4) शुक्ल युग तथा (5) शुक्लोत्तर युग नामकरण करके निबंध के विकास का विवेचन औचित्य पूर्ण होगा।

भारतेन्दु युग 

भारतेंदु युग (संवत् 1930 से 1960 वि.) के प्रमुख निबंधकारों में भारतेंदु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमधन’, प्रताप नारायण मिश्र, बालमुकुंद गुप्त तथा राधाचरण गोस्वामी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

द्विवेदी युग

द्विवेदी युगीन लेखकों में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, मिश्र बंधु, डॉ. श्याम सुंदरदास, डॉ. पद्म सिंह शर्मा, अध्यापक पूर्ण सिंह, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, बनारसी दास चतुर्वेदी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। सन् 1903 ई. से द्विवेदी युग का प्रारंभ हो गया।

शुक्ल युग

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने विषय, भाषा और शैली सभी दृष्टियों से हिंदी निबंधों को चरमोत्कर्ष पर पहुँचा कर उन्हें उनकी पराकाष्ठा प्रदान की। नि:सन्देह आचार्य राम चन्द्र शुक्ल को हिंदी का सर्वश्रेष्ठ निबंधकार कहा जा सकता है। द्विवेदी युग के बाद निबंधों का विकास इन्हीं के व्यक्तित्व से पहचाना जाता है। इसलिए इन्हीं के नाम पर इस युग का नामकरण किया गया है।

हिंदी निबंध के विकास की गति में तीसरे मोड़ का श्रेय रामचन्द्र शुक्ल के निबंधों के संग्रह चिंतामणि को है। इसने पाठकों के समक्ष नवीन विचार, नव अनुभूति एवं नई शैली उपस्थित की। इस युग के निबंधकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, गुलाब राय, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रा नन्दन पंत, पं. सूर्य कांत त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा, आचार्य नंन्द दुलारे वाजपेयी, शांतिप्रिय द्विवेदी प्रेमचन्द, राहुल सांकृत्यायन, रामनाथ सुमन तथा माखन लाल चतुर्वेदी, पदुम लाल पुन्नालाल बख्शी, वियोगी हरि, रायकृष्ण दास, वासुदेव शरण अग्रवाल, डॉ. रघुवीर सिंह आदि उल्लेखनीय हैं।

शुक्लोत्तर युग

शुक्ल परवर्ती निबंधकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र, आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी, जैनेंद्र, डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल, डॉ. सत्येंद्र, शांति प्रिय द्विवेदी, डॉ. विनय मोहन शर्मा, डॉ. रामरतन भटनागर, डॉ. राम विलास शर्मा, डॉ. विश्वंभर ‘मानव’, प्रभाकर माचवे, डॉ. पद्म सिंह शर्मा ‘कमलेश’, इलाचन्द्र जोशी, डॉ. भगीरथ मिश्र, चन्द्रवली पांडेय, डॉ. भगवत शरण उपाध्याय, राम वृक्ष बेनीपुरी, कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर, रामधारी सिंह दिनकर, शिवदान सिंह चौहान, प्रकाश चन्द्र गुप्त तथा देवेन्द्र सत्यार्थी आदि प्रमुख हैं।

ललित निबंध

ललित निबंधों में लालित्य पर अधिक बल दिया जाता है। यह निबंध की नई विधा नहीं है। लालित्य निबंध की विशिष्ट विशेषता है। वर्तमान में इसे प्रवृत्ति के आधार अलग विधा मान लिया गया है। निबंधकार अपने भावों, विचारों को सरस, अनुभूतिजन्य, आत्मीय एवं रोचकरूप में प्रस्तुतीकरण करता है। ललित निंबंधों को गंभीर विश्लेषण, ऊबाऊ वर्णन, जटिलता से बचाया जाता है।

ललित निबंधकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का प्रमुख स्थान है। उनके निबंधों में मानवतावादी जीवन दर्शन एवं संवेदनशीलता दोनों दृष्टिगोचर होते हैं। निबंधों में पांडित्य के साथ नवीन चिंतन-दर्शन भी दिखलाई पड़ता है। विचार और वितर्क “अशोक के फूल” तथा कल्पलता आदि उनके प्रमुख निबंध संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त ललित निबंधकारों में विद्यानिवास मिश्र, कुबेर नाथ राय तथा विवेकी राय आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

विद्यानिवास मिश्र संस्कृत भाषा एवं साहित्य के उद्भट विद्वान हैं। लोक साहित्य, साहित्य और लोक संस्कृति में उनकी गहरी पैठ है। शैली भावपूर्ण एवं काव्यमय है। प्रमुख निबंध संग्रह मेरे राम का मुकुट भीग रहा है, तुम चन्दन हम पानी, संचारिणी, लागौ रंग हरी तथा तमाल के झरोखे से आदि हैं।

व्यंग्य निबंध

हिंदी साहित्य में भारतेंदु युग में ही व्यंग्य का प्रारम्भ हो चुका था किन्तु स्वातंत्रयोत्तर युग में व्यंग्य निबंध के नए युग का सूत्रपात हुआ। इसका श्रेय हरिशंकर परसाई को है। उन्होंने व्यंग्य को एक स्वतन्त्र विधा बनाने का यत्न किया। वास्तव में व्यंग्य स्वतन्त्र विधा नहीं है।

व्यंग्य निबंधों में निबंधकार समाज की समस्या विशेष पर निबंध लिखता है। व्यंग्य से पाठक में नवीन दृष्टि और सामाजिक जागरुकता पैदा करता है।

हिंदी व्यंग्य लेखकों में हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्र नाथ त्यागी, गोपाल प्रसाद व्यास, बरसाने लाल चतुर्वेदी, प्रभाकर माचवे, बेढब बनारसी, तथा हरिश्चन्द्र वर्मा आदि प्रमुख हैं।

हिंदी निबंध साहित्य ने थोड़े से समय में ही पर्याप्त उन्नति कर ली है। भारतेन्दु युग से आज तक निबंध साहित्य प्रौढ़तर होता जा रहा है। कुछ निबंधकार पाश्चात्य निबंधकारों से प्रभावित होकर हिंदी साहित्य में भाषा एवं सौंदर्य की विहीनता का प्रतिपादन करते हैं। निबंध में अनुभूति मुख्य तत्व है। वर्तमानकाल में निबंध में अनुभूति शून्यता आती जा रही है। निबंधकार साहित्यिक समस्याओं तक अपने को संकुचित करता जा रहा है। अन्य परिवेशों को अपने निबंध का विषय बनाने में अपने को असफल पाता जा रहा है।

प्रफुल्लता, ताजगी, रोचकात तथा व्यंग्यात्मकता से वर्तमान निबंध दूर होता जा रहा है। ये प्रवृत्तियां हिंदी निबंध के ह्रास का द्योतन करती है। हिन्दी निबंध लेखकों का इस ओर विशेष ध्यान देना वर्तमान अनिवार्यता है।

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