व्यक्तियों को बुद्धि के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बांटा जाता है। कुछ व्यक्ति बुद्धिमान कहलाते हैं, कुछ सामान्य बुद्धि के, कुछ मन्द बुद्धि के तो कुछ जड़ बुद्धि के कहलाते हैं। परन्तु बुद्धि के स्वरूप को समझना बड़ा कठिन है। बुद्धि के स्वरूप पर प्राचीन काल से ही विभिन्न मत चले आ रहे हैं तथा आज भी मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाविदों के लिए भी बुद्धि वाद-विवाद का विषय बना हुआ है।
19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से बुद्धि के स्वरूप को समझने हेतु मनोवैज्ञानिकों ने प्रयास प्रारम्भ किए परन्तु वे भी इसमें सर्वसम्मत परिभाषा न दे सके। वर्तमान में भी बुद्धि के स्वरूप के सम्बंध में मनोवैज्ञानिकों के विचारों में असमानता है।
बुद्धि का अर्थ
सामान्य अर्थ में तेजी से सीखने और समझने, स्मरण और तार्किक चिन्तन आदि गुणों को बुद्धि के रूप में प्रयोग में लाते है। मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गयी बुद्धि की परिभाषाएँ सामान्य अर्थ से अलग है। मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गयी परिभाषाओं को तीन भागो में बांटा जा सकता है।- बुद्धि को वातावरण के साथ समायोजन करने की क्षमता के आधार पर परिभाषित किया गया है।
- जिस व्यक्ति में सीखने की क्षमता जितनी अधिक होती है उस व्यक्ति में बुद्धि उतनी ही अधिक होगी।
- जिस व्यक्ति में अमूर्त चिन्तन की योग्यता जितनी अधिक होगी वह व्यक्ति उतना ही अधिक बुद्धिमान होगा।
बुद्धि की परिभाषा
इन मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की परिभाषाएं इस प्रकार प्रस्तुत की है-
1. टर्मन के अनुसार “अमूर्त वस्तुओं के सम्बंध में विचार करने की योग्यता ही बुद्धि है।” उनके अनुसार बुद्धि समस्या को हल करने की एक सामान्य योग्यता है।
2. एबिंगास के अनुसार ‘बुद्धि विभिन्न भागों को मिलाने की शक्ति है।
3. स्टाऊट ने बुद्धि को अवधान की शक्ति के रूप में माना है।
4. बर्ट के मतानुसार ‘बुद्धि जन्मजात व्यापक मानसिक क्षमता है।’
5. गाल्टन के अनुसार ‘बुद्धि विभेद एवं चयन करने की शक्ति है।’
6. स्टर्न के मतानुसार ‘नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता ही बुद्धि है।’
7. बिने के अनुसार ‘बुद्धि तर्क, निर्णय एवं आत्म आलोचना की योग्यता एवं क्षमता है।’
8. थार्नडाइक के अनुसार “उत्तम क्रिया करने तथा नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता को बुद्धि कहते हैं।”
9. थॉमसन के अनुसार- “बुद्धि वंश परम्परागत प्राप्त विभिन्न गुणों का योग है।”
10. वेस्लर के मत में “बुद्धि व्यक्ति की क्षमताओं का वह समुच्चय है जो उसकी ध्येयात्मक क्रिया, विवेकशील चिंतन तथा पर्यावरण के प्रभाव से समायोजन कराने में सहायक होती है।”
बुद्धि की विशेषताएँ
मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गयी परिभाषाओं के आधार पर बुद्धि की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
- बुद्धि एक जन्मजात शक्ति है। यह वंशानुक्रम से प्राप्त होती है।
- बुद्धि वह शक्ति है जिसके द्वारा व्यक्ति कठिनाइयों को दूर करके परिस्थिति के अनुसार अपने व्यवहार का संगठन करता है।
- बुद्धि सीखने की क्षमता है।
- बुद्धि अतीत अनुभवों से लाभ उठाने की योग्यता है।
- बुद्धि अमूर्त चिन्तन की योग्यता है अर्थात् बुद्धि के द्वारा जो प्रत्यक्ष नहीं है, उसके बारे में सोच-विचार कर सकते हैं।
- बुद्धि विभिन्न योग्यताओं का समूह है।
- बुद्धि सभी प्रकार की विशिष्ट योग्यताओं का निचोड़ (सार) है।
- बुद्धि द्वारा अर्जित ज्ञान को नयी परिस्थितियों में उपयोग किया जा सकता है।
- बुद्धि और ज्ञान में अन्तर होता है।
- लिंग-भेद के कारण बुद्धि में अंतर नहीं दिखाई पड़ता।
- बुद्धि में आत्म-निरीक्षण की शक्ति होती है। व्यक्ति द्वारा किये गये कर्मों और विचारों की आलोचना बुद्धि स्वयं करती है।
- बुद्धि किसी समस्या को समझने का प्रयत्न करती है और समझकर मस्तिष्क को निर्णय करने के लिए प्रेरित करती है।
बुद्धि के प्रकार
थार्नडाइक के अनुसार बुद्धि के कितने प्रकार है, ई. एल. थार्नडाइक ने बुद्धि के तीन प्रकार बतलाये है।
2. अमूर्त बुद्धि - अमूर्त चिन्तन का तात्पर्य ऐसी मानसिक क्षमता से है जिसमें व्यक्ति
शाब्दिक तथा गणितीय संकेतों एवं चिन्हों को आसानी से समझ जाता है तथा
उसकी व्याख्या कर लेता है।
3. मूर्त बुद्धि - मूर्त बुद्धि वह मानसिक क्षमता है जिसके आधार पर व्यक्ति ठोस वस्तुओं
के महत्व को समझता है तथा उसका ठीक ढंग से भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में
परिचालन करना सीखता है।
बुद्धि के निर्धारण तत्व
एक व्यक्ति की बुद्धि दूसरे व्यक्ति से भिन्न होती है। इस भिन्नता का प्रमुख कारण वंशानुक्रम तथा वातावरण है। वंशानुक्रम के महत्व को दिखाने के लिए मनोवैज्ञानिको ने अलग-अलग तथ्य एकत्र कर यह बताया है कि बुद्धि जीन्स द्वारा प्रभावित होती है।- भिन्न भिन्न परिवारो के बच्चे को जन्म के तुरन्त बाद एक ही वातारण मे रखकर यह पाया गया कि ऐसे बच्चे की बुद्धि एक दूसरे से भिन्न थी।
- एकाड़ी जुड़वा बच्चों की बुद्धि मे भात्रीय जुड़वा बच्चों की अपेक्षा अधिक समानता होती है। इस सहसम्बन्ध गुणांक 90 पाया गया।
- बोचार्ड तथा मैन्यू (1981) तथा एहर््रोमेयर, किमरलिंग तथा जाईविस ने अपने अध्ययनों मे यह बताया है कि जिन व्यक्तियों मे रिश्तेदारी होती है उनकी बुद्धिलब्धि मे सहसम्बन्ध पाया जाता है। वातावरण भी व्यक्ति की बुद्धि लब्धि को प्रभावित करता है। वातावरणीय कारकों मे आहार, स्वास्थ्य, उत्तेजनाओ का स्तर, परिवार का संवेगात्मक वातावरण प्रमुख है।
- गरीब तथा अप्रेरणात्मक वातावरण में पाले गए बच्चो की बुद्धि की तुलना उन बालकों की बुद्धि से की गयी जो प्रेरणात्मक तथा धनी वातावरण में पाले पोसे गये थे और यह पाया गया कि प्रेरणात्मक वातावरण मे बड़े होने वाले बच्चो की बुद्धि अधिक पायी गयी।
- विसमैन तथा साल ने अपने अध्ययनों के आधार पर यह बताया कि प्रतिकूल वातावरण का सबसे खराब प्रभाव औसत बुद्धि वाले बच्चो पर पड़ता है। यदि व्यक्ति की आरम्भिक जिन्दगी में कुछ महत्वपूर्ण पर्यावरणी उत्तेजना का अभाव रहता है तो उससे बुद्धि मे कमी आ जाती है।
- बैक्स ने पाया है कि जब परिवार मे शोरगुल एवं दुव्र्यवस्था का स्तर उँचा होता है तो बच्चों के बुद्धि स्तर मे कमी आ जाती है माता पिता द्वारा उचित ध्यान न देना तथा सफलता पर उचित पुरस्कार न देना आदि कारणों से भी बुद्धिलब्धि मे कमी आ जाती है।
- लोगो का रहन सहन का स्तर तथा शैक्षिक अवसरो मे वृद्धि बुद्धि मे वृद्धि का कारण माना जाता है।
बुद्धि को प्रभावित करने वाले कारक
बुद्धि को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं-
1. वंशानुक्रम - इस संदर्भ में अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने अलग-अलग प्रयोग किये और यह निष्कर्ष निकाला कि वंशानुक्रम बुद्धि को प्रभावित करता है। जैसे-प्रफीमैन ने यह स्वीकार किया कि बुद्धि का वंशानुक्रम से बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। अतः यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक है।
2. वातावरण - वातावरण के सम्बन्ध में भी अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अनेक प्रयोग किये। उनका मानना है कि बुद्धि वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण से अधिक प्रभावित होती है। कोडक ने बुद्धि पर वातावरण के प्रभाव को जानने के लिए अस्सी ऐसी माताओं का अध्ययन किया जिनके बच्चे का पालन-पोषण अच्छे वातावरण में किया गया था। वेलमैन लीही, और स्कील ने भी अपने योग के आधार पर यह सिद्ध किया कि यदि बच्चों को अच्छा वातावरण दिया जाए तो उनकी बुद्धि में काफी परिवर्तन लाया जा सकता है।
इस विचारधारा के मनोवैज्ञानिक बुद्धि को वातावरण से अधिक प्रभावित होने का समर्थन करते हैं। आयु बुद्धि और आयु का सम्बन्ध् भी एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है।
3. प्रजाति - मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि पर प्रजाति के प्रभाव को भी अपने अध्ययन में उतारा और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि प्रजाति भेदों का बुद्धि पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। सभी प्रजातियों में तीन वर्ग- तीव्र, सामान्य और निम्न बुद्धि के लोग पाए जाते हैं। उनका प्रतिशत कम या अध्कि अवश्य हो सकता है, परन्तु कुछ मनोवैज्ञानिकों ने स्वीकार किया कि प्रजाति का बुद्धि पर प्रभाव पड़ता है।
4. लिंग- लिंग का बुद्धि पर प्रभाव पड़ता है या नहीं, इस सम्बन्ध में भी अनेक प्रयोग किये गये। मनोवैज्ञानिक विट्टी ने स्वीकार किया कि लिंग भेद का बुद्धि-लब्ध् में कोई विशेष अन्तर नहीं होता, परन्तु यदि लड़कियों को उचित वातावरण न दिया जाए तो उनका चिन्तन पक्ष पिछड़ जाता है और जिनको स्वतंत्र वातावरण भी नहीं मिलता, वे भी लड़कों की अपेक्षा कम बुद्धि-लब्ध् ही होती है।
मैकमीकेन ने एक अध्ययन में 875 बच्चों की बुद्धि का मापन किया, यह सभी बच्चे स्काटलैण्ड के थे। इन बच्चों की बुद्धि का मापन स्टैनपफोर्ड बिनेट परीक्षण द्वारा किया गया। अध्ययनों के पश्चात यह निष्कर्ष निकाला गया कि लड़कों का औसत I.Q. 100.5 तथा लड़कियों की औसत I.Q. 99.7 थी। दोनों का मध्यमान I.Q. और S.D का क्रमशः 15. 9 तथा 15.2 था।
कुछ मनोवैज्ञानिकों का यह भी विचार है कि लड़कियों की I.Q. 6 वर्ष की अवस्था से 14 साल तक के लड़कों की अपेक्षा अधिक रहती है। इसके बाद 16 वर्ष की अवस्था पर दोनों की बुद्धि-लब्ध् तथा इस आयु के बाद लड़कों की बुद्धि-लब्ध् बढ़ जाती है।
5. स्वास्थ्य - जैसा कि कहा जाता है कि ‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है।’ दैनिक जीवन के अनुभवों से यह महसूस किया गया है कि स्वास्थ्य जितना ही अच्छा होता है, बच्चे की बुद्धि का विकास उतना ही अच्छा होता है। अतः स्वास्थ्य भी व्यक्ति की बुद्धि प्रभावित करता है।
2. वातावरण - वातावरण के सम्बन्ध में भी अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अनेक प्रयोग किये। उनका मानना है कि बुद्धि वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण से अधिक प्रभावित होती है। कोडक ने बुद्धि पर वातावरण के प्रभाव को जानने के लिए अस्सी ऐसी माताओं का अध्ययन किया जिनके बच्चे का पालन-पोषण अच्छे वातावरण में किया गया था। वेलमैन लीही, और स्कील ने भी अपने योग के आधार पर यह सिद्ध किया कि यदि बच्चों को अच्छा वातावरण दिया जाए तो उनकी बुद्धि में काफी परिवर्तन लाया जा सकता है।
3. प्रजाति - मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि पर प्रजाति के प्रभाव को भी अपने अध्ययन में उतारा और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि प्रजाति भेदों का बुद्धि पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। सभी प्रजातियों में तीन वर्ग- तीव्र, सामान्य और निम्न बुद्धि के लोग पाए जाते हैं। उनका प्रतिशत कम या अध्कि अवश्य हो सकता है, परन्तु कुछ मनोवैज्ञानिकों ने स्वीकार किया कि प्रजाति का बुद्धि पर प्रभाव पड़ता है।
4. लिंग- लिंग का बुद्धि पर प्रभाव पड़ता है या नहीं, इस सम्बन्ध में भी अनेक प्रयोग किये गये। मनोवैज्ञानिक विट्टी ने स्वीकार किया कि लिंग भेद का बुद्धि-लब्ध् में कोई विशेष अन्तर नहीं होता, परन्तु यदि लड़कियों को उचित वातावरण न दिया जाए तो उनका चिन्तन पक्ष पिछड़ जाता है और जिनको स्वतंत्र वातावरण भी नहीं मिलता, वे भी लड़कों की अपेक्षा कम बुद्धि-लब्ध् ही होती है।
5. स्वास्थ्य - जैसा कि कहा जाता है कि ‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है।’ दैनिक जीवन के अनुभवों से यह महसूस किया गया है कि स्वास्थ्य जितना ही अच्छा होता है, बच्चे की बुद्धि का विकास उतना ही अच्छा होता है। अतः स्वास्थ्य भी व्यक्ति की बुद्धि प्रभावित करता है।
बुद्धि के सिद्धांत
अमेरिका के थार्सटन, थार्नडाईक, थॉमसन आदि मनोवैज्ञानिकों ने कारकों के आधार पर ‘बुद्धि के स्वरूप’ विषय में अपने-अपने विचार व्यक्त किये। इसी तरह फ्रांस में अल्फ्रेड बिने, ब्रिटेन में स्पीयरमेन ने भी बुद्धि के स्वरूप के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये।
अमेरिका के थार्सटन, थार्नडाईक, थॉमसन आदि मनोवैज्ञानिकों ने कारकों के आधार पर ‘बुद्धि के स्वरूप’ विषय में अपने-अपने विचार व्यक्त किये। इसी तरह फ्रांस में अल्फ्रेड बिने, ब्रिटेन में स्पीयरमेन ने भी बुद्धि के स्वरूप के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये।
1. बिने का एक कारक सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रतिपादन फ्रांस के मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने ने 1905 में किया। अमेरिका के मनोवैज्ञानिक टर्मन तथा जर्मनी के मनोवैज्ञानिक एंबिगास ने इस सिद्धांत का समर्थन किया। इस सिद्धांत के अनुसार “बुद्धि वह शक्ति है जो समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है।” इस सिद्धांत के अनुयाइयों ने बुद्धि को समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करने वाली एक शक्ति के रूप में माना है।
उन्होंने यह भी माना है कि बुद्धि समग्र रूप वाली होती है और व्यक्ति को एक विशेष कार्य करने के लिये अग्रसित करती है। इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि एक एकत्व का खंड है जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता है।
इस सिद्धांत के अनुसार यदि व्यक्ति किसी एक विशेष क्षेत्र में निपुण है तो वह अन्य क्षेत्रों में भी निपुण रहेगा। इसी एक कारकीय सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए बिने ने बुद्धि को व्याख्या-निर्णय की योग्यता माना है। टर्मन ने इसे विचार करने की योग्यता माना है तथा स्टर्न ने इसे नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता के रूप में माना है।
इस सिद्धांत का प्रतिपादन फ्रांस के मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने ने 1905 में किया। अमेरिका के मनोवैज्ञानिक टर्मन तथा जर्मनी के मनोवैज्ञानिक एंबिगास ने इस सिद्धांत का समर्थन किया। इस सिद्धांत के अनुसार “बुद्धि वह शक्ति है जो समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है।” इस सिद्धांत के अनुयाइयों ने बुद्धि को समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करने वाली एक शक्ति के रूप में माना है।
उन्होंने यह भी माना है कि बुद्धि समग्र रूप वाली होती है और व्यक्ति को एक विशेष कार्य करने के लिये अग्रसित करती है। इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि एक एकत्व का खंड है जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता है।
इस सिद्धांत के अनुसार यदि व्यक्ति किसी एक विशेष क्षेत्र में निपुण है तो वह अन्य क्षेत्रों में भी निपुण रहेगा। इसी एक कारकीय सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए बिने ने बुद्धि को व्याख्या-निर्णय की योग्यता माना है। टर्मन ने इसे विचार करने की योग्यता माना है तथा स्टर्न ने इसे नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता के रूप में माना है।
2. द्वितत्व या द्विकारक सिद्धांत
इस सिद्धांत के प्रवर्तक ब्रिटेन के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्पीयर मेन हैं। उन्होंने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों तथा अनुभवों के आधार पर बुद्धि के इस द्वि-तत्व सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उनके मतानुसार बुद्धि दो शक्तियों के रूप में है या बुद्धि की संरचना में दो कारक हैं जिनमें एक को उन्होंने सामान्य बुद्धि तथा दूसरे कारक को विशिष्ट बुद्धि कहा है। सामान्य कारक या G-factor से उनका तात्पर्य यह है कि सभी व्यक्तियों में कार्य करने की एक सामान्य योग्यता होती है। अत: प्रत्येक व्यक्ति कुछ सीमा तक प्रत्येक कार्य कर सकता है। ये कार्य उसकी सामान्य बुद्धि के कारण ही होते हैं।
सामान्य कारक व्यक्ति की सम्पूर्ण मानसिक एवं बौद्धिक क्रियाओं में पाया जाता है परन्तु यह विभिन्न मात्राओं में होता है। बुद्धि का यह सामान्य कारक जन्मजात होता है तथा व्यक्तियों को सफलता की ओर इंगित करता है।
व्यक्ति की विशेष क्रियाएं बुद्धि के एक विशेष कारक द्वारा होती है। यह कारक बुद्धि का विशिष्ट कारक कहलाता है। एक प्रकार की विशिष्ट क्रिया में बुद्धि का एक विशिष्ट कारक कार्य करता है तो दूसरी क्रिया में दूसरा विशिष्ट कारक अत: भिन्न-भिन्न प्रकार की विशिष्ट क्रियाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। ये विशिष्ट कारक भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। इसी कारण वैयक्तिक भिन्नताएं पार्इ जाती हैं। बुद्धि के सामान्य कारक जन्मजात होते हैं जबकि विशिष्ट कारक अधिकांशत: अर्जित होते हैं।
बुद्धि के इस दो-कारक सिद्धांत के अनुसार सभी प्रकार की मानसिक क्रियाओं में बुद्धि के सामान्य कारक कार्य करते हैं। जबकि विशिष्ट मानसिक क्रियाओं में विशिष्ट कारकों को स्वतंत्र रूप से काम में लिया जाता है। व्यक्ति के एक ही क्रिया में एक या कई विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। परन्तु प्रत्येक मानसिक क्रिया में उस क्रिया से संबंधित विशिष्ट कारक के साथ-साथ सामान्य कारक भी आवश्यक होते हैं।
जैसे- सामान्य विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, दर्शन एवं शास्त्र अध्ययन जैसे विषयों को जानने और समझने के लिए सामान्य कारक महत्वपूर्ण समझे जाते हैं वहीं यांत्रिक, हस्तकला, कला, संगीत कला जैसे विशिष्ट विषयोंं को जानने ओर समझने के लिए विशिष्ट कारकों की प्रमुख रूप से आवश्यकता होती है।
अत: इससे स्पष्ट है कि किसी विशेष विषय या कला को सीखने के लिए दोनों कारकों का होना अत्यन्त अनिवार्य है। व्यक्ति की किसी विषेश विषय में दक्षता उसकी विशिष्ट योग्यताओं के अतिरिक्त सामान्य योग्यताओं पर निर्भर है। स्पीयर मेन के अनुसार ‘विषयों का स्थानान्तरण केवल सामान्य कारकों द्वारा ही संभव हो सकता है। इस सिद्धांत को चित्र संख्या एक के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी मानसिक क्रिया में विशिष्ट कारकों के साथ सामान्य कारक भी आवश्यक है।
इस सिद्धांत के प्रवर्तक ब्रिटेन के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्पीयर मेन हैं। उन्होंने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों तथा अनुभवों के आधार पर बुद्धि के इस द्वि-तत्व सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उनके मतानुसार बुद्धि दो शक्तियों के रूप में है या बुद्धि की संरचना में दो कारक हैं जिनमें एक को उन्होंने सामान्य बुद्धि तथा दूसरे कारक को विशिष्ट बुद्धि कहा है। सामान्य कारक या G-factor से उनका तात्पर्य यह है कि सभी व्यक्तियों में कार्य करने की एक सामान्य योग्यता होती है। अत: प्रत्येक व्यक्ति कुछ सीमा तक प्रत्येक कार्य कर सकता है। ये कार्य उसकी सामान्य बुद्धि के कारण ही होते हैं।
सामान्य कारक व्यक्ति की सम्पूर्ण मानसिक एवं बौद्धिक क्रियाओं में पाया जाता है परन्तु यह विभिन्न मात्राओं में होता है। बुद्धि का यह सामान्य कारक जन्मजात होता है तथा व्यक्तियों को सफलता की ओर इंगित करता है।
व्यक्ति की विशेष क्रियाएं बुद्धि के एक विशेष कारक द्वारा होती है। यह कारक बुद्धि का विशिष्ट कारक कहलाता है। एक प्रकार की विशिष्ट क्रिया में बुद्धि का एक विशिष्ट कारक कार्य करता है तो दूसरी क्रिया में दूसरा विशिष्ट कारक अत: भिन्न-भिन्न प्रकार की विशिष्ट क्रियाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। ये विशिष्ट कारक भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। इसी कारण वैयक्तिक भिन्नताएं पार्इ जाती हैं। बुद्धि के सामान्य कारक जन्मजात होते हैं जबकि विशिष्ट कारक अधिकांशत: अर्जित होते हैं।
व्यक्ति की विशेष क्रियाएं बुद्धि के एक विशेष कारक द्वारा होती है। यह कारक बुद्धि का विशिष्ट कारक कहलाता है। एक प्रकार की विशिष्ट क्रिया में बुद्धि का एक विशिष्ट कारक कार्य करता है तो दूसरी क्रिया में दूसरा विशिष्ट कारक अत: भिन्न-भिन्न प्रकार की विशिष्ट क्रियाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। ये विशिष्ट कारक भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। इसी कारण वैयक्तिक भिन्नताएं पार्इ जाती हैं। बुद्धि के सामान्य कारक जन्मजात होते हैं जबकि विशिष्ट कारक अधिकांशत: अर्जित होते हैं।
बुद्धि के इस दो-कारक सिद्धांत के अनुसार सभी प्रकार की मानसिक क्रियाओं में बुद्धि के सामान्य कारक कार्य करते हैं। जबकि विशिष्ट मानसिक क्रियाओं में विशिष्ट कारकों को स्वतंत्र रूप से काम में लिया जाता है। व्यक्ति के एक ही क्रिया में एक या कई विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। परन्तु प्रत्येक मानसिक क्रिया में उस क्रिया से संबंधित विशिष्ट कारक के साथ-साथ सामान्य कारक भी आवश्यक होते हैं।
जैसे- सामान्य विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, दर्शन एवं शास्त्र अध्ययन जैसे विषयों को जानने और समझने के लिए सामान्य कारक महत्वपूर्ण समझे जाते हैं वहीं यांत्रिक, हस्तकला, कला, संगीत कला जैसे विशिष्ट विषयोंं को जानने ओर समझने के लिए विशिष्ट कारकों की प्रमुख रूप से आवश्यकता होती है।
अत: इससे स्पष्ट है कि किसी विशेष विषय या कला को सीखने के लिए दोनों कारकों का होना अत्यन्त अनिवार्य है। व्यक्ति की किसी विषेश विषय में दक्षता उसकी विशिष्ट योग्यताओं के अतिरिक्त सामान्य योग्यताओं पर निर्भर है। स्पीयर मेन के अनुसार ‘विषयों का स्थानान्तरण केवल सामान्य कारकों द्वारा ही संभव हो सकता है। इस सिद्धांत को चित्र संख्या एक के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी मानसिक क्रिया में विशिष्ट कारकों के साथ सामान्य कारक भी आवश्यक है।
2. त्रिकारक बुद्धि सिद्धांत
स्पीयरमेन ने 1911 में अपने पूर्व बुद्धि के द्विकारक सिद्धांत में संशोधन करते हुए एक कारक और जोड़कर बुद्धि के त्रिकारक या तीन कारक बुद्धि सिद्धांत का प्रतिपादन किया। बुद्धि के जिस तीसरे कारक को उन्होंने अपने सिद्धांत में जोड़ा उसे उन्होंने समूह कारक या ग्रुप फेक्टर कहा। अत: बुद्धि के इस सिद्धांत में तीन कारक-1. सामान्य कारक 2. विशिष्ट कारक तथा 3. समूह कारक सम्मिलित किये गये हैं।
स्पीयरमेन के विचार में सामान्य तथा विशिष्ट कारकों के अतिरिक्त समूह कारक भी समस्त मानसिक क्रियाओं में साथ रहता है। कुछ विशेष योग्यताएं जैसे- यांत्रिक योग्यता, आंकिक योग्यता, शाब्दिक योग्यता, संगीत योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा बौद्धिक योग्यता आदि के संचालन में समूह कारक भी विशेष भूमिका निभाते हैं। समूह कारक स्वयं अपने आप में कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रखता बल्कि विभिन्न विशिष्ट कारकों तथा सामान्य कारक के मिश्रण से यह अपना समूह बनाता है। इसीलिए इसे समूह कारक कहा गया है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस सिद्धांत में किसी प्रकार की नवीनता नहीं है। थार्नडाइक जैसे मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहा है कि समूह कारक कोई नवीन कारक नहीं है अपितु यह सामान्य एवं विशिष्ट कारकों का मिश्रण मात्र है।
स्पीयरमेन ने 1911 में अपने पूर्व बुद्धि के द्विकारक सिद्धांत में संशोधन करते हुए एक कारक और जोड़कर बुद्धि के त्रिकारक या तीन कारक बुद्धि सिद्धांत का प्रतिपादन किया। बुद्धि के जिस तीसरे कारक को उन्होंने अपने सिद्धांत में जोड़ा उसे उन्होंने समूह कारक या ग्रुप फेक्टर कहा। अत: बुद्धि के इस सिद्धांत में तीन कारक-1. सामान्य कारक 2. विशिष्ट कारक तथा 3. समूह कारक सम्मिलित किये गये हैं।
स्पीयरमेन के विचार में सामान्य तथा विशिष्ट कारकों के अतिरिक्त समूह कारक भी समस्त मानसिक क्रियाओं में साथ रहता है। कुछ विशेष योग्यताएं जैसे- यांत्रिक योग्यता, आंकिक योग्यता, शाब्दिक योग्यता, संगीत योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा बौद्धिक योग्यता आदि के संचालन में समूह कारक भी विशेष भूमिका निभाते हैं। समूह कारक स्वयं अपने आप में कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रखता बल्कि विभिन्न विशिष्ट कारकों तथा सामान्य कारक के मिश्रण से यह अपना समूह बनाता है। इसीलिए इसे समूह कारक कहा गया है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस सिद्धांत में किसी प्रकार की नवीनता नहीं है। थार्नडाइक जैसे मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहा है कि समूह कारक कोई नवीन कारक नहीं है अपितु यह सामान्य एवं विशिष्ट कारकों का मिश्रण मात्र है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस सिद्धांत में किसी प्रकार की नवीनता नहीं है। थार्नडाइक जैसे मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहा है कि समूह कारक कोई नवीन कारक नहीं है अपितु यह सामान्य एवं विशिष्ट कारकों का मिश्रण मात्र है।
4. थार्नडाइक का बहुकारक बुद्धि सिद्धांत
थार्नडाइक ने अपने सिद्धांत में बुद्धि को विभिन्न कारकों का मिश्रण माना है। जिसमें कई योग्यताएं निहित होती हैं। उनके अनुसार किसी भी मानसिक कार्य के लिए, विभिन्न कारक एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। थार्नडाइक ने पूर्व सिद्धान्तों में प्रस्तुत सामान्य कारकों की आलोचना की और अपने सिद्धांत में सामान्य कारकों की जगह मूल कारकों तथा उभयनिष्ठ कारकों का उल्लेख किया। मूल कारकों में मूल मानसिक योग्यताओं को सम्मिलित किया है। ये योग्यताएं जैसे-शाब्दिक योग्यता, आंकिक योग्यता, यांत्रिक योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा भाषण देने की योग्यता आदि हैं।
उनके अनुसार ये योग्यताएं व्यक्ति के समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है।
थार्नडाइक इस बात को भी मानते हैं कि व्यक्ति में कोई न कोई विशिष्ट योग्यता अवश्य पायी जाती है। परन्तु उनका यह भी मानना है कि व्यक्ति की एक विषय की योग्यता से दूसरे विषय में योग्यता का अनुमान लगाना कठिन है। जैसे कि एक व्यक्ति यांत्रिक कला में प्रवीण है तो यह आवश्यक नहीं कि वह संगीत में भी निपुण होगा। उनके अनुसार जब दो मानसिक क्रियाओं के प्रतिपादन में यदि धनात्मक सहसंबंध पाया जाता है तो उसका अर्थ यह है कि व्यक्ति में उभयनिष्ठ कारक भी हैं। ये उभयनिष्ठ कारक कितनी मात्रा में हैं यह सहसंबंध की मात्रा से ज्ञात हो सकता है। जैसे उदाहरण के लिए किसी विद्यालय के 100 छात्रों को दो परीक्षण A तथा B दिये गये और उनका सहसंबंध ज्ञात किया। फिर उन्हें A तथा C परीक्षण देकर उनका सहसंबंध ज्ञात किया।
पहले दो परीक्षणों में A तथा B में अधिक सहसंबंध पाया गया जो इस बात को प्रमाणित करता है कि A तथा C परीक्षणों की अपेक्षाकृत Aतथा B परीक्षणों मानसिक योग्यताओं में उभयनिष्ठ कारक अधिक निहित है। उनके अनुसार ये उभयनिष्ठ कुछ अंशों में समस्त मानसिक क्रियाओं में पाए जाते हैं।
थार्नडाइक ने अपने सिद्धांत में बुद्धि को विभिन्न कारकों का मिश्रण माना है। जिसमें कई योग्यताएं निहित होती हैं। उनके अनुसार किसी भी मानसिक कार्य के लिए, विभिन्न कारक एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। थार्नडाइक ने पूर्व सिद्धान्तों में प्रस्तुत सामान्य कारकों की आलोचना की और अपने सिद्धांत में सामान्य कारकों की जगह मूल कारकों तथा उभयनिष्ठ कारकों का उल्लेख किया। मूल कारकों में मूल मानसिक योग्यताओं को सम्मिलित किया है। ये योग्यताएं जैसे-शाब्दिक योग्यता, आंकिक योग्यता, यांत्रिक योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा भाषण देने की योग्यता आदि हैं।
उनके अनुसार ये योग्यताएं व्यक्ति के समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है।
थार्नडाइक इस बात को भी मानते हैं कि व्यक्ति में कोई न कोई विशिष्ट योग्यता अवश्य पायी जाती है। परन्तु उनका यह भी मानना है कि व्यक्ति की एक विषय की योग्यता से दूसरे विषय में योग्यता का अनुमान लगाना कठिन है। जैसे कि एक व्यक्ति यांत्रिक कला में प्रवीण है तो यह आवश्यक नहीं कि वह संगीत में भी निपुण होगा। उनके अनुसार जब दो मानसिक क्रियाओं के प्रतिपादन में यदि धनात्मक सहसंबंध पाया जाता है तो उसका अर्थ यह है कि व्यक्ति में उभयनिष्ठ कारक भी हैं। ये उभयनिष्ठ कारक कितनी मात्रा में हैं यह सहसंबंध की मात्रा से ज्ञात हो सकता है। जैसे उदाहरण के लिए किसी विद्यालय के 100 छात्रों को दो परीक्षण A तथा B दिये गये और उनका सहसंबंध ज्ञात किया। फिर उन्हें A तथा C परीक्षण देकर उनका सहसंबंध ज्ञात किया।
थार्नडाइक इस बात को भी मानते हैं कि व्यक्ति में कोई न कोई विशिष्ट योग्यता अवश्य पायी जाती है। परन्तु उनका यह भी मानना है कि व्यक्ति की एक विषय की योग्यता से दूसरे विषय में योग्यता का अनुमान लगाना कठिन है। जैसे कि एक व्यक्ति यांत्रिक कला में प्रवीण है तो यह आवश्यक नहीं कि वह संगीत में भी निपुण होगा। उनके अनुसार जब दो मानसिक क्रियाओं के प्रतिपादन में यदि धनात्मक सहसंबंध पाया जाता है तो उसका अर्थ यह है कि व्यक्ति में उभयनिष्ठ कारक भी हैं। ये उभयनिष्ठ कारक कितनी मात्रा में हैं यह सहसंबंध की मात्रा से ज्ञात हो सकता है। जैसे उदाहरण के लिए किसी विद्यालय के 100 छात्रों को दो परीक्षण A तथा B दिये गये और उनका सहसंबंध ज्ञात किया। फिर उन्हें A तथा C परीक्षण देकर उनका सहसंबंध ज्ञात किया।
पहले दो परीक्षणों में A तथा B में अधिक सहसंबंध पाया गया जो इस बात को प्रमाणित करता है कि A तथा C परीक्षणों की अपेक्षाकृत Aतथा B परीक्षणों मानसिक योग्यताओं में उभयनिष्ठ कारक अधिक निहित है। उनके अनुसार ये उभयनिष्ठ कुछ अंशों में समस्त मानसिक क्रियाओं में पाए जाते हैं।
5. थस्र्टन का समूह कारक बुद्धि सिद्धांत
थस्र्टन के समूह कारक सिद्धांत के अनुसार बुद्धि न तो सामान्य कारकों का प्रदर्शन है न ही विभिन्न विशिष्ट कारकों का, अपितु इसमें कुछ ऐसी निश्चित मानसिक क्रियाएं होती हैं जो सामान्य रूप से मूल कारकों में सम्मिलित होती है। ये मानसिक क्रियाएं समूह का निर्माण करती हैं जो मनोवैज्ञानिक एवं क्रियात्मक एकता प्रदान करते हैं। थस्र्टन ने अपने सिद्धांत को कारक विश्लेषण के आधार पर प्रस्तुत किया। उनके अनुसार बुद्धि की संरचना कुछ मौलिक कारकों के समूह से होती है। दो या अधिक मूल कारक मिलकर एक समूह का निर्माण कर लेते हैं जो व्यक्ति के किसी क्षेत्र में उसकी बुद्धि का प्रदर्शन करते हैं। इन मौलिक कारकों में उन्होंने आंकिक योग्यता प्रत्यक्षीकरण की योग्यता शाब्दिक योग्यता दैशिक योग्यता शब्द प्रवाह तर्क शक्ति और स्मृति शक्ति को मुख्य माना।
थर्सटन ने यह स्पष्ट किया कि बुद्धि कई प्रकार की योग्यताओं का मिश्रण है जो विभिन्न समूहों में पाई जाती है। उनके अनुसार मानसिक योग्यताएं क्रियात्मक रूप से स्वतंत्र है फिर भी जब ये समूह में कार्य करती है तो उनमें परस्पर संबंध या समानता पाई जाती है। कुछ विशिष्ट योग्यताएं एक ही समूह की होती हैं और उनमें आपस में सह-संबंध पाया जाता है। जैसे- विज्ञान विषयों के समूह में भौतिक, रसायन, गणित तथा जीव-विज्ञान भौतिकी एवं रसायन आदि। इसी प्रकार संगीत कला को प्रदर्शित करने के लिए तबला, हारमोनियम, सितार आदि बजाने में परस्पर सह-संबंध रहता है।
बुद्धि के अनेक प्रकार की योग्यताओं के मिश्रण को प्रस्तुत किया है। इन योग्यताओं का संकेतीकरण इस प्रकार है-
- आंकिक योग्यता
- वाचिक योग्यता
- स्थान सम्बंधी योग्यता
- स्मरण शक्ति योग्यता
- शब्द प्रवाह योग्यता
- तर्क शक्ति योग्यता
थस्र्टन के समूह कारक सिद्धांत के अनुसार बुद्धि न तो सामान्य कारकों का प्रदर्शन है न ही विभिन्न विशिष्ट कारकों का, अपितु इसमें कुछ ऐसी निश्चित मानसिक क्रियाएं होती हैं जो सामान्य रूप से मूल कारकों में सम्मिलित होती है। ये मानसिक क्रियाएं समूह का निर्माण करती हैं जो मनोवैज्ञानिक एवं क्रियात्मक एकता प्रदान करते हैं। थस्र्टन ने अपने सिद्धांत को कारक विश्लेषण के आधार पर प्रस्तुत किया। उनके अनुसार बुद्धि की संरचना कुछ मौलिक कारकों के समूह से होती है। दो या अधिक मूल कारक मिलकर एक समूह का निर्माण कर लेते हैं जो व्यक्ति के किसी क्षेत्र में उसकी बुद्धि का प्रदर्शन करते हैं। इन मौलिक कारकों में उन्होंने आंकिक योग्यता प्रत्यक्षीकरण की योग्यता शाब्दिक योग्यता दैशिक योग्यता शब्द प्रवाह तर्क शक्ति और स्मृति शक्ति को मुख्य माना।
थर्सटन ने यह स्पष्ट किया कि बुद्धि कई प्रकार की योग्यताओं का मिश्रण है जो विभिन्न समूहों में पाई जाती है। उनके अनुसार मानसिक योग्यताएं क्रियात्मक रूप से स्वतंत्र है फिर भी जब ये समूह में कार्य करती है तो उनमें परस्पर संबंध या समानता पाई जाती है। कुछ विशिष्ट योग्यताएं एक ही समूह की होती हैं और उनमें आपस में सह-संबंध पाया जाता है। जैसे- विज्ञान विषयों के समूह में भौतिक, रसायन, गणित तथा जीव-विज्ञान भौतिकी एवं रसायन आदि। इसी प्रकार संगीत कला को प्रदर्शित करने के लिए तबला, हारमोनियम, सितार आदि बजाने में परस्पर सह-संबंध रहता है।
बुद्धि के अनेक प्रकार की योग्यताओं के मिश्रण को प्रस्तुत किया है। इन योग्यताओं का संकेतीकरण इस प्रकार है-
- आंकिक योग्यता
- वाचिक योग्यता
- स्थान सम्बंधी योग्यता
- स्मरण शक्ति योग्यता
- शब्द प्रवाह योग्यता
- तर्क शक्ति योग्यता
6. थॉमसन का प्रतिदर्श सिद्धांत
थॉमसन ने बुद्धि के प्रतिदर्श सिद्धांत को प्रस्तुत किया। उनके मतानुसार व्यक्ति का प्रत्येक कार्य निश्चित योग्यताओं का प्रतिदर्श होता है। किसी भी विशेष कार्य को करने में व्यक्ति अपनी समस्त मानसिक योग्यताओं में से कुछ का प्रतिदर्श के रूप में चुनाव कर लेता है। इस सिद्धांत में उन्होंने सामान्य कारकों की व्यावहारिकता को महत्व दिया है। थॉमसन के अनुसार व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार अनेक स्वतंत्र योग्यताओं पर निर्भर करता है परन्तु परीक्षा करते समय उनका प्रतिदर्श ही सामने आता है।
थॉमसन ने बुद्धि के प्रतिदर्श सिद्धांत को प्रस्तुत किया। उनके मतानुसार व्यक्ति का प्रत्येक कार्य निश्चित योग्यताओं का प्रतिदर्श होता है। किसी भी विशेष कार्य को करने में व्यक्ति अपनी समस्त मानसिक योग्यताओं में से कुछ का प्रतिदर्श के रूप में चुनाव कर लेता है। इस सिद्धांत में उन्होंने सामान्य कारकों की व्यावहारिकता को महत्व दिया है। थॉमसन के अनुसार व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार अनेक स्वतंत्र योग्यताओं पर निर्भर करता है परन्तु परीक्षा करते समय उनका प्रतिदर्श ही सामने आता है।
7. बर्ट तथा वर्नन का पदानुक्रमित बुद्धि सिद्धांत
बर्ट एवं वर्नन (1965) ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया। बुद्धि सिद्धान्तों के क्षेत्र में यह नवीन सिद्धांत माना जाता है। इस सिद्धांत में बर्ट एवं वर्नन ने मानसिक योग्यताओं को क्रमिक महत्व प्रदान किया है। उन्होंने मानसिक योग्यताओं को दो स्तरों पर विभिक्त किया-- सामान्य मानसिक योग्यता
- विशिष्ट मानसिक योग्यता
सामान्य मानसिक योग्यताओं में भी योग्यताओं को उन्होंने स्तरों के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया। पहले वर्ग में उन्होंने क्रियात्मक यांत्रिक दैशिक एवं शारीरिक योग्यताओं को रखा है। इस मुख्य वर्ग को उन्होंने v.ed. नाम दिया। योग्यताओं के दूसरे समूह में उन्होंने शाब्दिक आंकिक तथा शैक्षिक योग्यताओं को रखा है और इस समूह को उन्होंने अण्मकण् नाम दिया है। अंतिम स्तर पर उन्होंने विशिष्ट मानसिक योग्यताओं को रखा जिनका सम्बंध विभिन्न ज्ञानात्मक क्रियाओं से है।
इस सिद्धान्त की नवीनता एवं अपनी विशेष योग्यताओं के कारण कर्इ मनोवैज्ञानिकों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हुआ है।
बर्ट एवं वर्नन (1965) ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया। बुद्धि सिद्धान्तों के क्षेत्र में यह नवीन सिद्धांत माना जाता है। इस सिद्धांत में बर्ट एवं वर्नन ने मानसिक योग्यताओं को क्रमिक महत्व प्रदान किया है। उन्होंने मानसिक योग्यताओं को दो स्तरों पर विभिक्त किया-
- सामान्य मानसिक योग्यता
- विशिष्ट मानसिक योग्यता
इस सिद्धान्त की नवीनता एवं अपनी विशेष योग्यताओं के कारण कर्इ मनोवैज्ञानिकों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हुआ है।
7. गिलफोर्ड का त्रि-आयाम बुद्धि सिद्धांत
गिलफोर्ड (1959, 1961, 1967) तथा उसके सहयोगियों ने तीन मानसिक योग्यताओं के आधार पर बुद्धि संरचना की व्याख्या प्रस्तुत की। गिलफोर्ड का यह बुद्धि संरचना सिद्धान्त त्रि-पक्षिय बौद्धिक मॉडल कहलाता है। उन्होंने बुद्धि कारकों को तीन श्रेणियों में बांटा है। अर्थात् मानसिक योग्यताओं को तीन विमाओं में बांटा है। ये हैं-संक्रिया विषय-वस्तु तथा उत्पादन । कारक विश्लेषण के द्वारा बुद्धि की ये तीनों विमाएं पर्याप्त रूप से भिन्न है। इन विमाओं में मानसिक योग्यताओं के जो-जो कारक आते हैं वे इस प्रकार हैं-
1. विषय वस्तु - इस विमा में बुद्धि के जो विशेष कारक है वे विषय वस्तु के होते हैं। जैसे- आकृतिक सांकेतिक, शाब्दिक तथा व्यावहारिक। आकृतिक विषय वस्तु को दृष्टि द्वारा ही देखा जा सकता है तथा ये आकार और रंग-रूप के द्वारा निर्मित होती है। सांकेतिक विषय-वस्तु में संकेत, अंक तथा शब्द होते है जो विशेष पद्धति के रूप में व्यवस्थित होते हैं।
शाब्दिक विषय-वस्तु में शब्दों का अर्थ या विचार होते हैं। व्यावहारिक विषय-वस्तु में व्यवहार संबंधी विषय निहित होते हैं।
2. उत्पादन - ये छ: प्रकार के माने गए हैं - (1)इकाइयां (2)वर्ग (3)सम्बंध (4)पद्धतियां (5)स्थानान्तरण तथा (6)अपादान।
3. संक्रिया - इस विमा में मानसिक योग्यताओं के पांच मुख्य समूह माने हैं। 1. संज्ञान 2. मूल्यांकन 3. अभिसारी चिंतन 4. अपसारी चिंतन
गिलफोर्ड (1959, 1961, 1967) तथा उसके सहयोगियों ने तीन मानसिक योग्यताओं के आधार पर बुद्धि संरचना की व्याख्या प्रस्तुत की। गिलफोर्ड का यह बुद्धि संरचना सिद्धान्त त्रि-पक्षिय बौद्धिक मॉडल कहलाता है। उन्होंने बुद्धि कारकों को तीन श्रेणियों में बांटा है। अर्थात् मानसिक योग्यताओं को तीन विमाओं में बांटा है। ये हैं-संक्रिया विषय-वस्तु तथा उत्पादन । कारक विश्लेषण के द्वारा बुद्धि की ये तीनों विमाएं पर्याप्त रूप से भिन्न है। इन विमाओं में मानसिक योग्यताओं के जो-जो कारक आते हैं वे इस प्रकार हैं-
1. विषय वस्तु - इस विमा में बुद्धि के जो विशेष कारक है वे विषय वस्तु के होते हैं। जैसे- आकृतिक सांकेतिक, शाब्दिक तथा व्यावहारिक। आकृतिक विषय वस्तु को दृष्टि द्वारा ही देखा जा सकता है तथा ये आकार और रंग-रूप के द्वारा निर्मित होती है। सांकेतिक विषय-वस्तु में संकेत, अंक तथा शब्द होते है जो विशेष पद्धति के रूप में व्यवस्थित होते हैं।
शाब्दिक विषय-वस्तु में शब्दों का अर्थ या विचार होते हैं। व्यावहारिक विषय-वस्तु में व्यवहार संबंधी विषय निहित होते हैं।
2. उत्पादन - ये छ: प्रकार के माने गए हैं - (1)इकाइयां (2)वर्ग (3)सम्बंध (4)पद्धतियां (5)स्थानान्तरण तथा (6)अपादान।
3. संक्रिया - इस विमा में मानसिक योग्यताओं के पांच मुख्य समूह माने हैं। 1. संज्ञान 2. मूल्यांकन 3. अभिसारी चिंतन 4. अपसारी चिंतन
8. कैटल का बुद्धि सिद्धांत
रेमण्ड वी. केटल (1971) ने दो प्रकार की सामान्य बुद्धि का वर्णन किया है। ये हैं-फ्लूड तथा क्रिस्टेलाईज्ड उनके अनुसार बुद्धि की फ्लूड सामान्य योग्यता वंशानुक्रम कारकों पर निर्भर करती है जबकि क्रिस्टलाईज्ड योग्यता अर्जित कारकों के रूप में होती है। फ्लूड सामान्य योग्यता मुख्य रूप से संस्कृति युक्त, गति-स्थितियों तथा नई स्थितियों के अनुकूलता वाले परीक्षणों में पाई जाती है। क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य योग्यता अर्जित सांस्कृतिक उपलब्धियों, कौशलताओं तथा नई स्थिति से सम्बंधित वाले परीक्षणों में एक कारक के रूप में मापी जाती है।
फ्लूड सामान्य योग्यता (gf) को शरीर की वंशानुक्रम विभक्ता के रूप में लिया जा सकता है। जो जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं द्वारा संचालित होती है। जबकि क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य योग्यता (gc) सामाजिक अधिगम एवं पर्यावरण प्रभावों से संचालित होती है।
केटल के अनुसार फ्लुड सामान्य बुद्धि वंषाानुक्रम से सम्बंधित है तथा जन्मजात होती है जबकि क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य बुद्धि अर्जित है।
रेमण्ड वी. केटल (1971) ने दो प्रकार की सामान्य बुद्धि का वर्णन किया है। ये हैं-फ्लूड तथा क्रिस्टेलाईज्ड उनके अनुसार बुद्धि की फ्लूड सामान्य योग्यता वंशानुक्रम कारकों पर निर्भर करती है जबकि क्रिस्टलाईज्ड योग्यता अर्जित कारकों के रूप में होती है। फ्लूड सामान्य योग्यता मुख्य रूप से संस्कृति युक्त, गति-स्थितियों तथा नई स्थितियों के अनुकूलता वाले परीक्षणों में पाई जाती है। क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य योग्यता अर्जित सांस्कृतिक उपलब्धियों, कौशलताओं तथा नई स्थिति से सम्बंधित वाले परीक्षणों में एक कारक के रूप में मापी जाती है।
फ्लूड सामान्य योग्यता (gf) को शरीर की वंशानुक्रम विभक्ता के रूप में लिया जा सकता है। जो जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं द्वारा संचालित होती है। जबकि क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य योग्यता (gc) सामाजिक अधिगम एवं पर्यावरण प्रभावों से संचालित होती है।
केटल के अनुसार फ्लुड सामान्य बुद्धि वंषाानुक्रम से सम्बंधित है तथा जन्मजात होती है जबकि क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य बुद्धि अर्जित है।
बुद्धि का मापन
प्राचीन काल में ज्ञान के आधार पर बुद्धि की परीक्षा की जाती थी। वर्तमान काल मे बुद्धि को एक स्वाभाविक तथा जन्मजात शक्ति मानकर उसकी परीक्षा की जाती थी। 1819 में वुन्ट ने मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला स्थापित की तभी से वैज्ञानिक आधार पर बुद्धि परीक्षणों का निर्माण किया गया।1905 मे एलफ्रेड बिने ने बुद्धि परीक्षणों के सम्बन्ध में सबसे पहला तथा ठोस कदम उठाते हुये ‘बिने साइमन मानदण्ड’ बनाया।बुद्धि लब्धि
बुद्धि लब्धि शब्द के जनक कौन है? टर्मन तथा स्टर्न ने बुद्धि-लब्धि का प्रत्यय दिया। बुद्धि-लब्धि को मानसिक आयु तथा वास्तविक आयु के अनुपात से ज्ञात किया जाता है तथा इसको एक अंक में प्रस्तुत किया जाता है । बुद्धि मापन की प्रक्रिया में मानसिक आयु का विचार सर्वप्रथम बिने ने प्रस्तुत किया। मानसिक आयु व्यक्ति के विकास की वह अभिव्यक्ति है जो उसके उन कार्यों द्वारा ज्ञात की जा सकती है जिनकी उसकी आयु विशेष में अपेक्षा है।इस तरह किसी व्यक्ति की मानसिक आयु से हमारा आशय उस आयु से है जिस आयु के प्रश्नों या समस्याओं को वह हल कर लेता है। अर्थात् व्यक्ति जितनी आयु स्तर के प्रश्नों या समस्याओं को हल कर लेता है, उसकी मानसिक आयु भी उतनी ही होगी। जैसे एक आठ वर्ष का बालक दस वर्ष की आयु स्तर के प्रश्नों और समस्याओं को हल कर लेता है तो उसकी मानसिक आयु दस वर्ष मानी जाएगी। यदि आठ वर्ष का बालक अपनी आयु स्तर के प्रश्नों और समस्याओं को हल नहीं कर सकता और वह केवल छ: वर्ष आयु स्तर के प्रश्नों और समस्याओं को हल करता है तो उसकी मानसिक आयु छ: वर्ष मानी जाएगी।
बुद्धि परीक्षणों से व्यक्ति की इस मानसिक आयु को ज्ञात किया जाता है। शारीरिक आयु का अभिप्राय व्यक्ति की वास्तविक आयु से अर्थात् उसकी जन्म तिथि से वर्तमान समयावधि तक की आयु।
बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक बुद्धि में वृद्धि होती रहती है अत: इस अवस्था तक बुद्धि स्थिर नहीं रहती परन्तु बाद में एक अवस्था ऐसी आती है जब बुद्धि स्थिर हो जाती है। बुद्धि-लब्धि को निम्न सूत्र द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
बुद्धि-लब्धि प्राप्त करने के लिए पहले बुद्धि परीक्षण से मानसिक आयु ज्ञात की जाती है तथा फिर उसमें व्यक्ति की वास्तविक आयु का भाग दे दिया जाता है तथा संख्या को पूर्ण बनाने के लिए इस अनुपात को 100 से गुणा कर दिया जाता है।
बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक बुद्धि में वृद्धि होती रहती है अत: इस अवस्था तक बुद्धि स्थिर नहीं रहती परन्तु बाद में एक अवस्था ऐसी आती है जब बुद्धि स्थिर हो जाती है। बुद्धि-लब्धि को निम्न सूत्र द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
बुद्धि-लब्धि प्राप्त करने के लिए पहले बुद्धि परीक्षण से मानसिक आयु ज्ञात की जाती है तथा फिर उसमें व्यक्ति की वास्तविक आयु का भाग दे दिया जाता है तथा संख्या को पूर्ण बनाने के लिए इस अनुपात को 100 से गुणा कर दिया जाता है।
उदाहरण के लिए किसी बालक की मानसिक आयु 14 वर्ष है और शारीरिक आयु 10 वर्ष है तो उसकी बुद्धि-लब्धि होगी-
बुद्धि-लब्धि = मानसिक आयु X 100 / वास्तविक आयु
बुद्धि लब्धि का मान
बुद्धि लब्धि का मान | अर्थ- |
---|---|
140 या उससे उपर | प्रतिभाशाली |
120 से 139 | अतिश्रेष्ठ |
110 से 119 | श्रेष्ठ |
90 से 109 | सामान्य |
80 से 89 | मन्द |
70 से 79 | सीमान्त मंद बुद्धि |
60 से 69 | मंद बुद्धि |
20 से 59 | हीन बुद्धि |
20 से कम | जड़ बुद्धि |
good notes
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteKya koi bhi iska satic answer nahi hai
ReplyDeleteShort answer बनाए सिर
ReplyDeleteAgree with u
DeleteUseful
ReplyDeleteThanks
DeleteThakyu so much this is helpful for my cce of b.ed...
ReplyDeleteReally helpful sir
ReplyDeleteVery nice sir
ReplyDeleteBuddi ke yapan ki paribhasa nihit pado ki vakhya nahi mil rahe h
ReplyDeletegood knowledge for wisdom and inteligence
ReplyDeletehttps://www.reallifeknowledge.com/