दूसरो को प्रभावित कर सकने की क्षमता का नाम ही शक्ति हैं। जब कोई व्यक्ति दूसरों को प्रभावित करके उनसे
अपना वांछित कार्य करा लेता है तथा अवांछित से उन्हें रोकता है तो ऐसे व्यक्ति को हम शक्ति सम्पन्न कहते हैं।
यदि शक्ति को व्यक्तिगत संदर्भ में न लेकर राष्ट्रीय संदर्भ में ले तो इसे ‘राष्ट्रीय शक्ति’ कहतें हैं।
राष्ट्रीय शक्ति का
अभिप्राय ‘किसी राष्ट्र की उस क्षमता से है जिसके बल पर वह दूसरे राष्ट्रों को प्रभावित कर सके। राष्ट्र की इसी क्षमता
का नाम राष्ट्रीय शक्ति है।
राष्ट्रीय शक्ति किसी राष्ट्र की आशाओं और महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने का एक ऐसा
अस्त्र है, जिसके आधार पर अंतर्राष्ट्रीय जगत में उसका स्तर, महत्व एवं स्थान निश्चित होता है।
मांर्गेन्थो ने शक्ति को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में केंद्रीय स्थान देते हुए कहा है कि ‘‘अंतर्राष्ट्रीय राजनीति शक्ति के
लिए संघर्ष है और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का चाहे कोई भी उदेश्य क्यों न हो, उसका तत्कालीन लक्ष्य शक्ति प्राप्त करना
होता है।’’
राष्ट्रीय शक्ति का अर्थ और परिभाषा
शक्ति वह क्षमता है जो एक राष्ट्र द्वारा अपने हितों की पूर्ति के लिए दूसरे राष्ट्र के विरूद्ध प्रयोग में लायी जाती है। वास्तव में राष्ट्रीय शक्ति राष्ट्र की वह क्षमता है जिसके आधार पर वह दूसरे राष्ट्र से व्यवहार को प्रभावित और नियंत्रित करता है। यह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में राज्य का सम्पूर्ण प्रभाव है। इस राष्ट्रीय शक्ति का निर्माण अनेक तत्वों से होता है जो एक दूसरे से संबंधित होते हैं।
1. हार्टमैन के शब्दों में, ‘‘राष्ट्रीय शक्ति से यह बोध होता है कि अमूक राष्ट्र कितना शक्तिशाली अथवा निर्बल है
या अपने राष्ट्रीय हित की पूर्ति करने की दृष्टि से उसमें कितनी क्षमता हैं।’’
2. हेंस जे.मार्गेन्थों के अनुसार, ‘‘राष्ट्रीय शक्ति वह शक्ति है जिसके आधार पर कोई व्यक्ति दूसरे राष्ट्रों के कार्यों,
व्यवहारों और नीतियों पर प्रभाव तथा नियंत्रण रखने की चेष्टा करता है।’’
राष्ट्रीय शक्ति की विशेषताएं
1. अस्थायी स्वरूप-राष्ट्रीय शक्ति के स्वरूप में स्थायित्व का अभाव पाया जाता है क्योंकि समय-समय पर इसके तत्व परिवर्तित होते रहते है। भारत की राष्ट्रीय शक्ति के स्वरूप में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है। पूर्वकाल में सैन्य दृष्टि से पिछड़े तथा सुरक्षा के प्रति आशंकित भारत की तुलना में आज का भारत सैन्य क्षमता, प्रभाव तथा सुरक्षा के प्रति आत्मविश्वास से परिपूर्ण हैं।2. तुलनात्मक स्वरूप - राष्ट्रीय शक्ति के स्वरूप एवं स्तर को तुलनात्मक पद्धति से ही आंका जाता हैं। एक
राष्ट्र की राष्ट्रीय शक्ति के एक तत्व की दूसरें राष्ट्र की राष्ट्रीय शक्ति के उसी तत्व से तुलना करते हैं।
शक्तिशाली राष्ट्रों की शक्ति और क्षमता से तुलना करने पर ही किसी राष्ट्र को निर्बल कहा जा सकता है।
3. सापेक्षता - जब एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के साथ अपने शक्ति-संबधों में परिवर्तन करता है तो उन राष्ट्रों के
अन्य सम्बंध भी स्वत: ही परिवर्तित हो जातें हैं। उदाहरणार्थ, भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत और
ब्रिटेन के संबधों में स्वत: ही सापेक्ष परिवर्तन आ गया।
4. शक्ति की दृष्टि से दो राष्ट्र समान नहीं होते- जिस प्रकार दो व्यक्ति शक्ति की दृष्टि से पूर्ण रूप से समान
नहीं हो सकते उसी प्रकार दो राष्ट्र शक्ति की दृष्टि से एक समान नहीं हो सकते। किसी भी देश की तुलना
दूसरे देश से करने पर पूर्ण समानता नहीं पायी जा सकती हैं। एक देश दूसरे देश से या तो निर्बल होगा या
सबल।
5. राष्ट्रीय शक्ति का सही मूल्यांकन नहीं- किसी भी देश की शक्ति का सही आंकलन नहीं किया जा सकता
इसीलिए किसी भी राष्ट्र की शक्ति का सहीं मूल्यांकन संभव नहीं हैं। प्राय: देखा जाता है कि लोकतांत्रिक
देश सामान्यतया दूसरे देशों की शक्ति को और सर्वाधिकारवादी देश दूसरे देश की शक्ति को कम आंकते
हैं। अपनी शक्ति का सही मूल्यांकन अवश्य ही किसी राष्ट्र के लिए शक्ति का एक साधन सिद्ध होता है,
जबकि गलत मूल्यांकन उसके लिए सदैव विपफलता का कारण सिद्ध होता है।
राष्ट्रीय शक्ति का महत्व
किसी राष्ट्र को अपने राष्ट्रीय हितों को प्राप्त करने के लिए शक्ति का प्रयोग करना पड़ता है। जो राष्ट्र जितना अधिक शक्ति-सम्पन्न होता है वह अपने राष्ट्रीय हितों को उतना ही अधिक सपफलता से प्राप्त कर लेता है। राष्ट्रीय हितों में सबसे बड़ा हित राष्ट्रीय शक्ति को बनाये रखना तथा इसे बढ़ाना है। यह किसी राष्ट्र की आंकाक्षाओं तथा आशाओं को पूरा करने का एक साधन है। इस प्रकार राष्ट्रीय शक्ति ही अंतर्राष्ट्रीय सम्बंधों की धुरी है।राष्ट्रीय शक्ति ही किसी भी देश की विदेश नीति का आधार होती है। शक्ति सम्पन्न राष्ट्र ही अपनी विदेश नीति
के माघ्यम से अपने राष्ट्रीय हितों को प्राप्त कर सकता है। राजनीतिज्ञों तथा कूटनीतिज्ञों की दूसरे राष्ट्रों के साथ तथा
अंतक्रिया करने की योग्यता उनके राष्ट्र की राष्ट्रीय शक्ति द्वारा ही निर्धारित होती है।
राष्ट्रीय शक्ति किसी भी राष्ट्र के लिए साध्य और साधन दोनों है। राष्ट्र राष्ट्रीय हितों के उदेश्यों को प्राप्त करने
के लिए राष्ट्रीय शक्ति को एक साधन के रूप में प्रयोग करते हैं तथा साथ ही साथ राष्ट्रीय शक्ति को बनायें रखना
और बढ़ाना भी चाहते है जिससे भविष्य सुरक्षित रह सके। वी.वी.डाइक के शब्दों में, ‘‘शक्ति राष्ट्र द्वारा प्राप्त
किये जाने वाले उदेश्यों में सबसे प्रथम स्थान पर तथा उनके द्वारा प्रयोग की विधियों की आधारशिला है।’’
राष्ट्रीय शक्ति के प्रकार
राष्ट्रीय शक्ति के तीन प्रकार है -- सैनिक शक्ति
- आर्थिक शक्ति
- मनोवैज्ञानिक शक्ति
1. सैनिक शक्ति
राष्ट्रीय शक्ति के तीनों प्रकारों में सैनिक शक्ति का प्रकार सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। सैनिक शक्ति से ही प्रत्येक राष्ट्र की सुरक्षा के उदेश्य प्राप्त किये जा सकते है। किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा उस राष्ट्र के राष्ट्रीय हित का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। इसलिए सैनिक शक्ति-सम्पन्न होना प्रत्येक राष्ट्र का पहला कर्तव्य है। संभावित आक्रमण या युद्ध से सुरक्षा प्रदान करना सैनिक शक्ति का ही कार्य है। इस उदेश्य के लिए मुख्य साधन सैनिक शक्ति है।ई.एच.कार के शब्दों में, ‘‘शक्ति के पहलू से
राष्ट्र का प्रत्येक कार्य युद्ध की दिशा में होता है, इच्छित शस्त्र के रूप में नहीं एक ऐसे शस्त्र के रूप में
जो अंतिम आश्रय के रूप में प्रयोग किया जा सके।’’
2. आर्थिक शक्ति
आर्थिक शक्ति का अर्थ है अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि तथा आर्थिक वस्तुओं तथा सेवाओं में सम्पन्न होगा। आर्थिक साधन आजकल दूसरे देशों के कार्यो, व्यवहारों, नीतियों को प्रभावित करने के प्रभावशाली साधन हैं।पामर और पर्किन्स के शब्दों में, ‘‘आर्थिक शक्ति, सैनिक शक्ति से अलग नहीं की जा सकती, क्योंकि यह इसके महत्वपूर्ण अवयवों में से एक है। आज की युद्ध स्थिति में यह कहना कि आर्थिक शक्ति ही सैनिक शक्ति है कोई अतिश्योक्ति नहीं है।’’
Rashtriy Shakti ke Mul Tatv aur paribhasha
ReplyDeleteVery helpful..Thank you
ReplyDeleteThank you so much ❤️💯
ReplyDeleteLegend will be read this vlog before exam last night😂
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteFor help tha study
ReplyDelete