शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है और शिक्षण का अर्थ सम्बन्ध स्थापित
करना है शिक्षक शिक्षार्थी एवं विषय के मध्य।शिक्षा के तीन केन्द्र बिन्दु है- शिक्षक, विद्यार्थी एवं विषय/पाठ्यचर्या।
इन तीनों में आदान-प्रदान होते रहते हैं। यह आदान-प्रदान शिक्षण क्रिया
द्वारा होता है। दूसरे शब्दों में शिक्षण उक्त तीनों बिन्दुओं में स्थापित किया
जाने वाला सम्बन्ध है। जैसे शिक्षक राम को हिन्दी पढ़ाता है, इस वाक्य में
क्रिया पढ़ाना है जो तीन संज्ञाओं (शिक्षक, राम, हिन्दी) के मध्य सम्बन्ध
स्थापित करता है।
सफल अध्यापक के पास शिक्षण हेतु अनेक पद्धतियां तथा रीतियां होती है, फिर भी किसी एक पद्धति को सर्वोतम नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक पद्धति विभिन्न परिस्थितियों में अपनी उत्तमता रखती है। परिस्थिति में एक पद्धति सर्वोत्तम होती है तो वही पद्धति अन्य परिस्थितियों में व्यर्थ साबित होती है। अत: शिक्षक का यह कर्तव्य है कि वह विभिन्न परिस्थितियों का अध्ययन करे और उनमें सर्वोत्तम रूप से प्रयोग हो सकने वाली विधि एवं प्रविधि का प्रयोग करे।
शिक्षक का शिक्षण द्वारा विद्यार्थी एवं विषय के मध्य सम्बन्ध
स्थापित होता है। उक्त तीनों बिन्दुओं में शिक्षक तथा शिक्षार्थी सजीव एवं सक्रिय
बिन्दु है।
शिक्षक शिक्षण के समय अपनी सक्रियता एवं सजीवता दिखलाता है एवं
विद्यार्थी अधिगम के समय।
शिक्षण की विशेषताएं
- शिक्षण से शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।
- शिक्षण सीखने के नियमों पर आधारित होता है।
- शिक्षण बालक की क्रियाओं से पूर्ण होता है।
- यह प्रेरणात्मक एवं सृजनात्मक होता है।
- यह व्यक्ति की विभिन्नताओं पर आधारित होता है।
- यह चयनात्मक होता है।
- यह सहानुभूतिपूर्ण होता है और बालकों के सहयोग से आगे बढ़ता है।
- यह पूर्णरूप से व्यवस्थित एवं जनतान्त्रिक होता है।
शिक्षण विधि एवं प्रविधि
शिक्षा में पद्धति से तात्पर्य शिक्षक द्वारा निर्देशित ऐसी क्रियाओं से है जिन के परिणाम स्वरूप छात्र कुछ सीखते है। इस प्रकार पद्धति अनेक क्रियाओं का एक पुंज है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके परिणाम स्वरूप छात्र कुछ ज्ञानार्जन करता है। पद्धति की प्रक्रिया होने के कारण इसमें कई सोपान होते हैं। कई सोपान ऐसे होते है जो कई पद्धतियों में पाये जाते है। इन सोपानों को ठीक से व्यवस्थित करना शिक्षक का कार्य है।सफल अध्यापक के पास शिक्षण हेतु अनेक पद्धतियां तथा रीतियां होती है, फिर भी किसी एक पद्धति को सर्वोतम नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक पद्धति विभिन्न परिस्थितियों में अपनी उत्तमता रखती है। परिस्थिति में एक पद्धति सर्वोत्तम होती है तो वही पद्धति अन्य परिस्थितियों में व्यर्थ साबित होती है। अत: शिक्षक का यह कर्तव्य है कि वह विभिन्न परिस्थितियों का अध्ययन करे और उनमें सर्वोत्तम रूप से प्रयोग हो सकने वाली विधि एवं प्रविधि का प्रयोग करे।
अच्छी शिक्षण विधि की विशेषताएं
- वही विधि उत्तम है जो विद्यार्थियों में सीखने के लिए प्रेरणा जाग्रत करती है।
- उत्तम विधि शिक्षा के निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने की चेष्टा करती है।
- उत्तम विधि में स्पष्टता एवं निश्चितता होती है।
- उत्तम विधि में स्पष्टता एवं निश्चितता होती है।
- अच्छी विधि कलात्मक होती है। इसके कारण शिक्षक उपयुक्त एवं अनुपयुक्त का ज्ञान प्राप्त कर विषय-वस्तु प्रस्तुत करते हैं।
- उत्तम विधि व्यक्तिगत होती है। इसका निर्माण स्वयं शिक्षक करता है। वह दूसरों के द्वारा निर्धारित विभिन्न सोपानों का आंखे बन्द करके ही अनुसरण नहीं करता है।
- अच्छी विधि स्थानीय आवश्यकताओं के अनुकूल होती है।
- अच्छी विधि छात्रों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करती है।
शिक्षण विधियों के भेद
शिक्षक-शिक्षण की विभिन्न क्रियाओं को कक्षा में इस उद्देश्य से करता है कि वह कक्षा की विभिन्न परिस्थितियों से सफल हो सके। प्राय: यह देखा गया है कि शिक्षक तो शिक्षण हेतु कक्षा में आया है, परन्तु विद्यार्थी निष्क्रिय अथवा मौन-उदासीन है। शिक्षण-अधिगम की योजना नहीं हो पा रही है। कक्षा की परिस्थितियों, वातावरण, शिक्षक का दृष्टिकोण आदि के कारण शिक्षण-अधिगम प्रभावित होता है, कक्षा में विद्यार्थी भी विभिन्न शिक्षण नीतियों से प्रभावित होते हैं, ये शिक्षण विधियां एवं नीतियां कई प्रकार की होती हैं।
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