वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 कब लागू हुआ इसके उद्देश्य क्या है?

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के उद्देश्य, जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को सुरक्षा प्रदान करना है। यह वन्य पशुओं या पशु-जन्य वस्तुओं, या विनिर्दिश्ट पौधों या उसके किसी भाग या उससे व्युत्पन्न चीजों के परिवहन पर प्रतिबन्ध लगाता हैं। यह काम सिर्फ चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन या अन्य प्राधिकृत अधिकारी की अनुमति लेकर ही किया जा सकता है। यह अधिनियम निम्नलिखित को भी निषेध करता है:

  • किसी तरीके से व्यापार करना: 
    1.  अनुसूचित पशु से बनी वस्तुओं का निर्माता या व्यापारी, या 
    2.  आयातित हाथी दन्त या उससे बनी वस्तुओं का व्यापारी या ऐसी वस्तुओं का नर्माता या 
    3. अनुसूचित पशुओं या ऐसे पशुओं के अंगों के संबंध में चर्म प्रसाधक (चर्म में भूसा भर कर जीव का रूप देने वाला), या 
    4. अनुसूचित पशु से व्युत्पन्न  या  का व्यापारी, या
    5.  बंधक पशुओं जो की अनुसूचित पशु हो, का व्यापारी या 
    6.  किसी अनुसूचित पशु से व्यत्पन्न मांस का व्यापारी, या 
किसी अनुसूचित पशु से निकाले गए मांस को किसी भोजनालय में पकाना या उसको परोसना। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम,1986:इस अधिनियम का विधान मानव सम्बंधी पर्यावरण के संरक्षण और उसमें सुधार लाने के लिए किया गया है। मानव सम्बंधी पर्यावरण में, पानी, हवा और जमीन तथा पानी, हवा और जमीन और मानव जीवन अन्य जीव जन्तुओं, पौधों, सूक्ष्म जीवों और सम्पत्ति के बीच जो अन्तरंग सम्बन्ध है, वे सभी समाविश्ट होते हैं। यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति को निम्नलिखित काम करने से मना करता है:-
  1.  कोई उद्योग संक्रिया या प्रक्रिया चला/कर रहे व्यक्ति द्वारा, पर्यावरण को प्रदूशित करने वाला तत्व छोड़ना या निर्धारित मानक से अधिक मात्रा में छोड़ने की अनुमति देना, 
  2.  किसी खतरनाक तत्व को धारण करना या किसी से धारण करना या किसी से धारण करवाना, सिवाय उन परिस्थितियों को छोड़कर जब निर्धारित प्रक्रिया अपनाई गई हो और निर्धारित सुरक्षा के उपाय अपनाए गए हों। 
इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर दण्ड दिया जा सकता है। सरकार की ओर से या किसी व्यक्ति की ओर से की गई शिकायत पर अदालत उस अपराध पर विचार करेगी, अगर उस व्यक्ति ने तथाकथित अपराध के सम्बंध में कम से कम 60 दिन का नोटिस दिया हो और शिकायत करने की अपनी मंशा प्रकट की हो।

नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 के अनुच्छेद 17 द्वारा छुआछुत को समाप्त कर दिया गया है और इसकी किसी भी रूप में अपनाने की मनाही है। इस सत्यनिश्ठ बचनबद्धता को लागू करने के लिए नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 बनाया गया है।

‘छुआछूत’ की परिभाषा किसी भी कानून में नहीं की गई है। इसमें कठोर भारतीय जाति प्राथा के अन्तर्गत स्वीकृत रूढ़ि, रिवाज शामिल हैं, जिनके अनुसार अनुसूचित जाति के लोगों को हिन्दू मन्दिरों सार्वजनिक स्थानों, गलियों, सार्वनिक वाहनों, भोजनालयों, शिक्षा संस्थानों, आदि में प्रवेश से वंचित रखा गया था।

यह अधिनियम ‘छुआछुत’ के आधार पर निम्न रिवाजों पर रोक लगाता है:- जैसे कि मन्दिर में प्रवेश और पूजा अर्चनका करने, दुकानों और भोजनालयों में जाने, कोई पेशे या व्यापार करने, पानी के स्रोतों, सार्वजनिक स्थलों और आवासीय स्थानों, सार्वजनिक परिवहन, अस्पताल, शिक्षा संस्थानों का प्रयोग करने, आवासीय स्थानों का निर्माण और उनमें रहने, धार्मिक संस्कार कराने, आभूषणों और सुन्दर वस्तुओं को धारण करने आदि को रोकने में जोर जबरदस्ती करना।

इस प्रकार, छुआछुत के आधार पर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति को कूड़ा कर्कट उठाने, या सफाई के लिए झाडू लगाने, किसी शव को उठाके ले जाने, किसी जानवर की खाल खीचने या इसी तरह का कोई अन्य काम करने के लिए मजबूर करना इस अधिनियम के तहत निशिद्ध है और दण्डनीय है। इसक साथ ही, अगर कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में किसी भी तरह छुआछुत या इसके किसी भी रूप में व्यवहार करने पर उपदेश देता है, या ऐतिहासिक, आध्यात्मिक या धार्मिक आधार पर, या जाति प्रथा के आधार पर या किसी पर अन्य आधार या कारणों से छुआछुत के व्यवहार को सही ठहराता है तो वह दण्डनीय है।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निषेध) अधिनियम, 1989 : इस अधिनियम के अन्तर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर नृशंसता का व्यवहार करने पर रोक लगाने, और इस प्रकार के अपराधों की सुनावाई के लिए विशेष न्यायालय स्थापित करने और इस अपराधों से पीड़ित लोगों को राहत और पुनर्वास करने की व्यवस्था की गई है। अधिनियम की धारा 3 में किसी गैर SC|ST व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले नृशंसता के व्यवहार, जिसके लिये सजा हो सकती है, की सूची में निम्लिखित शामिल हैं:-
  1. किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को खराब या घृणित वस्तु खाने या पीने के लिए मजबूर करना; 
  2.  अनुसूचित जाति या किसी अनुसूचित जनजाति के सदस्य को चोट पहुँचाने, अपमान करने या खिजाने, परेषान करने के लिए उसके परिसर या पड़ोस में मल मूत्र, कूड़ा कर्कट, शव या किसी अन्य घृणित तत्व का ढ़ेर लगाना; 
  3.  किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जाति जनजाति के सदस्य के जबरदस्ती कपड़े उतारना, या उसको नग्न करके, या मुँह या जिस्म पर कालिख पोत कर, खुले आम परेड़ कराना या मानव सम्मान को ठेस पहुँचो वाला अन्य कोई काम करना; 
  4.  किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य की भूमि, या उसे अलाट की गई या सक्षम प्राधिकारी द्वारा अलाट किये जाने के लिए अधिसूचित भूमि को अवैध तरीके से कब्जा करना या उस पर खेती करना या उसको अलाट की गई जमीन को अपने नाम हस्तान्तरित करा लेना; 
  5.  अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को उसकी जमीन या परिसर से अवैध तरीके से बेदखल करना या किसी भूमि, स्ािान या पानी का प्रयोग करने में बाधा डालना; 
  6.  अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को बेगार करने या इसी तरह की कोई लेबर या बंधुआ मजदूर का काम करने के लिए मजबूर करना या प्रलोभन देना, सिवाय उन अनिवार्य सेवाओं के जो सरकार द्वारा समाज सेवा के रूप में उसको सौंपी गई हों: 
  7.  अनुसूचत जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को जबरदस्ती या डरा धमका कर वोट देने से रोकना, या किसी एक खास व्यक्ति को वोट देने के लिए मजबूर करना या कानून के विरूद्ध किसी भी तरीके से वोट के लिए कहना; 
  8. अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य के खिलाफ झूठा, दुर्भावपूर्ण या कश्ठप्रद मुकदमा या अपराधिक कानूनी कार्रवाई करना; 
  9.  अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति सदस्य के सम्बंध मे झूठी या ओछी जानकारी किसी सरकारी कर्मचारी को देना और उसके परिणामस्वरूप उस सरकारी कर्मचारी द्वारा उसऋष्रु+ष्ऋ व्यक्ति को चोट पहँुचाने या परेषान करने के कानून के तहत उसे मिली शक्ति का प्रयोग करवाना; 
  10.  अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को सार्वजनिक स्थान पर जानबूझकर बेइज्जत करना या परेषान करना ताकि उसको नीचा दिखाया जाए; 
  11.  अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला पर उसका अपमान या बलात्कार की नीयत से प्रहार करना या उसके खिलाफ ताकत का इस्तेमाल करना; 
  12.  अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला की इच्छा शक्ति पर हावी होने की स्थिति में होते हुए, इस स्थिति का इस्तेमाल करके उसका यौन शोषण करना, जिसके लिए अन्यथा वह राजी न हो; 
  13.  अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा साधारणतया प्रयोग में लाये जाने वाले पानी के झरने, जलाषय या किसी अन्य स्रोत के जल को दूशित करना या गंदला करना ताकि वह सामान्य प्रयोग के लिए पूर्णतया उपयोगी न रहे; 
  14.  अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को किसी सार्वजनिक स्थल जाने के लिए मना करना या उस सदस्य को किसी सार्वजनिक स्थान का प्रयोग करने से रोकने जहाँ जनसामान्य के अन्य सदस्यों या किसी एक वर्ग के लोगों का उसे प्रयोग करने का अधिकार हो;
  15.  अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को अपना घर गाँव या आवास का अन्य स्थान छोड़ने के लिए मजबूर करना या ऐसी किसी कार्रवाई में भाग लेना; 
  16.  अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी अपराधा जो तत्काल कानून के मुताबिक मृत्यु दण्डनीय अपराध हो, में फंसाने की नीयत से झूठे सबूत पेश करने या जालसाजी करने पर, उस व्यक्ति को आजीवन कारावास और जुर्माने का दण्ड दिया जा सकता है, ऐसे झूठे या जालसाजी के सबूत के परिणामस्वरूप अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का कोई निर्दोश सदस्य अपराधी घोशित करके सूली पर चढ़ा दिया जाता है, तो जो व्यक्ति वह झूठा सबूत पेश करता है या जालसाजी करता है तो उसको मृत्यु दण्ड दिया जाएगा; 
  17.  अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी अपराधा जिसके लिए मृत्यदण्ड की जगह सात साल या इससे अधिक के कारावास की सजा दी जा सकती है, में फंसाने की नियत से झूठे सबूत पेश करने या जालसाजी करने पर, ऐसे व्यक्ति को कारावास जो छ: महीने से कम नहीं होगा, लेकिन सात साल या उससे अधिक हो सकता है और जुर्मान के दण्ड का भागी होगा; 
  18. अगर कोई व्यक्ति अग्नि या विस्फोटक पदार्थ के द्वारा कोई ऐसी “ारारत करता है, यह जानते हुए और मंषा रखकर कि उससे वह किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य की सम्पत्ति को हानि पहुँचाएगा, तो वह कम से कम छ: महीने और अधिकतम सात वर्ष के कारावास और जुर्माने के दण्ड का भागी होगा; 
  19.  अगर कोई व्यक्ति अग्नि या विस्फोटक पदार्थ के द्वारा कोई ऐसी शरारत करता है, यह जानते हुए और मंषा रखकर कि उससे कोई ऐसी इमारत ध्वस्त या नश्ट हो जाएगी जिसका सामान्यतया उपयोग पूजा पाठ के लिए या मनुष्यों के आवास के लिए या सम्पत्ति रखने के लिए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा किया जाता है, तो वह व्यक्ति आजीवन कारावास और जुर्माने के दण्ड का भागी होगा; 
  20.  अगर भारतीय दंड संहिता (1860 का 45)के तहत किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरूद्ध कोई ऐसा अपराध करता है जो दस वर्ष या इससे अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय हो इस आधार पर कि वह व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है, या वह सम्पत्ति ऐसे सदस्य की है, तो वह व्यक्ति आजीवन कारावास और जुर्माने के दण्ड का भागी होगा; 
  21.  जानबूझकर या कुछ कारणों से यह विश्वास रखते हुए कि इस अध्याय के तहत कोई अपराध किया गया है उस अपराध के सबूत को नश्ट करता है ताकि कानून सजा न दे सके या कोई जानकारी देता है जो कि वह जानता है कि झूठी है, तो वह उस अपराध के लिए दिए जाने वाल दण्ड का भागी होगा; 
  22.  एक सरकारी कर्मचारी होते हुए इस धारा के अधीन कोई अपराध करता है। 

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