कवि नाभादास का जीवन परिचय

कवि नाभादास का जीवन परिचय


श्री नाभादास कृत भक्तमाल हिन्दी साहित्य का अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रंथ है। भक्तमाल हिन्दी साहित्य में रामचरितमानस के पश्चात् अपना एक विशेष महत्व रखता है । भक्तमाल बड़ा ही लोकप्रिय ग्रंथ रहा है। भक्त मंडली में इस ग्रंथ का सदैव से ही सम्मान किया गया है। इसकी लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई भक्तों द्वारा इसकी टीकाएँ हुई है। इसका प्रमुख कारण यह है कि यह एक ऐसा स्तम्भ है जिस पर हिन्दी साहित्य के विशाल भवन का निर्माण हुआ । इतिहास के निर्माण सूत्रों में यह ग्रंथ अत्यन्त महत्वपूर्ण । नाभादास पूरे पारखी थे, वे भक्त और भक्त कवि को कवि लिखने में सजग है। वस्तुतः नाभादास हिन्दी भाषा साहित्य के पहले समालोचक माने जाने चाहिए ।'

भक्तमाल को लिखने में कवि नाभादास का उद्देश्य सम्भवतः यह था कि इसके द्वारा जनता. में भक्तों के प्रति पूज्य भाव तथा आदर के भाव उत्पन्न किये जाये। इसी उद्देश्य की पूर्ति भी इससे अच्छी हुई और जनता की श्रद्धा और भक्ति भक्तों के प्रति अधिक हो गयी ।

बड़े-बड़े कवियों ने काव्य को केवल भगवान के गुणगान का ही एक माध्यमं उद्घोषित किया था । कवि नाभादास ने भक्तमाल में न तो भगवानों का ही केवल वर्णन किया है और न सामान्य मानव जाति का ही । उन्होंने भक्तों के चरित्रों का वर्णन कर भक्तमाल में अपने हृदय की श्रद्धा और आस्था को प्रकट किया।

भक्तमाल में कवि ने भक्तों के जीवन चरित्रों के उन पक्षों का उद्घाटन किया है जिनमें उन भक्तों का महत्व सामान्य जनता के मध्य कुछ और अधिक बढ़ जाता है। इन भक्तों के चरित्रों को लिपिबद्ध करके, नाभादास ने अज्ञान के अंधकार में निमग्न जनता का ऐसा मार्ग दिखाया जिसमें आलोक के सिवाय और कुछ था ही नहीं ।

मिश्रबंधु पहले इतिहासकार है जिन्होंने नाभादास के उपेक्षित व्यक्तित्व के प्रति इतना ध्यान दिया। नाभादास के व्यक्तित्व और रचनाओं के सम्बंध में मिश्रबंधु विनोद से हमें पर्याप्त सूचनाएँ प्राप्त होती है ।

नाभादास हिन्दी के प्रथम जीवनी लेखक कहे जा सकते हैं। इस बात का नाभादास को भारी श्रेय है कि उन्होंने लगभग 200 भक्तों के जीवन चरित्रों को लिपिबद्ध करके विस्मृति के गर्भ में विनष्ट होने से बचा लिया। नाभादास जी का अस्तित्व काल बड़े विवाद का विषय है। इसका प्रमुख कारण यह है कि कोई भी ऐसा अंतसाक्ष्य नहीं मिलता जिसके आधार पर नाभादास के अस्तित्व काल के विषय में कुछ लिखा जा सके। कुछ किवदंतियों और बहिर्साक्ष्य के आधार पर नाभादास का समय विद्वानों के निश्चित करने का प्रयास किया है। उपर्युक्त विद्वानों में मिश्रबंधु ने नाभादास की मृत्यु तिथि का ही अनुमान किया है। श्याम सुन्दर दास ने स० 1642-1680 तक का समय नाभादास जी का माना है। राधाकृष्ण दास' ने नाभादास का स्थितिकाल 1769 सं0 माना है। रामचन्द्र शुक्ल ने नाभादास और तुलसी की मिलन कथा तथा समय का उल्लेख किया है। रामशंकर शुक्ल 'रसाल' ने भी इन्हीं दो रहस्यों पर प्रकाश डालने भक्तमाल में कवि ने भक्तों के जीवन चरित्रों के उन पक्षों का उद्घाटन किया है जिनमें उन भक्तों का महत्व सामान्य जनता के मध्य कुछ और अधिक बढ़ जाता है। इन भक्तों के चरित्रों को लिपिबद्ध करके, नाभादास ने अज्ञान के अंधकार में निमग्न जनता का ऐसा मार्ग दिखाया जिसमें आलोक के सिवाय और कुछ था ही नहीं ।

मिश्रबंधु पहले इतिहासकार है जिन्होंने नाभादास के उपेक्षित व्यक्तित्व के प्रति इतना ध्यान दिया। नाभादास के व्यक्तित्व और रचनाओं के सम्बंध में मिश्रबंधु विनोद से हमें पर्याप्त सूचनाएँ प्राप्त होती है ।

नाभादास हिन्दी के प्रथम जीवनी लेखक कहे जा सकते हैं। इस बात का नाभादास को भारी श्रेय है कि उन्होंने लगभग 200 भक्तों के जीवन चरित्रों को लिपिबद्ध करके विस्मृति के गर्भ में विनष्ट होने से बचा लिया। नाभादास जी का अस्तित्व काल बड़े विवाद का विषय है। इसका प्रमुख कारण यह है कि कोई भी ऐसा अंतसाक्ष्य नहीं मिलता जिसके आधार पर नाभादास के अस्तित्व काल के विषय में कुछ लिखा जा सके। कुछ किवदंतियों और बहिर्साक्ष्य के आधार पर नाभादास का समय विद्वानों के निश्चित करने का प्रयास किया है। उपर्युक्त विद्वानों में मिश्रबंधु ने नाभादास की मृत्यु तिथि का ही अनुमान किया है। श्याम सुन्दर दास ने स० 1642-1680 तक का समय नाभादास जी का माना है। राधाकृष्ण दास' ने नाभादास का स्थितिकाल 1769 सं0 माना है। रामचन्द्र शुक्ल ने नाभादास और तुलसी की मिलन कथा तथा समय का उल्लेख किया है। रामशंकर शुक्ल 'रसाल' ने भी इन्हीं दो रहस्यों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।' दीन दयालु गुप्त ने नाभादास को अष्टछाप के कवियों का समकालीन माना है । हरिऔध जी 17वीं शताब्दी समय निश्चित करते हैं। कल्याण के सम्पादक ने वि० स० 1657 के लगभग नाभादास का समय माना है । क्षितिमोहन सेन 16वीं शताब्दी को नाभादास जी का समय बतलाते हैं । " एच० एच० विल्सन नाभादास को मलूकदास का समकालीन उद्घोषित करते हैं। रामकुमार वर्मा भी सं0 16577 को ही नाभादास का समय मानते हैं। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने नाभादास का समय 1657 निर्धारित किया है ।

अब तक नाभादास जी के समय में विद्वान किसी एक निश्चित तिथि तक नहीं पहुँच सके । किन्तु सभी विद्वानों द्वारा प्रस्तुत मतों के आधार पर हम कह कि नाभादास जी का समय सं0 1630-1700 तक था ।

नाभादास का जन्म तैलंग देश में रामभद्राचल के आस-पास हुआ था । दक्षिण में तैलंग देश, गोदावरी के समीप उत्तर मे रामभद्राचल एक पहाड़ है जहाँ पर नाभादास के पिता रहते थे। यही पर नाभादास का जन्म हुआ । नाभादास के पारिवारिक जीवन के विषय में लगभग सभी विद्वान मौन है। यत्र-तत्र कही कुछ संकेत मिल जाते है जिन पर संतोष करना पड़ता है ।

इसके अतिरिक्त विद्वानों ने नाभादास के अन्य ग्रंथ भी बतलाये हैं । 'अष्टयाम' मिश्रबंधु' के अनुसार नाभादास ने दो अष्टयाम भी लिखे थे जिनको विद्वान लेखकों ने छतरपुर में देखा था। एक ब्रजभाषा गद्य में है ओर दूसरा छंदबद्ध है, विशेषतया दोहा, चौपाईयों में। रामचन्द्र शुक्ल ने भी इसी विवरण का समर्थन किया है।

'रामचरित के पद' नामक ग्रंथ कुछ समय पूर्व त्रैवार्षिक खोज में मिला है। जिसका उल्लेख मिश्रबंधु, श्याम सुन्दर दास, हरिऔध जी, राम कुमार वर्मा आदि विद्वानों ने अपने ग्रंथों में किया है ।

नाभादास की मृत्यु का अनुमान करते हुए श्याम सुन्दर दास ने कहा है कि नाभादास की मृत्यु लगभग 1680 सं0 में हुई थी । मिश्रबंधु विनोद' में नाभादास की मृत्यु तिथि विद्वान लेखकों ने सं0 1700 के लगभग निर्धारित की है ।

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