कीन्स के रोजगार सिद्धांत की व्याख्या। इस सिद्धांत की क्या आलोचनाएं है?

कीन्स ने अपने रोजगार सिद्धांत को अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘The General Theory of Employment, Interest and Money (1936) में प्रतिपादित किया है। कीन्स के अनुसार पूर्ण रोजगार की स्थिति एक पूंजीवादी विकसित अर्थव्यवस्था की सामान्य नहीं स्थिति है। वास्तव में, प…

रोजगार का परम्परावादी सिद्धांत का अर्थ, परिभाषा, मान्यताएं, आलोचनाएं

रोजगार का परंपरावादी सिद्धांत के अनुसार पूर्ण रोजगार एक ऐसी स्थिति है जिसमें उन सब लोगों को रोजगार मिल जाता है जो प्रचलित मजदूरी पर काम करने को तैयार हैं। यह अर्थव्यवस्था की एक ऐसी स्थिति है जिसमें अनैच्छिक बेरोजगारी नहीं पाई जाती। रोजगार का परंपरावाद…

से का बाजार नियम क्या है? ‘से’ के बाजार नियम की मान्यताएं और आलोचना

जे.बी। से ने अपनी पुस्तक ‘ट्रेट डी एकनोमिक पोल्टिक’ (Traite d’ Economic Politique) में बाजार सम्बन्धी जिस संक्षिप्त नियम का प्रतिपादन किया उसी नियम को ‘से’ के बाजार नियम कहा जाता है। ‘से’ के बाजार नियम के अनुसार, “पूर्ति अपनी मांग का स्वयं निर्माण करत…

सार्वजनिक व्यय क्या है सार्वजनिक व्यय के महत्वपूर्ण सिद्धांत क्या है?

सार्वजनिक व्यय सार्वजनिक प्राधिकरणों अर्थात् केंन्द्र सरकार, राज्य सरकार तथा स्थानीय निकायों द्वारा किए जाने वाले उस व्यय से है जिन्हें वे लोगों की उन सामूहिक आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु करते हैं, जिन्हें लोग व्यक्तिगत रूप से संतुष्टि नहीं कर सकते। ये…

अधिकतम सामाजिक लाभ के सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या

आधुनिक राज्य कल्याणकारी राज्य है जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों का अधिकतम कल्याण करना है। सरकार की राजकोशीय व बजटीय गतिविधियां संपूर्ण अर्थव्यवस्था को बहुत प्रभावित करती है। इसलिए सार्वजनिक वित्त लगाते समय सार्वजनिक वित्त के कार्यों के लिए कुछ ऐसे कारक स्…

सार्वजनिक वित्त क्या है? सार्वजनिक वित्त के क्षेत्र तथा प्रकृति का वर्णन

सार्वजनिक वित्त सरकार के आय व व्यय का विस्तृत अध्ययन है। इसके द्वारा राज्य द्वारा अर्जित आय तथा सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा किए गए व्यय का लेखा जोखा प्रस्तुत किया जाता है। सरकार के आय व व्यय को सीमान्त समन्वय के द्वारा नियमित किया जाता है ताकि अधिकतम …

अर्थव्यवस्था पर सार्वजनिक ऋण के प्रभावों की विवेचना

जिस प्रकार सार्वजनिक व्यय तथा करारोपण के आर्थिक प्रभाव होते हैं, उसी प्रकार सार्वजनिक ऋण के प्रभाव भी उपभोग, उत्पादन, वितरण तथा आर्थिक व्यवस्था पर पड़ते हैं। ये प्रभाव ऋण के आकार, अवधि, प्रकार व शर्तों पर निर्भर करते हैं। आसानी से प्राप्त होने वाले या…

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