अनुक्रम
मृदा के संरक्षण में वे सब विधियाँ आती हैं जिनके द्वारा मृदा अपरदन रोका जाता है।
यदि मृदा बह गई है या उड़ गई है तो उसे पुन: स्थापित करना आसान नहीं है। इसलिये
मृदा संरक्षण में सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि मृदा अपने ही स्थान पर सुरक्षित बनी
रहे। इसके लिये विभिन्न प्रदेशों में कृषि पद्धतियों में सुधार किये गये हैं। पहाड़ी ढलानों
पर समोच्चरेखीय जुताई और सीढ़ीदार खेती की जाती है। मृदा संरक्षण की ये बड़ी
आसान विधियाँ हैं। वृक्षों की कतार या रक्षक-मेखला बनाकर मरुस्थलीय प्रदेशों में
पवन-अपरदन से खेतों की रक्षा की जाती है। हिमालय के ढ़लानों और अपवाह क्षेत्र,
झारखण्ड में ऊपरी दामोदर घाटी और दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियों पर वनरोपण
किया गया है। इसके द्वारा धरातलीय जल के तेज बहाव को कम किया गया है जिससे
मृदा अपने ही स्थान पर बंँधी रहती है। खड्ड अपने विशाल आकार, गहराई और खड़े
ढलानों के लिये जाने जाते हैं। ऐसी उत्खात भूमि का उद्धार करने के लिये केन्द्रीय मृदा
संरक्षण बोर्ड ने तीन अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना की है: (1) राजस्थान में कोटा, (2)
उत्तर प्रदेश में आगरा और (3) गुजरात में बलसार। इन केन्द्रों का दायित्व है कि वे
खड्ड भूमि के उद्धार के लिये क्षेत्र अनुसार अनुकूल विधियाँ बताएँ। भेड़, बकरी और
अन्य पशुओं द्वारा अतिचराई भी आंशिक रूप से भूमि अपरदन के लिये उत्तरदायी है।
इस कारक द्वारा अपरदन जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक
में ज्यादा होता है। मृदा का समापन खाद और उर्वरको की मदद से रोका जा सकता
है।
- भारत में पाई जाने वाली छ: मुख्य प्रकार की मृदाएँ है : जलोढ़, काली, लाल, लैटराइट, मरुस्थलीय एवं पर्वतीय।
- मृदा अपरदन को भौतिक एवं सामाजिक कारक निर्धारित करते हैं। भौतिक कारक हैं : वर्षा की अपरदनकारी शक्ति, मृदा की अपनी कटाव क्षमता, आवर्ती बाढ़ों की तीव्रता और ढ़लान की लम्बाई एवं तीव्रता; सामाजिक कारक है : वनों की कटाई, अतिचराई, भूमि उपयोग की प्रकृति और खेती करने की विधियाँ।
- मृदा अपरदन के प्रमुख रूप है : खड्ड, अवनालिकायें, भूस्खलन एवं परत-अपरदन।
- मृदा संरक्षण की विधियाँ हैं : समोच्चरेखीय जुताई और सीढ़ीदार खेती, वृक्षों की कतार या रक्षक-मेखला बनाना, वनरोपण, अतिचराई को रोकना एवं खादों और उर्वरकों का प्रयोग।
मृदा संरक्षण के उपाय-
- फसल चक्र का उपयोग करना चाहिये।
- प्रत्येक स्थान पर वृक्षारोपण करना चाहिये।
- मिट्टी के रासायनिक परीक्षण अनिवार्य रूप से किया जायें।
- वृक्षों की कटाई एवं अनियंत्रित पशुचारण पर रोक लगाई जायें।
- तटबांध का निर्माण किया जाना चाहिये।
- भूमि के ढ़ालों पर समोच्चरेखीय जुताई की जानी चाहिये।
- उर्वरकों एवं खाद का समुचित प्रयोग किया जाना चाहियें।
Good
ReplyDeleteThank you
ReplyDeleteमर्दा का उपयोग
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