धम्मपद अट्ठकथा का संक्षिप्त परिचय

धम्मपद का शाब्दिक विश्लेषण करने पर हमें दो शब्द प्राप्त होते हैं। धम्म ( धर्म और सदाचार) और पद (मार्ग)। इस प्रकार धम्मपद का अर्थ होता है- धर्म का मार्ग । पद का एक अर्थ वाणी या वचन भी होता है इस प्रकार धम्म पद का अर्थ हुआ भगवान् बुद्ध के सदाचार सम्बन्धी उपदेश या वचन ।

26 वर्गों (वग्गों) में विभाजित इस ग्रन्थ में बुद्ध के 45 वर्षों के उपदेशों का सार संकलित है ।

धम्मपद अट्ठकथा में बुद्ध के धार्मिक सिद्धान्त एवं साधना मार्गों का सरल एवं सुबोध विवरण दिया हुआ है । ब्राह्मणवग्ग के अनुसार इसमें 423 गाथाएँ हैं, जबकि धम्मपद अट्ठकथा के अनुसार यह संख्या 424 है। इन गाथाओं में शील समाधि प्रज्ञा, निर्वाण आदि का बड़ी सुन्दरता के साथ वर्णन किया गया है जिसे पढ़ते हुए एक अद्भुत संवेग, धर्म रस, शांति ज्ञान और संसार निर्वेद का अनुभव होता है। 1

इस प्रकार धम्मपद में प्रधान रूप से उन सभी नैतिक सदाचार की बातों का उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार चलने से मनुष्य अपने जीवन के अन्तिम लक्ष्य (दुःखों का नाश) को प्राप्त कर लेता है ।

धम्मपद को बुद्धगीता ( बौद्ध धर्म की गीता) भी कहा जाता है। जबकि धम्मपद गीता से सभी दृष्टिकोणों से प्राचीन है। जिस प्रकार गीता महाभारत का अंश है उसी प्रकार धम्मपद भी सुत्तपिटक के खुद्दकनिकाय का एक अंग है। गीता का प्रतिपाद्य ज्ञान, भक्ति और कर्म है, लेकिन धम्मपद में कर्म की (सत्कर्म की ) महत्ता प्रतिपादित है। गीता का दर्शन प्रौढ़ एवं गहन है तथा धम्मपद का दर्शन एकांकी है- केवल नैतिक दृष्टिकोण तक ही सीमित है ।

धम्मपद बौद्ध धर्म का प्रारम्भिक ग्रन्थ है, जिसमें बौद्ध धर्म के प्रायः सभी सिद्धान्तों का समावेश पाया जाता है। इसके अन्तर्गत वर्णित सदाचार के नियम आज के भौतिकवादी युग में उपयोगी सिद्ध हैं।

अलवर्ट जे० एडमण्ड ने धम्मपद के अंग्रेजी अनुवाद की भूमिका में उल्लिखित किया है कि- "यदि एशिया खण्ड में कभी किसी अविनाशी ग्रन्थ की रचना हुई तो वह धम्मपद ही है। इसमें उल्लिखित गाथाओं ने अनेक विचारकों के हृदय में चिन्तन की आग जलायी है। इन्हीं गाथाओं से अनुप्राणित होकर अनेकों चीनी यात्री भगवान् बुद्ध की तपोभूमि भारत के दर्शनार्थ आये । इन्हीं को महाराज अशोक ने- जिन्होंने प्राणदण्ड का निषेध किया, दासप्रथा को बन्द किया, मनुष्यों और पशुओं तक के लिए अस्पताल खोले - शिलालेखों पर अंकित कराया। आज दो हजार वर्ष से रोम और ईसाईयत की संस्कृति के प्रचार होते रहने पर भी, यूरोप और अमेरिका के सभी विद्या मन्दिरों में- कोपेनहेगेन से कैम्ब्रिज तक और शिकागो से सेण्टपीटस वर्ग (लेनिनग्राद) तक—यह यूरोपियन और अमेरिकन लोगों द्वारा श्रद्धा की दृष्टि से देखी जाती है।"

भदन्त आनन्द कौसल्यायन द्वारा भी उपर्युक्त तथ्यों का अनुमोदन किया गया है। उन्हीं के शब्दों में- "एक पुस्तक को और केवल एक पुस्तक को जीवन भर साथी बनाने की यदि कभी आपकी इच्छा हो तो विश्व के पुस्तकालय में आपको धम्मपद से बढ़कर दूसरी पुस्तक मिलनी कठिन है।"

धम्मपद की उपादेयता - धार्मिक दृष्टि से तो है ही, भाषा की दृष्टि से भी इसकी उपादेयता कम नहीं है। पालि भाषा सीखने के लिए और तत्पश्चात् भाषाविज्ञान तथा अन्य भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए सम्भवतः सबसे सरल ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ सर्वत्र ही असाम्प्रदायिक, नैतिक, उपदेशात्मक ग्रन्थ के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। महत्त्वपूर्ण होने के कारण ही संसार की समस्त सभ्य भाषाओं में इसका भाषान्तर हो चुका है। अकेले हिन्दी में ही इसके अनेक अनुवाद हो चुके हैं।

धम्मपद अट्ठकथा में वर्णित प्रमुख उपासक, उपासिकाएँ

(क) प्रमुख बौद्ध उपासक
त्रिपिटक में उल्लिखित कुछ उपासक
  1. अनाथपिण्डिक गृहपति
  2. हस्त आळवक गृहपति
  3. वैदय जीवक कौमारभृत्य
  4. मगधराज श्रेणिय बिम्बिसार
(ख) प्रमुख बौद्ध उपासिकाएँ
  1. सुजाता उपासिका
  2. सुप्रवासा कोलियधीता
  3. सामावती उपासिका
  4. नकुलमाता उपासिका
  5. विशाखा मृगारमाता उपासिका

धम्मपदअट्ठकथा में वर्णित प्रमुख भिक्षु भिक्षुणियाँ

(क) त्रिपिटक में वर्णित प्रमुख भिक्षु
  1. सारिपुत्र
  2. मौद्गल्यायन
  3. महाकाश्यप स्थविर
  4. अङ्गुलिमाल स्थविर
  5. आनन्द स्थविर
(ख) त्रिपिटक में वर्णित प्रमुख भिक्षुणियाँ
  1. महापजापति गौतमी
  2. धम्मदिन्ना थेरी
  3. उप्पलवण्णा थेरी
  4. किसा गौतमी
  5. भद्रा कापिलायनि

Post a Comment

Previous Post Next Post