योग

प्राणायाम का अर्थ, परिभाषा, भेद और महत्व

प्राणायाम शब्द संस्कृत व्याकरण के दो शब्दों ‘प्राण’ और ‘आयाम’ से मिलकर बना है। संस्कृत में प्राण शब्द की व्युत्पत्ति ‘प्र’ उपसर्गपूर्वक ‘अन्’ धातु से हुई है। ‘अन’ धातु जीवनीशक्ति का वाचक है। इस प्रकार ‘प्राण’ शब्द का अर्थ चेतना शक्ति होता है। ‘आयाम’ श…

मंत्रयोग क्या है मंत्रयोग के प्रकार ?

शास्त्रों के अनुसार अनेक प्रकार के योग बताए गये हैं, इन सभी योग की साधना सबसे सरल और सुगम है। मंत्र योग की साधना कोई श्रद्धा पूर्वक व निर्भयता पूर्वक कर सकता है। श्रद्धापूर्वक की गयी साधना से शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त कर अभीष्ट की प्राप्ति की जा सकती है…

हठयोग का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य

हठयोग में जब इड़ा और पिंगल नाड़ी, वाम और दक्षिण स्वर जब एक समान चलने लगें तो सुषुम्ना का जागरण होता है। जब सुषुम्ना निरन्तर चलने लगती है तो शरीर में सूक्ष्म रूप में विद्यमान कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है। जब कुण्डलिनी छरूचक्रों का भेदन करती हुई सहस…

ज्ञानयोग क्या है? ज्ञानयोग की साधना के किन साधनों एवं गुणों की आवश्यकता होती है?

ज्ञान योग बुद्धि और विश्लेषण का मार्ग है। यह विवेक से संबंधित है और इसकी अपनी एक क्रियाविधि होती है। इस क्रियाविधि का केन्द्र श्रवण स्मरण और विश्लेषण (मनन) और ध्यान करने की विधि (निदिध्यासन) के इर्दगिर्द घूमता है। आज वैज्ञानिक युग में मनुष्य काफी तर्क…

भक्ति योग क्या है भक्ति योग के प्रकार?

भक्ति से तात्पर्य है कि ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेमपूर्ण आसक्ति। यह शब्द भज् (सम्मिलित होने) धातु से निर्मित है और सहभागिता की ओर संकेत करता है। भक्ति मार्ग पर चलने वाला योगी दिव्य ईश्वर के प्रति स्वयं को समर्पित करता है, भक्ति भाव से सेवा करता है …

कर्मयोग का अर्थ, परिभाषा, भेद एवं प्रकार

कर्मयोग उन लोगों के लिए है जो प्रकृति से सक्रिय होते हैं भगवद ्गीता में कर्म  योग के चार मुख्य नियम वर्णित हैं ताकि आप सभी तनावों से एकदम मुक्त होकर अपन े कर्म (कार्य) का हर क्षण आनन्द ले सके। कर्म कर्तव्य समझकर करें, कार्य को बिना आसक्ति से करें, परि…

अष्टांग योग क्या है अष्टांग योग कितने प्रकार के होते हैं?

अष्टांग योग महर्षि पतंजलि द्वारा रचित व प्रयोगात्मक सिद्धान्तों पर आधारित योग के परम लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक साधना पद्धति है।  महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र नामक ग्रंथ में तीन प्रकार की योग साधनाओं का वर्णन किया है।‘अष्टांग’ शब्द दो शब्दों के मेल …

आयुर्वेद और योग (आयुर्वेद में योग के प्रकार, आयुर्वेद में वर्णित प्राणायाम)

आयुर्वेद और योग दोनों ही अत्यन्त प्राचीन विद्यायें हैं। दोनों का विकास और प्रयोग समान उद्देश्य के लिए एक ही काल में मनुष्य मात्र के दु:खों को दूर करने के लिए हुआ। आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ जीवन का विज्ञान है। इसे एक बहु उद्देश्यीय विज्ञान के रूप में व…

गीता में योग का स्वरूप

वही ज्ञान वास्तविक ज्ञान होता है जो ज्ञान मुक्ति के मार्ग की ओर अग्रसरित कराता है। अत: गीता में भी मुक्ति प्रदायक ज्ञान है। इस बात की पुष्टि स्वयं व्यास जी ने महाभारत के शान्तिपर्व में प्रकट किया है। ‘‘विद्या योगेन ऱक्षति’’ अर्थात् ज्ञान की रक्षा य…

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