योग

महर्षि पतंजलि का जीवन का परिचय एवं रचनाएं

एक किंवदन्ती के अनुसार ऐसा ज्ञात होता है, कि प्रात:काल नदी में अचानक से सूर्य के अर्घ्य देते समय कोई बालक एक ब्राह्मण के अंजलि में आ गया और उस दृश्टान्त के कारण इनका नाम पतंजलि पड़ गया। बाद में उसी ब्राह्मण के यहां इनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। कुछ विद्वान …

वायु चिकित्सा एवं प्राणायाम चिकित्सा क्या है?

मानव-जीवन का आधार प्राण है। प्राणों की सत्ता से ही जीवन की गतिविधियां हैं एवं शरीर में बल, स्फूर्ति, उद्यम, उत्साह और ओजस्विता है। यदि प्राणशक्ति का संरक्षण, पोषण और संवर्धन किया जाए तो शरीर को व्याधियों से मुक्त किया जा सकता है। शरीर के कण-कण में प्…

ध्यान का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं महत्व

ध्यान चिन्तन की ही एक प्रक्रिया है पर ध्यान का कार्य चित्त करना नहीं अपितु चिन्तन का एकाग्रीकरण अर्थात चिन्त को एक ही लक्ष्य पर स्थिर करना ध्यान कहलाता है। सामान्यतः ईश्वर या परमात्मा में ही अपना मनोनियोग इस प्रकार करना कि केवल उसमें ही साधक निमग्न हो…

धारणा का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, परिणाम एवं महत्व

मन (चित्त) को एक विशेष स्थान पर स्थिर करने का नाम धारणा है। यह वस्तुतः मन की स्थिरता का घोतक है। हमारे सामान्य दैनिक जीवन में विविध प्रकार के विचारों का प्रवाह चलता रहता है, दीर्घकाल तक स्थिर रूप से वे नहीं टिक पाते और मन को अस्थिर करते है इसके विपरि…

प्रत्याहार का अर्थ, परिभाषा, परिणाम एवं महत्व

इंद्रियों को अंतर्मुखी करके उनके संबंधित विषयों से विमुख करना प्रत्याहार कहलाता है। प्रत्याहार का सामान्य कार्य होता है, इन्द्रियों का संयम, दूसरे अर्थ में प्रत्याहार का अर्थ है पीछे हटना, उल्टा होना, विषयों से विमुख होना। इसमें इन्द्रियाॅं अपने वहिर…

प्राणायाम का अर्थ, परिभाषा, भेद और महत्व

प्राणायाम शब्द संस्कृत व्याकरण के दो शब्दों ‘प्राण’ और ‘आयाम’ से मिलकर बना है। संस्कृत में प्राण शब्द की व्युत्पत्ति ‘प्र’ उपसर्गपूर्वक ‘अन्’ धातु से हुई है। ‘अन’ धातु जीवनीशक्ति का वाचक है। इस प्रकार ‘प्राण’ शब्द का अर्थ चेतना शक्ति होता है। ‘आयाम’ श…

मंत्रयोग क्या है मंत्रयोग के प्रकार ?

शास्त्रों के अनुसार अनेक प्रकार के योग बताए गये हैं, इन सभी योग की साधना सबसे सरल और सुगम है। मंत्र योग की साधना कोई श्रद्धा पूर्वक व निर्भयता पूर्वक कर सकता है। श्रद्धापूर्वक की गयी साधना से शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त कर अभीष्ट की प्राप्ति की जा सकती है…

हठयोग का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य

हठयोग में जब इड़ा और पिंगल नाड़ी, वाम और दक्षिण स्वर जब एक समान चलने लगें तो सुषुम्ना का जागरण होता है। जब सुषुम्ना निरन्तर चलने लगती है तो शरीर में सूक्ष्म रूप में विद्यमान कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है। जब कुण्डलिनी छरूचक्रों का भेदन करती हुई सहस…

ज्ञानयोग क्या है? ज्ञानयोग की साधना के किन साधनों एवं गुणों की आवश्यकता होती है?

ज्ञान योग बुद्धि और विश्लेषण का मार्ग है। यह विवेक से संबंधित है और इसकी अपनी एक क्रियाविधि होती है। इस क्रियाविधि का केन्द्र श्रवण स्मरण और विश्लेषण (मनन) और ध्यान करने की विधि (निदिध्यासन) के इर्दगिर्द घूमता है। आज वैज्ञानिक युग में मनुष्य काफी तर्क…

भक्ति योग क्या है भक्ति योग के प्रकार?

भक्ति से तात्पर्य है कि ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेमपूर्ण आसक्ति। यह शब्द भज् (सम्मिलित होने) धातु से निर्मित है और सहभागिता की ओर संकेत करता है। भक्ति मार्ग पर चलने वाला योगी दिव्य ईश्वर के प्रति स्वयं को समर्पित करता है, भक्ति भाव से सेवा करता है …

कर्मयोग का अर्थ, परिभाषा, भेद एवं प्रकार

कर्मयोग उन लोगों के लिए है जो प्रकृति से सक्रिय होते हैं भगवद ्गीता में कर्म  योग के चार मुख्य नियम वर्णित हैं ताकि आप सभी तनावों से एकदम मुक्त होकर अपन े कर्म (कार्य) का हर क्षण आनन्द ले सके। कर्म कर्तव्य समझकर करें, कार्य को बिना आसक्ति से करें, परि…

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