प्रत्याहार का अर्थ, परिभाषा, परिणाम एवं महत्व

इंद्रियों को अंतर्मुखी करके उनके संबंधित विषयों से विमुख करना प्रत्याहार कहलाता है। प्रत्याहार का सामान्य कार्य होता है, इन्द्रियों का संयम, दूसरे अर्थ में प्रत्याहार का अर्थ है पीछे हटना, उल्टा होना, विषयों से विमुख होना। इसमें इन्द्रियाॅं अपने वहिर…

प्राणायाम का अर्थ, परिभाषा, भेद और महत्व

प्राणायाम शब्द संस्कृत व्याकरण के दो शब्दों ‘प्राण’ और ‘आयाम’ से मिलकर बना है। संस्कृत में प्राण शब्द की व्युत्पत्ति ‘प्र’ उपसर्गपूर्वक ‘अन्’ धातु से हुई है। ‘अन’ धातु जीवनीशक्ति का वाचक है। इस प्रकार ‘प्राण’ शब्द का अर्थ चेतना शक्ति होता है। ‘आयाम’ श…

आसन का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, महत्व, उद्देश्य, विधि व लाभ

आसन का अर्थ है- यह शरीर और मन पर नियंत्रण हेतु विभिन्न शारीरिक मुद्राओं का अभ्यास। आसन शब्द कई अर्थों में प्रयुक्त होता है जैसे शरीर के द्वारा बनाये गये विशेष स्थिति, बैठने का विशेष तरीका, हाथी के शरीर का अगला भाग, घोडे़ का कन्धा आदि परन्तु हठयोग में …

क्रिया योग क्यों किया जाये क्रियायोग का फल या क्रियायोग का उद्देश्य

क्रिया योग क्यों किया जाये इस प्रश्न का उत्तर महर्षि ने देते हुए कहा है- समाधिभावनार्थ: क्लेशतनूकरणार्थश्च क्रिया योग का अभ्यास क्लेशों को तनु करने के लिए एवं समाधि भूमि प्राप्त करने के लिये कहा जा रहा है। क्लेश- अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेश और अभिनि…

पतंजलि योगसूत्र का परिचय || पतंजलि योग सूत्र के चार अध्याय

योगसूत्र ग्रंथ महर्षि पतंजलि द्वारा रचित है। यह ग्रंथ सूत्रों के रूप में लिखा गया है। सूत्र-शैली भारत की प्राचीन दुर्लभ शैली है जिसमें विषय को बहुत संक्षिप्त शब्दों में प्रस्तुत किया जाता है। यह चार पादो में विभाजित है जिसमें 196 सूत्र निबद्ध है। इस …

अरविन्द घोष जीवन परिचय, जीवन दर्शन एवं शिक्षा दर्शन

अरविन्द घोष का जन्म 15 अगस्त 1872 को कलकत्ता में हुआ। अरविन्द घोष के पिता डॉ. कृष्णधन घोष विलायत से डॉक्टरी की पढ़ाई करके लौटे तो अंग्रेजियत के भक्त होकर आये। अरविन्द घोष को जन्म के समय जो नाम दिया गया उसमें बीच में विलायती नाम भी जोड़ा हुआ था - अरविन…

आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय || Aadi shankaracharya ka jivan parichay

आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के कालरी गांव में सन् 684 ई. में हुआ था, उनके पिता का नाम शिवगुरू तथा माता का नाम सती था। शंकराचार्य ने बाल्यकाल से ही सन्यास ले लिया था और वेदान्त की शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे महात्मा गोविन्दाचार्य के पास चले गए थे। शि…

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